✩ जयगुरुदेव ✩
➥ बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के अमृत वचन
✪ जिस गुरु के समीप पहुंचते ही हृदय की संताप बुझ जावे और उसे शीतलता व शांति मिले तो समझना होगा कि यह महापुरुष हैं और साथ-साथ 5 नाम और 5 रूपों का भेद देते है उन्ही को गुरु कहते हैं।
( शाकाहारी सदाचारी, ७ से १३ अक्टूबर २००७, वर्ष ३७ , अंक १६ )
✪ गुरु कभी मरता नहीं है। जीवन में शिष्यों से भजन कराता है और जब वे ऊपरी महलों में जाते हैं तो यहां भी कदम कदम पर सम्हाल करता रहता है लेकिन गुरु सदा सूक्ष्म रूप से अन्तर में शिष्यों की सहायता करता है।
( शाकाहारी पत्रिका, ७ से १३ अक्टूबर २००७, वर्ष ३७ , अंक १६ )
✪ मृत्युलोक का यही विधान है कि इस भौतिक शरीर का समय पूरा होने पर सभी को चोला (शरीर छोड़ना ही पड़ता है. अतः निजधाम जाने से 5 वर्ष पहले ही बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने दिनांक 16 मई 2007 दिन बुधवार को बसीरतगंज जिला उन्नाव के आश्रम पर सतसंग के दौरान चालीसों साल शरण में रहे बाबा उमाकान्त जी महाराज को वहां मौजूद संगत के सामने मंच पर खड़ा करके जानशीन के रूप में घोषणा करते हुए कहा-
✪ यह उमाकान्त तिवारी हैं. यह पुरानों की सम्हाल करेंगे और नए को नामदान देंगे । पूरे सन्त सतगुरु का वचन ही दस्तावेज होता है इसलिए गुरु महाराज के कहे हुए, रिकॉर्ड किये हुए इस वचन को आज भी सच्चे गुरु भक्त मानते हैं। वक्त के सच्चे गुरु की पहचान बाहरी हाड़ मांस के शरीर व वेशभूषा से नहीं होती है बल्कि गुरुद्वारा बताए अन्तर्मुखी साधना से होती है।
✪ जिस तरह सिख गुरु हरकिशन जी के चोला छोड़ने के बाद जैसे मक्खन शाह ने बाबा बकाला में गुरु तेग बहादुर में सच्चे गुरु की पहचान की थी वैसे ही सच्ची पहचान आज भी की जा सकती है। इसी तरह गुरु नानकदेव जी से भी एक बार संगत ने प्रश्न किया था कि हम वक्त के गुरु को कैसे पहचानेंगे ? तब नानकजी ने उत्तर दिया था कि-
"तन तजै छटनी करै,
सौ दिन व्रत कराय
बिरख जूट बि सराय कै,
गुरु का रूप बनाय।
गुरु का रूप बनाय
पाँच नाम का दे उपदेश हरषाय।
कहै नानक इतना करै
सोई सतगुरु कहाय ।"
अर्थात गुरु के शरीर छोड़ने बाद स्वार्थी लोगों का साथ छोड़कर सौ दिन व्रत रखता है, टाट उतारकर गुरु का रूप धारण करता है और पांच नाम का नामदान देता है वही सच्चा सतगुरु कहलाता है।
नानकजी की ही वाणी मे आया है-
सन्त की निंदा नानका, फिरि फिरि नरकै जाय।
➥ परम पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की अविस्मरणीय यादें
✪ बाबा जयगुरुदेव जी महाराज 18 जनवरी 2009 की रात्रि में उज्जैन में रुके थे और 19 जनवरी 2009 की प्रातःकाल 4 बजे की अमृत बेला में मक्सी रोड, श्री चौराहे के पास एक जगह पर स्वामी जी महाराज गए और टहलते हुए स्वामी जी महाराज ने बाबा उमाकान्त जी महाराज से कहा -
"यह जगह बहुत अच्छी है... यह जगह बहुत अच्छी है. ... यह जगह बहुत अच्छी है.. समझे" स्वामीजी महाराज ने ये बात 3 बार दोहराई कि ये जगह बहुत अच्छी है" आज उसी स्थान पर बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन बना हुआ है।
✪ बाबा जयगुरुदेव जी महाराज से एक प्रेमी ने पूछा- स्वामी जी सतगुरु के अपने जानशीन में आ समाने से क्या मुराद (मतलब) है क्योंकि एक शरीर मैं दो सूरतें नहीं समा सकती हैं और सतगुरु का अपने सेवक के शरीर में समाकर और संसार के भोग भोगना अनीत मालूम होता है?
स्वामी जी ने कहा - सतगुरु अपने जानशीन में आ समाते हैं। इससे यह मतलब है कि उस जानशीन पर सतलोक और दसवे द्वार सुन्न से भृंग दृष्टि डालकर उसको अपने समान कर लेते हैं। इस मेहर आलूद (भरी ) दृष्टि डालने को आ समाना कहा है क्योंकि सतगुरु की सुरत की धार सेवक की सुरत से मिलती है और सुन्न के नूर और तजल्ली (प्रकाश) पर निगाह ठहराने की ताकत हो जाती है और मानसरोवर स्नान करके वह सुरत शब्द रूप हो जाती है यानी शब्द रूप धारण कर लेती है और वही निज रूप सतगुरु का है।
-पुस्तक सन्त सत्य वचन पेज न. १७
✪ बात 1973 की है। हरिद्वार के चमगादड टापू पर परम पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने एक विशाल कार्यक्रम करवाया था, जिसका नाम था 'महामानव यज्ञ" "महामानव यज्ञ बोलकर गुरु महाराज ने प्रचार करवाया था। उस समय लोगों के मन में यह प्रश्न उठा था कि महामानव कौन है? गुरु महाराज तक जब यह बात पहुंची तो उन्होंने कार्यक्रम के दौरान कहा था- "वह महामानव इस समय इसी मैदान में मौजूद है और आगे समय आने पर तुमको परिचय मिल जाएगा।
गुरु महाराज की इस बात को लोग समझ नहीं पाए बल्कि उनके नजदीक रहने वाले कुछ लोग स्वयं को ही महामानव समझने लगे, जबकि यह सर्वथा भ्रम तब साबित हुआ जब 16 मई दिन बुधवार, 2007 को बसीरत गंज आश्रम से परम पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज को खड़ा करके अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और कहा कि- "यह हैं उमाकान्त तिवारी। यह नयों को नामदान देंगे और पुरानों की सम्हाल करेंगे तब लोगों के समझ में आया।
ज्यों केले के पात के. पात पात में पात.
त्यों सन्तन की बात के, बात बात में बात ।
इशारा तो गुरु महाराज ने 1973 में ही कर दिया था क्योंकि गुरु महाराज जानते थे कि जिसको हमें यह आध्यात्मिक दौलत देनी है वह हमारा शिष्य हरिद्वार को चमगादड टापू पर हमसे सर्वप्रथम मिलेगा, नामदान लेगा। गुरु महाराज ने जो बचन कहे थे कि "वह महामानव इसी मैदान में मौजूद है और आगे समय आने पर तुमको परिचय मिल जाएगा तो आज उस महामानव का परिचय हम सभी के सामने स्पष्ट है कि जो जीवों को नामदान की दौलत खुले मंच से लुटा रहे हैं।
✪ जरा सोचिए! आज हम और आप फितन शौभाग्यशाली हैं किऐसे महामानव का दर्शन दीदार कर पा रहे हैं जिनको ऐसे महापुरुष ने यानी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने जीवों को नाम दान देने का अधिकार दिया था। सन्त सतगुरु अपने आदेश से जो भी काम करवाते हैं उसमें उनका संकल्प जुड़ा रहता है। ऐसा ही एक संकल्प 26 नवंबर 1973 को बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने चमगादड टापू के "महामानव यज्ञ में लिया था। वह संकल्प था जब तक देश में गाय की हत्या बंद नहीं हो जाती तब तक कोई भी हर की पौड़ी पर स्नान नहीं करेगा।
✪ एक प्रेमी की जुबानी - बात सन 2006 की है। सागर (मध्य प्रदेश) में स्वामी जी महाराज का कार्यक्रम था। मैं रात के 2.30 बजे स्वामी जी के पास दर्शन के लिए पहुँचा। स्वामीजी ने पास बुलाया और कहा- पैर दबाओ मैं पैर दबाने लगा। कुछ देर तक स्वामी जी से बातें हुईं। फिर पूछा - कौन लेटा है ? मैंने कहाँ - हुजूर तिवारी जी (पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ) फिर गंभीर होकर बोले - देखो ध्यान से सुनो ! आगे का सत्संग मैं इन्हीं से कराऊंगा। तुम हमेशा इनके साथ रहना। ये बात अभी किसी से कहना नहीं मैं मंच से कहूंगा
-- श्री शांति कुमार श्रीवास्तव उर्फ़ मुन्ना (सेवा निवृत एयर कमांडर) पुत्र परलोक वासिनी तारा देवी श्रीवास्तव ( १९५७ में अपने पिता के देहांत के बाद से अपनी मां और भाई -बहनों के साथ कृष्णा नगर आश्रम, ,मथुरा में रहे। ( परम पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के अत्यंत विश्वास पात्र रहे )
जयगुरुदेव
साभार, (पुस्तक) स्मारिका सन 2012 से सन 2022 तक
smarika-2012-to-2022
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