बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के दिव्य वचन

जय गुरु देव 
स्वामी जी ने कहा-

1 जब तुम्हारा फायदा होता है तो कहते हो कि मैंने किया और जब नुकसान हो जाता है तो कहते हो कि जैसी स्वामी जी की मर्जी।

2 थोड़ा बर्दाश्त करना सीखो। तुम संसारियों के ताने को बर्दाश्त नहीं कर पाते हो तो महात्माओं की बातों को कैसे अमल में लाओगे।

3 महात्माओं की छोटी छोटी बातों को याद करते रहना चाहिए। ये बड़ी फलदायक होती हैं ।अगर छोटी छोटी बातों को याद नहीं कर पाओगे तो उनकी बड़ी बड़ी बातें कैसे समझ पाओगे।

4 महात्माओं से टकराना नहीं चाहिए। उनको तंग करने वालों का नुकसान हो जाता है।

5 महात्माओं के पास अपनी मर्यादा में रहना चाहिए। उनकी दया तो दूर रहने वालों पर भी बराबर रहती है। वो तो बहुत जीवों को अपने पास रखते हैं परन्तु पास रहने वाले अधिक फायदा नहीं ले पाते।

6 महात्माओं को जीवों को पार करने में क्या देर लगती है। देर तो तुम्हारी तरफ से है उनकी तरफ से नहीं। तुम घाट पर ही नहीं बैठते हो। घाट पर बैठो तो जल्दी दया हो जाय। सुरत नाम को पकड़कर ऊपर चढ़ चले। 

7 एक बात यह है कि आप किसी भी रास्ते पर चलो बाधा तो आती है। आपके कर्मों से बाधा आती है। हमको कोई बाधा नहीं है। जितने भी महात्मा आये आपके बीच में रहे उन्होंने तकलीफ उठाई। आप घबड़ा जाते हो वो घबड़ाते नहीं।

8 हम जो बोल रहे हैं वह कोई राजनीतिक शब्द तो है नहीं। हम तो इसलिए बोल रहे हैं कि आप सम्हल जाओ, उस तरफ मत जाओ। यह एक व्यक्ति के लिए नहीं, एक देश के लिए नहीं, यह सारे विश्व के लिए है। 

9 वक्त आएगा कि सब लोग परमार्थ में लग जाएंगे, भगवान के भजन में लग जाएंगे। जो चीजें अभी तक आपको उल्टी मालूम होती थीं वह अब सीधी लगने लगेंगी। आगे चलकर समाज अच्छा हो जाएगा। 

10 देवता के आगे बुरा काम करोगे तो वह कैसे खुश होगा। वो कभी तुमसे खुश नहीं होगा। पिता के सामने गलत काम करोगे तो क्या वह तुमसे खुश होगा ? 

11 मकर संक्रांति का धार्मिक कोई महत्व नहीं। तत्वों की तब्दीली होती है। पहले लोग सप्ताह में व्रत करते थे, महीने में व्रत करते थे ताकि शरीर से अन्न के विकार निकल जायं। एक वक्त खाओ सदा व्रत है। एक वक्त खाने से भजन भी बनेगा और शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा। 

12 क्रोध आ जाय तो क्षमा कर दो तब उसका जहर तुम पर चढ़ने नहीं पाएगा। इसी प्रकार जब मोह आवे तो विवेक से काम लो।

13 मौज को परखना चाहिए। मालिक की जो मौज होगी वह होगा। आंखों से दर्शन किया जाता है। दया आंखों से खींची जाती है। इस बात को तुम समझते नहीं हो। कूंदाफांदी करके अपना नुकसान कर लेते हो। जैसा कहा जाय वैसा करो। दूर से प्रणाम करो। हजारों टूट पडे यह तो प्रणाम नहीं हुआ। प्रणाम प्यार का होता है। मेरा शरीर पुराना हो गया। आप जबरदस्ती करते हो यह ठीक नहींं। इससे प्रेम भी चला जाएगा और धीरज भी टूट जाएगा। 


14 जब तक शरीर साथ दे रहा है, थोड़ी बहुत ताकत है तो अपनी जीवात्मा के लिए कुछ कर लो नही तो यह शरीर थकने लगेगा काम नहीं करेगा तब क्या करोगे ? मन को ठीक करने के लिए रोज ठीक से सुमिरन करो, ध्यान भजन करो बगैर नाम के मन वश में नहीं होगा।

15 अपनी अकड़ थोड़ी ढीली करो और झुकना सीखो। बिना झुके बिना नम्रता के वह अमोलक चीज तुम्हें नहीं मिल सकती। दुनिया में भी जब तुम किसी से कोई चीज मांगने जाते हो तो नम्र होकर मांगते हो। इसलिए परमार्थ में भी तुमको दीन होकर मांगना होगा। 

16 देवियों को बच्चियों को अपना सिर खुला नहीं रखना चाहिए। सिर को ढकना लाज और शरम का बहुमूल्य गहना है।

17 अगर तुम्हारा ध्यान संसार से हटकर दोनों आंखों के पीछे घाट पर हो जाय तो तुम्हे शब्द यानि आकाश वाणी सुनाई देने लगेगी। उस ईश्वरीय संगीत को सुनने को ही भजन कहा जाता है। ढोल मंजीरे पर गाना बजाना भजन नहीं है।

18 गुरु तुम्हारी हर तकलीफ को देखता है वह अंजान नहीं है। तुम बीमार पड़े हो उसे मालूम है। थोड़ा कष्ट दिलाकर वो तुम्हारे कर्मो के अम्बार को साफ कर देता है। गुरु चाहता है कि तुम्हारा परमार्थ बने और इसके लिए वो तुम्हे तीन चीजें देता है। पहला रोग, दूसरा अपमान और तीसरा गरीबी।

19 दिल्ली की भूमि अच्छी नहीं है। भूमि के असर से ही मनुष्य वहां हैवान बना फिरता है।

-शाकाहारी पत्रिका 14 मार्च से 20 मार्च 2002
-shakahari patrika 07 far. to 13 far. 2002

संतों की महीमा अनन्त...

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