अर्जुन उवाच- हे श्रीकृष्ण ! किसी की देह में रक्त का विकार होता है सो किस पाप से होता है ? कोई दरिद्री होते हैं किसी की खण्ड आयु होती है, कोई अंधे होते हैं, पंगुल होते हैं सो किस पाप से होते हैं ? कुछ स्त्रियां बाल विधवा होती हैं सो किस पाप से होती हैं ?
श्रीकृष्ण उवाच- हे अर्जुन! जो सदा क्रोधवान रहते हैं, उनको रक्त का विकार होता है। जो आलस्य में डूबे रहते हैं वे दरिद्री होते हैं, जो कुकर्मी ब्राह्मण को दान देते हैं उनकी खण्ड आयु होती है। जो प्राणी स्त्री को नंगी देखता है, गुरु की स्त्री पर कुदृष्टि रखता है, जिसने गौ व ब्राह्मण को लात मारी है, सो अंधा व पंगुल होता है। जो स्त्री अपने पति को छोड़कर पराये पुरुषों से संग करती है सो बाल विधवा होती है।
अर्जुन उवाच- हे श्रीकृष्ण ! तुम पारब्रह्म हो, तुमको मेरा नमस्कार है पहले मैं तुमको सम्बन्धी जानता था पर अब परमेश्रूवर रूप में जानता हूं, हे पारब्रह्म, गुरु दीक्षा कैसी होती है, कृपा कर कहो।
श्रीकृष्ण उवाच- हे अर्जुन! तुम धन्य हो तुम्हारी माता भी धन्य है, जिनके तुम जैसे पुत्र हुए। जिसने गुरु दीक्षा पूछी है। हे अर्जुन! सारे संसार के गुरु जगन्नाथ हैं, विद्या का गुरु काशी, चारों वर्णों का गुरु ब्राह्मण, ब्राह्मण का गुरु सन्यासी है। सन्सासी उसको कहते हैं जिसने सबको त्याग करके मेरी भक्ति में मन लगाया है सो वह ब्राह्मण जगतगुरु है।
हे अर्जुन! यह बात ध्यान देकर सुनने की है। गुरु कैसा हो ? जिसने सब इन्द्रियां जीती हों, जो मोह रहित हो, ऐसा गुरु करें जो परमेश्वर को जानने वाला हो। उस गुरु की पूजा सब प्रकार से करें।
हे अर्जुन। जो गुरु का भक्त है सो मेरा भक्त है। जो प्राणी गुरु सन्मुख होकर मेरा भजन करते हैं उनका भजन करना सफल है। जो प्राणी गुरु के विमुख है, उनको सप्त ग्राम मारे का पाप है। गुरु से विमुख प्राणी का दर्शन
करना योग्य नहीं। जो ग्रहस्थ गुरु से विमुख हो वह चाण्डाल के समान है जिस जिस जगह मदिरा का भांड हो उस जगह जो गंगा जल है वह भी अपवित्र होता है। उसके हाथ का देवता भी नहीं लेते। उसके सभी कर्म निष्फल हैं।
कूकर सूकर, गंदर्भ, काक इन सब योनियों से सर्प की बड़ी खोटी योनि है। इन सबमें भी वह मनुष्य खोटा है, जो गुरु नहीं करता। गुरु बिना गति नहीं होती। वह अवश्य नरक को जावेगा। गुरु दीक्षा के बिना प्राणी के सब कर्म निष्फल होते हैं।
हे अर्जुन! जैसे चारों वर्णों को मेरी भक्ति करना योग्य है, तैसे गुरु की भक्ति करना और सेवा करना योग्य है। जैसे सब नदियों में गंगा श्रेष्ठ है, जैसे सब व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ है, वैसे ही, हे अर्जुन! सब सेवाओं में गुरु सेवा उत्तम है। गुरु दीक्षा बिना प्राणी पशु योनि पाता है। वह धर्म करता हुआ भी पशु योनी में फल भोगता है।
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Jaigurudev