बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के हस्तलिपि सन्देश- 4

जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश
प्रभु का करिश्मा होने लगा

रामायण गीता पर लोग विश्वास करने लगे,
सत्संग में जाने की चाह होने लगी,
सन्तों के दर्शन की चाह आने लगी,
सत्य के सुनने की प्यास होने लगी,
दर्शन के करने की भीड़ होने लगी,
नम्रता का भाव सबमें आने लगा,
जरा देखो देखो क्या होने लगा ?
प्रभु के खेल का करिश्मा होने लगा।


बाबा जी का पत्र

भण्डारा 24, 25, 26 दिसम्बर 1982
जयगुरुदेव दिनांक 29 10 82 
भारत के समस्त प्रेमी नामदानी नर नारी बच्चों को स्नेह।
नामयोग की साधना (सुरत शब्द योग) की साधना मानव मात्र के लिए है। मानव से मतलब है जाति से नहीं। यह सेवा पूर्ण चरित्र, सदाचार सत्य, सेवा, दया के गुणों से ओतप्रोत है। जो समाज देश और मानव के लिए अति जरूरी है।
इस शिक्षा का विकास किया जाता है तो अनेक, उपद्रव सामाजिक, राजनैतिक तोड़फोड़ का न होते। पूर्ण अनुशासन  सिखाया जाता है
आप सबको समझना चाहिए जो वास्तव में सेवा है उस सेवा को आज का कानून सेवा का रूप नही देता है। कानून कहता स्कूल, अस्पताल, खेलकूंद आदि का कानून का रूप लेता है।

इसलिए, स्कूल , अस्पताल, मन्दिर, बच्चों को फ्री शिक्षा, गरीब अतिथियों को भोजन दोनों समय, हर प्रकार से स्कूल में बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जा रही। अभी तो आठ तक प्रारम्भ हुआ है। कापी स्लेट, पटटी किताबें, फीस आदि फ्री, एक समय बच्चों को नाश्ता, 150 बच्चे लगभग हैं।

गुप्त दान भण्डारे के शुभ दिन होगा,
तीन कामों में आयेगा।
1 मन्दिर के निर्माण हेतू
2 स्कूल बच्चों के पढ़ाई हेतू
3 अस्पताल निर्माण हेतू
सुबह शाम होने के बाद दूसरे दिन पेटियां खोल दी जायेंगी सबको रकम से अवगत कराया जायेगा अब सभी देवी पुरुष तैयार होकर साथ कुछ सेवा लेकर आयेंगे।

जयगुरुदेव 
Hastlipi sandesh


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