जयगुरुदेव
संत दर्शिका भूमिका
भारत जैसे धर्म परायण देश में ऋषि, मुनि, योगी, योगेश्वर व सन्तों का प्रादुर्भाव हमेश होता रहा है। लगभग 700 वर्ष पहले सन्तमत की जानकारी कराने वाले धरती के प्रथम सन्त कबीर साहब जब से आए, आज तक देश में उनके बाद मालिक ने कई सन्तों, फकीरों को इस धरती पर भेजा।
जैसे पलटू जी, नानकजी, तुलसी साहब जी, गरीब साहब जी, राधास्वामी जी, विष्णु दयाल जी महाराज, घूरेलाल जी महाराज इसी श्रृंखला में तुलसीदास जी महाराज जिनको बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के नाम से जाना जाता है, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में जन्म लेकर विभिन्न परिस्थितियों में जो भी किया जीवों के लिए ही किया, शरीर से कष्ट झेलते हुए अथक परिश्रम किया। गांव-गांव, शहर-शहर जाकर जीवों को जगाया, उनके खान-पान, चाल-चलन को सही किया साथ ही साथ नामदान (भगवत प्राप्ति का रास्ता देकर) साधना कराकर कितने जीवों को पार भी कर दिया।
मनुष्य शरीर में 100 वर्ष से अधिक समय तक उन्होंने जीवों के लिए काम किया और ज्येष्ठ पक्ष त्रयोदशी 18 मई 2012 को शरीर छोड़कर निजधाम चले गए।
शरीर छोड़ने से लगभग पांच साल पहले बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने अपने चालीसों साल साथ में रखकर सेवा लेने वाले परम् शिष्य उमाकान्त महाराज जी को अपने न रहने के बाद पुराने प्रेमियों की सम्हाल करने, नए प्रेमियों को नामदान देने की घोषणा कर दी थी।
बाबा जी के मथुरा आश्रम पर शरीर छूटने के बाद विषम परिस्थिति में उमाकान्त जी महाराज सब कुछ छोड़कर खाली हाथ उज्जैन मध्यप्रदेश आ गए, जहां प्रेमियों के सहयोग से आश्रम बनाया और बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के पदचिन्हों पर चलते हुए देश में घूम-घूम कर लोगों को शाकाहारी, नशामुक्त, मेहनतकश, चरित्रवान, देशभक्त रहने का उपदेश तो कर ही रहे हैं साथ ही साथ मनुष्य मन्दिर में यानी जिस्मानी मस्जिद में ग्रहस्थ आश्रम में रह करके खुदा भगवान के दीदार, दर्शन करने का तरीका बताते हुए अपने गुरु का मिशन पूरा करने में सतत् प्रयत्नशील हैं।
सन्त और सन्तमत
ऋषि मुनि अवतारी शक्ति योगी योगेश्वर से परे का दर्जा सन्तों का होता है। कलयुग में सन्त का प्रादुर्भाव जब हुआ तब उन्होंने जहां से शरीर को चलाने वाली शक्ति जीवात्मा नीचे उतारी गई है, ऐसे सत्तलोक का भेद खोला, इससे पहले नर्क चौरासी, स्वर्ग बैकुण्ठ का ज्ञान तो लोगो को था। ये भी मालूम था कि पाप करने से नर्क में जाना पड़ता है और पुण्य करने से स्वर्ग बैकुण्ठ लेकिन उससे बचने का उपाय नहीं मालूम था।
परन्तु जब सन्त धरती पर आये तब उन्होंने अच्छा बुरा का ज्ञान तो कराया ही, स्वर्ग बैकुण्ठ और नर्क चौरासी से बचने व जनम मरण की पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए नामदान देकर के भजन कराया, अन्तर में अपना परिचय दिया और जीवों को वापस सत्तलोक पहुंचा दिया। इसी पद्धति को सबसे अलामत सन्तमत कहा गया ओर जो जीवों पर सन्तों ने दया किया उसके लिए कहा गया सन्तों की महिमा अनन्त, अनंत किया उपकार।
आध्यात्मिक दृष्टि से सच पूछा जाए तो जितने भी जीव हैं सब सन्तों के बच्चे की तरह से हैं चूंकि जीव उबारने के लिए ही सन्त आते हैं इसलिए फिक्र इनकी रहती है और जो भी कार्य करते हैं या कोई माध्यम बनाते हैं तो जीवों की भलाई के लिए ही।
साभार, Sant darshika
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सन्त उमाकांत जी |
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