सत्संगी गुरु से प्यार करते जायेंगे उतना ही दुनिया की तरफ से बन्धन कम होते जावेंगे और काम, क्रोध की ज्वाला कम होती जावेगी। साधन में मन लगेगा नहीं, मन ध्यान भजन करते समय बहुत विघ्न करता है और भजन करने नहीं देता है। इसकी क्यों ऐसी हालत हुयी कारण यह है कि गुरु में प्यार होता तो मन रूपी घोड़ा गुरु के खूंटे मे बंध जाता आगे तरक्की अन्तर मे होती जायेगी और शब्द भी सुनते जायेंगे।
अन्तर में रस प्राप्त होने पर मन चुप होगा।
भारी सड़े कर्म
जो प्रेमी सच्चे गुरु के सेवक हैं और जिन्होंने गुरु की शरण ले ली है सच्चे भाव से उनको कितने प्रकार के अनुभव हुए कितनी तकलीफ आवे उसे भली प्रकार सहन करते हैं और यदि भारी तकलीफे आवें और वह सहन करने के बाहर हो और गुरु की समर्थता का विश्वास हो जाता है तो फौरन यह ध्यान में लाना कि भारी कर्मो का चक्कर है जो ऐसी तकलीफ आयी. क्यों इतने नाकिस सड़े गले निकृष्ट अतिताई कर्म होते हैं जिनके आने पर साधक सब कुछ छोड़ने को तैयार होता है।
और गुरु का दिया हुआ नाम भी वापिस करने का सच्चा संकल्प कर लेता है। और गुरु में अनेक प्रकार के ऐब दिखायी देते हैं और मन चाहता है कि मैं दूर रहूं।
प्रेमी को मालूम होना चाहिये कि यह देश कर्मों का है इस देश में शरीर से कर्म अवश्य भोगने होंगे चाहे शुभ हों या अशुभ हों। यह दोनों कर्म एक दूसरे के साथ मुजरा कदापि नही होंगे जिस श्वांस में या जिन घड़ियों या जिन वर्षों मे कर्म शुभ-अशुभ करेगा उसी कर्म की अगले जन्म में प्रारब्ध बनती है।
जिस योनी में जायेगा उसी मे उसी कर्म को भोगना होगा, कर्मों की थ्योरी अटल है यह ईश्वरीय विधान है।
भौतिकवाद समय में कर्म थ्योरी को असत्य कर दिये है परन्तु भाग्य तथा किस्मत और प्रारब्ध की व्याख्या हर मनुष्य करता रहेगा। चाहे तुम मानो या न मानो चाहे भगवान को मानो न मानो यह तुम्हारा जाति अधिकार है परन्तु यदि मानना इसलिये जरूर आवश्यक है क्योंकि आत्मा उसी ईश्वर ब्रह्माण्ड के परे है जिसको अहंकार उसके औजार हैं यह सब सुरत की चैतन्यता से काम करते रहते हैं।
दुख को मिटाने के लिये सर्व शक्तिमान सत्तपुरुष से अपना स्थाई सम्बन्ध करना होगा। वह हमारे कर्मों के नाश करने के लिये ज्ञान प्रकाश रूपी साबुन लेकर बैठै है।
मुझे उसके पास तक पहुंचना चाहिये हमारा धर्म असली यही है परन्तु जो साधन बाहर लोगों ने अपनी इन्द्रियों के गिराने के बना रक्खे है उनको देख कर आम जीव गिरते जाते हैं और ईश्वर की सत्ता जो आनन्द से पूर्ण है उसका परित्याग करते जाते हैं आत्म कल्याण कैसे होगा।
मगन लाल शाह के मकान पर पे्रस रिपोर्टर दो लेडिज और एक पुरुष आये और बहुत प्रकार के डिस्कर्शन किये जनम ऊपर क्या ध्येय है हर प्रकार की दलीलें दे और उन्हें कनवीनियन्स कर दिया।
चौपाट स्थान समुद्र के किनारे शहर बम्बई में ता. 19. 05. 1962 से सत्संग शुरु है नगर के हर कौम के नर और नारियां आकर जगह जगह सत्संग सुनते हैं बालू है और समुद्र का किनारा उसी मे स्त्री पुरुष आकर शर्म को खाते हुए बैठते हैं कि हमें यह कोई न कहे कि हम महात्माओ के सत्संग में बैठते हैं परन्तु कितने हजार तो सामने बैठते है और कितने हजार दूर बालू में बैठ कर सुनते है।
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Jaigurudev