जयगुरुदेव
12.12.2022
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
भजन करने वाले को सारे नशे को छोड़ना पड़ेगा
धर्म की स्थापना में, परिवर्तन के समय में कौन साथ देता है?
नए पुराने सभी लोग अब अपना रवैया बदलो जिससे आपको सुख शांति का अनुभव हो
बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 9 अक्टूबर 2022 प्रातः वाराणसी में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
आप जहां खाते हो वहीं शाकाहारी भोजन खाओ। वहीं शादी ब्याह लड़का-लड़की का करो लेकिन जहां गुरु वाली बात आवे, जहां अपने सिद्धांत उसूल वाली बात आवे, जहां लोगों के बचत वाली बात आवे, जहां देश की तरक्की उत्थान की बात आवे, वहां पर उस बात पर अटल रहो। मोटी बात समझो, किसी भी धर्म जाति धार्मिक किताब स्त्री पुरुष की निंदा नहीं। निंदा अपमान से आप दूर रहो। अपना एक अच्छा समाज बनाओ। शाकाहारी नशा मुक्त रहो। नशा मुक्त शाकाहारीयों के पास, सतसंगी साधकों के पास आप उठो बैठो। नये पुराने दोनों अब आप अपना रवैया बदलो जिससे आपको सुख शांति का अनुभव हो नहीं तो इस अशांति के सागर में डूब करके खत्म हो जाओगे।
धर्म की स्थापना, परिवर्तन के समय में कौन साथ देता है
महाराज जी ने 5 अक्टूबर 2022 प्रातः जोबनेर जयपुर में दिए संदेश में बताया कि राम ने बंदरो भालूओ को इकट्ठा करके कहा कि धर्म की स्थापना करने के लिए मैं आया हूं जंगल में। तुम लोग मेरा साथ दे दो। अयोध्या वालों ने तो साथ दिया नहीं था। एक से एक विद्वान पढ़े लिखे हुए थे, कभी साथी नहीं हुए महापुरुषों के और न यह परिवर्तन के समय में श्रेय पा सके। यह तो अपने उसी ज्ञान में, बुद्धि में ,रुपया पैसा में, मोह माया में ही फंसे रह गए। यही कारण है एक से एक राजा महाराजा सेठ साहूकार विद्वान हुए लेकिन नाम लेवा कोई नहीं रह गया। लेकिन साधारण आदमी अगर कोई लंगोटी लगा लिए, त्याग कर लिया, दूसरों के लिए कुछ किया तो देखो उसकी मूर्तियां बनी हुई है, उन्ही का नाम लिखा हुआ है। मतलब परिवर्तन छोटे लोगों से हुआ है।
भजन करने वाले को सारे नशे को छोड़ना पड़ेगा
महाराज जी ने 6 जून 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि अगर कोई भजनानंदी है और भजन करना चाहता है तो उसे सारे नशे को छोड़ना पड़ेगा। क्योंकि आपने अंतर में ध्यान लगाया और भजन पर आप बैठे और आयतें उतरने लगी और कुछ सुनाई पड़ने लगा, अंदर की आंख खुली, कुछ दृश्य दिखाई पडा और तब तक मन तो एकदम उधर नहीं लग जाता है।
जो सुरत शब्द योग की साधना आपको बताई गई, उसमें आप बहुत से लोग ध्यान लगाते हो। लेकिन यह शिकायत रहती है, एकदम कोई चीज टिकती नहीं है। वह चीज तो टिकी रहती है, आपका मन वहां से हट जाता है इसीलिए वह चीज आपकी आंखों के सामने से हटी दिखाई पढ़ती है। जैसे चलती ट्रेन से पेड़ देखना। मन जब इधर चला आता है तो मन रुकता टिकता नहीं है तो वह चीज नहीं दिखती, सुनाई नहीं पड़ता। नशे की किसी भी तरह की आदत साधक की होती है तो साधना में तरक्की नहीं होती है। इसलिए कहा गया शरीर को चलाने वाली चीज जिसमें हल्का-फुल्का नशा रहता है उसी चीज का इस्तेमाल करो।
बहुत से लोगों ने अन्न तक छोड़ दिया साधना के समय में, पानी पीकर के रहे। और जब जीवात्मा निकलने लगी है पानी की भी इच्छा खत्म हो गई। तो अब तो यह सब नहीं करना है। मन और काया को साफ सुथरा रखना है। इसके अंदर कोई गंदी चीज न जाने पावे। रक्त आपका गंदा न होने पावे। रक्त कब गंदा होता है? शाकाहारी रक्त में मांस के आहार करने से बना रक्त मिलने से रक्त गंदा हो जाता है। यह जब नहीं होगा और आप मेहनत-ईमानदारी की कमाई करोगे, बुद्धि आपकी सही, चाल-चलन सही रहेगा तो खाली मन ही रोकना रहेगा। मन धीरे-धीरे रुकने लगता है, साथ देने लगता है।
यही मन इस शरीर का, आदमी का दुश्मन हो जाता है और दोस्त भी हो जाता है जब इसको जब प्यार से मना लिया जाता है। भगे तो फिर घेर के लाओ तो यह रुकने लगता है। मन तो चंचल हो गया जैसे बच्चा चंचल हो जाता है, घर से बार-बार बाहर निकल जाता है और प्यार से उसको आप समझाते बुलाते रहो तो रुकने लग जाता है, घर में ही रहने लग जाता है। फिर कहो जाओ बेटा बाहर खेल आओ लेकिन उसका मन तो पढने में, काम में लग गया तो जल्दी खेलने भी नहीं जाता है। ऐसे ही मन जब साधना में लग जाता है तो मन से कुछ कहो, चलो शरीर को घुमा लावे, नौटंकी नाटक दिखा लाएं तो कहीं नहीं जाता है। मन नहीं करता।
हमारा मन नहीं कर रहा है तुम जाओ। कोई कितना भी प्रेरणा दे, उसका असर नहीं पड़ता है। तो जब इस चीज की जानकारी हो जाती है खान-पान, विचार-भावना सही रखना चाहिए और सब में उस मालिक का अंश, मालिक की रूह को देखना चाहिए। सबके अंदर प्रेमभाव रखना चाहिए। जो दूसरों की मदद करने लग जाता है, सेवा भाव, परोपकार सच्चाई आ जाती है, हिंसा-हत्या से दूर हो जाता है वह इंसान बन जाता है।
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उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज |
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