*सन्तमत क्या होता है*

जयगुरुदेव
16.12.2022
प्रेस नोट
जम्मू (जम्मू कश्मीर) 

*बाबा उमाकान्त जी ने समझाया सन्त, सन्तमत किसको कहते हैं*
*अंतर की साधना की समझाई बारीकियां*


इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 18 सितंबर 2022  प्रातः जम्मू (जम्मू कश्मीर) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सुमिरन, ध्यान, भजन तीनों जरूरी है।

*भजन में ध्यान और ध्यान में भजन बन जाता है*

सुमिरन एक बार करवा दिया जाता है। किसी को ध्यान में जल्दी दिखाई पड़ने लगता है तो उसमें आनन्द मिलता है तो उसी को ज्यादा करता है। किसी को भजन में आनंद ज्यादा मिलने लगता है तो वो वही करता है। लेकिन कोई भी करने लग जाओ तो उसी में दूसरी लाइन भी निकल जाती है। भजन में ध्यान और ध्यान में भी भजन बन जाता है। लेकिन जब लगातार करोगे तब। अगर 10 दिन किया, 2 दिन नहीं किया तो मन नहीं कहेगा करने को। इसीलिए लगातार करना रहेगा तब बात बनेगी।

*सन्त किसको कहते हैं ?*

महाराज जी ने 10 अप्रैल 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि सन्त उसे कहते हैं जिसको आदि और अंत का पता हो। यानि समझो यह सृष्टि की रचना कैसे हुई? देवी-देवता कैसे बने? अंड पिंड ब्रह्मांड कैसे बना? यह धरती आसमान कैसे बने? यह हवा पानी का निर्माण कैसे हुआ? और यह जीव-जंतु पेड़-पौधे और आदमी कैसे बना? और यह कैसे सिमटते हैं? और इनको कैसे भेज दिया जाता है? जीवात्मा को इसमें कैसे बैठा दिया गया? कैसे यह काम करती है? कैसे निकल के जाती है? कहां जाती है? इन सारी चीजों की जानकारी जिनको होती है, उनको कहते हैं सन्त। इसीलिए कहा गया सन्त पूरे होते हैं।

*सतपुरुष की आरसी सन्तन की ही देह।*
*लखना चाहो अलख को इन्ही में लख ले।।*

जिसको लोगों ने अलख कहा उसको अगर देखना चाहते हो तो सन्तों में देखो। सन्त आए तो उन्होंने सतगुरु कहना शुरू कर दिया। जैसे गुरु और सतगुरु होते हैं, दो नाम रखा गया। जो किसी भी चीज की जानकारी कोई दे देता है तो उसको गुरु कहते हैं। जैसे यह हमारे कुल गुरु हैं, ये पहले के गुरु हैं, ये कुलगुरु के खानदान के हैं, विद्या गुरु जो विद्या पढ़ाते हैं। जो राजनीति सिखाते हैं कहते हैं यह हमारे राजनीतिक गुरु है। व्यापारिक गुरु है व्यापार सिखाते हैं। ऐसे ही गुरु बहुत तरह के हो गए। सतगुरु वह होते हैं जो ऊपर का भेद बताते हैं, उनको सब मालूम होता है।

 *सन्तमत क्या होता है*

महाराज जी ने 28 मई 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए संदेश बताया कि सन्तमत अन्य मतों से अलग होता है। बाहर से यह नीरस दिखाई पड़ता है लेकिन अंदर में जब सरसता आती है तब लोगों को खूब रस मिलता है तो आनंद आता है। जैसे कहते हैं बहुत रस वाला यह आम है, फल है, इस अनार है। 

बहुत अच्छा लगता है जब रस मिलता है। ऐसे ही अंदर का रस भी मिलता है। बाहर का रस तो आपको मिलता है, उसमें आपको आंनद आता है लेकिन बाहर के रस यह सब फीके पड़ जाते हैं जब अंदर का रस मिलता है। जब सन्तमत मिलता है, सतगुरु मिलते हैं,  सन्तमत के अनुसार जब जीव साधना करने लगता है तो अंदर में रसाई होती है। फिर जब रस मिलता है तब मस्त हो जाता है। 

जब सन्तमत को पकड़ लेता है तब फिर नहीं छोड़ता है। देखो सन्तमत कोई आज का तो है नहीं। इसे कई सौ वर्ष बीत गए लागू हुए। लेकिन सन्तमत का विस्तार ज्यादा क्यों नहीं हो पा रहा है? क्योंकि सन्तमत के लोग बस वहीं तक सीमित रह गए- चौका, आरती, पूजा-पाठ, भीड़ जुटाने तक जिससे यह गद्दी चलती रहे, हमारे गुरु का नाम चलता रहे, लोग आते-जाते रहे। लोग किस तरह से खुश हो जाए तो सबकी मूर्ति लगा लो- राम कृष्ण विष्णु शिव शनि बाबा, उनका भी मंदिर बना लो, फोटो लगा लो। 

जिसको जो भी मानता है वो सब यहां आने लग जाए, यहां का, मठ का खर्चा चलने लग जाए, हमारा सम्मान बढ़ जाए। इसमें लोग लग गए। असली चीज को छोड़ दिया। अगर असली चीज को लोग पकड़ लें, सन्तमत का विस्तार करने लग जाए तो संतमत की बातें लोगों के समझ में आने लग जाएगी। यदि सन्तमत के लोग इसका प्रचार-प्रसार जोरदार करने लग जाए तो सन्तमत बहुत सुखदाई है। सन्तों का यह बताया रास्ता बहुत आसान और सरल है। पहले बड़ा कठिन था। अब यह बहुत सरल है। तो सरल रास्ते पर चलकर के मंजिल पर हर कोई पहुंचना चाहता है। हर कोई सस्ता और अच्छा चीज चाहता है।




Baba umakant ji Maharaj


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