संकल्पित भोजन, चीज नहीं खाना, नहीं उपयोग में लेना चाहिए

जयगुरुदेव

18.12.2022
प्रेस नोट
उज्जैन (म. प्र.) 

*बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताये दिन मौसम के अनुसार खान-पान सम्बंधित पारंपरिक बातें*

*संकल्पित भोजन, चीज नहीं खाना, नहीं उपयोग में लेना चाहिए*


अब लुप्तप्राय हो चुके प्रकृति निर्धारित व प्राचीन भारतीय नियमों का बोध करा कर मनुष्य को शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से लाभ पहुचाने वाले, खान-पान आचार-विचार-व्यवहार बोली-वाणी को ठीक करने वाले, आध्यात्मिक साधना में बाधाओं से साधक को सतर्क करने वाले, प्रेत बाधा समेत सभी तरह की तकलीफों दुखों बिमारियों में आराम दिलाने वाले, चाहे रुखा सूखा हो या हलवा पूड़ी ह्रदय से प्रेम से भाव से भगत जो भी खिलाये भोग लगाए, उसका भोग स्वीकार करने वाले, द्रष्टि स्पर्श आदि कई तरीकों से भोग को प्रसाद बना कर भक्त को दया कृपा देने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 4 अक्टूबर 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि ऐसा कहते हैं कि रविवार को पान खाकर के जाओगे तो जो माहौल, वातावरण शरीर के विपरीत है उसका असर नहीं होगा। पान फायदा करता है। रोगों को दूर करने, ताकत बढ़ाने के लिए खाली चूने का पान खाए जाए तो कैल्शियम की कमी दूर होगी, हड्डियां मजबूत होगी, पाचन शक्ति तेज होगी। सुपारी डालने लगे। सुपारी पेट में पड़ी हुई चीज को हजम करती है। लेकिन उसमें जब तंबाकू डालने लग गए तो पान नुकसानदेह और जहरीला हो गया। पुरानी पद्धति से कथा भागवत अनुष्ठान करवाने वाले विद्वान, पंडित जी ताम्बूल रखवाते हैं, कहते हैं देवताओं को प्रिय है। उसे धीरे-धीरे अगर मुंह में चूसते रहो तो उसका बहुत अच्छा असर रहेगा। उसका रस धीरे-धीरे अंदर जाएगा, धीरे-धीरे काम करेगा। एकदम से कोई चीज खाओगे तो डायरेक्ट सीधा पेट में और पाचन प्रक्रिया में चला जाएगा। तब असर उतना नहीं करता है। फिर तो वह मल के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इसलिए कहते हैं धीरे-धीरे चूसो और इसलिए डॉक्टर लोग कहते हैं यह गोली मुंह में रख कर धीरे-धीरे इसको चूसते रहो। मंगल को अगर कहीं जाना हो तो थोड़ा गुड़ खा लो तो वह असर कम हो जाएगा। बुद्धवार को धनिया खाना चाहिए। बृहस्पतिवार को जीरे का चार दाना मुंह में डालो तो वातावरण हवा पानी का असर उतना नहीं होगा। शुक्रवार को दही खाकर जाने से सही रहता है। शनिवार को अदरक फायदा करता है। ठंडी के महीने में गर्म चीज खानी चाहिए जैसे हल्दी, गरम मसाला आदि। पैसे वालों को काजू, बादाम खाने चाहिए तो ठंडी का असर नहीं होगा। गर्मी के महीने में तरबूज, खरबूज, खीरा खाना चाहिए। शरीर को पानी की कमी नहीं होगी, शरीर गर्मी को बर्दाश्त कर लेगा।

*मूली खीरा दही खाना कब ज्यादा फायदा करता है*

महाराज जी ने 23 अक्टूबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि सुबह मूली मूल है यानी अमृत तुल्य है। दोपहर को मूली का गुण और शाम को मूली सूली के समान यानी नहीं खाने लायक है। सुबह खीरा हीरा है दोपहर में खीरा के गुण और शाम को खीरा पीड़ा (देने वाला) है। सुबह दही सही है और शाम को दही नहीं (खाना चाहिए)। दिनातरे पीबेत दुग्धम निशान्तरे पिबेत पय:। सुबह उठकर के पिछली शाम का रखा पानी पी करके शौच जाना चाहिए। न जानकारी में लोग कहते हैं शाम को दही बड़ा नहीं खिलाओगे, सलाद नहीं बनाओगे तो ठीक से भोजन नहीं कराया, भोज इनका अच्छा नहीं हुआ।

*संकल्पित भोजन चीज नहीं खाना, नहीं उपयोग में लेना चाहिए*

महाराज जी ने 19 अक्टूबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि सबने कहा, मृत्यु भोज, संकल्पित अन्न सन्तमत के लोगों को नहीं खाना चाहिए, संकल्पित चीज का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यह जो छोटे-छोटे देवता लोगों ने बना लिए, उनके स्थान पर चढ़ाया हुआ कोई भी चीज सन्तमत मानने, सुरत शब्द की साधना करने वालों को नहीं खानी चाहिए। देवता को पहले लोग भोग लगाते, खिलाते थे तो देवता खुश होते थे और खुश होकर के इस शरीर के अंगों के अंदर गुण पैदा कर देते थे, संचार शक्ति ला देते थे। जब उनको भोग लगा करके उनकी ताकत का इजहार उसमें करा करके लोग खाते तो उसका फायदा होता था लेकिन अब इस समय मलीन युग में न तो लोगों को मालूम है कि कैसे बुलाया जाता है और न खिला पाते हैं। जो यह अन्य आत्माएं 17 तत्व के लिंग शरीर में होती है, जो शरीर के ऊपर कूद करके, आकर के अपने को ही देवी देवता हनुमान बताने लगती है, लोग उन्हीं को देवता मान करके खिला देते हैं। देवताओं को बुलाने, खिलाने, भोग लगाने का तरीका नहीं मालूम तो लाभ नहीं मिल पाता है। सन्तों ने कहा उनको चढ़ाया हुआ संकल्पित अन्न नहीं खाना चाहिए। आप बहुत से सतसंगी गुरु का भोग लगाते हो, गुरु की तस्वीर के सामने आप रखते हो लेकिन आपको यह नहीं पता कि आपका भोग स्वीकार करते हैं कि नहीं करते हैं। आपने तो रख दिया, उसके बाद ले गए, मिला दिया, खा लिया। जब तक अंतर में आप देख नहीं पाओगे कि आप के भाव के अनुसार वह ग्रहण कर रहे हैं या नहीं कर रहे हैं तब तक वह प्रसाद नहीं बनेगा। लेकिन आपकी भावनाएं, इच्छा रहती है कि हम जो बनावे वो पहले गुरु को अर्पण करें, गुरु को खिलावें उसके बाद हम खाये। चलो आपकी भावनाओं को ठुकराया नहीं जा रहा है, उसकी कदर की जा रही है। चलो धीरे-धीरे सीख जाओगे। अभी तो आप तस्वीर के सामने रखते हो फिर आप आंख बंद करना, ध्यान लगाना भी सीख जाओगे फिर उनको भोजन करते हुए, उनको प्रसादी छोड़ते हुए भी दिख जाओगे।





Baba umakant ji maharaj 


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