बाबा जयगुरुदेव जी ने अपना परिचय दिया
उत्तर प्रदेश में 30 सितम्बर 2003 से एक माह के लिए निकलने वाले काफिले की तैयारियों के लिए गुजरात प्रान्त के सूरत शहर में 16 अगस्त को गोष्ठी का आयोजन था। प्रकाश चन्द रामलाल सोलंकी उर्फ बच्चू भाई के आवास पर आना हुआ। उन्होने वर्ष 1980-81 के आस पास की बीती घटना को बयान किया जिसे उन्ही के शब्दों में दिया जा रहा है-
स्वामी जी के प्रति हमें थोड़ी सी शंका हुई थी। स्वामी जी महाराज कहते हैं कि मैं ऊपर मिलूंगा और जीवात्मा को बचा लूंगा तो क्या सचमुच में स्वामी जी ऊपर मिलेंगे और यमदूतों से बचा लेंगे ?
थोड़े दिन बाद दोपहर में मैं लेटा लेटा ध्यान की अवस्था में था। मैंने देखा कि जीवात्मा शरीर को छोड़कर बाहर निकल गई। जीवात्मा अपने शरीर पिंजरे को भी देख रही है और सामने यमदूतों को भी देख रही है। यमदूत मुझे पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं किन्तु उन्हें सफलता नही मिल रही है। उन्होंने बड़े बड़े पेड़ मुझ पर गिराये मैंने ज्यों ही जयगुरुदेव बोला पेड़ सीधे हो गये। उन्होंने मुझे बहुत डराया धमकाया लेकिन वे मेरा कुछ बिगाड़ न सके।
उन्होंने मुझे मारने के लिए शस्त्रों का प्रयोग किया कि जयगुरुदेव बोलते ही शस्त्र अपनी जगह पर रुक जाते थे। उन्होंने बड़ी कोशिश की लेकिन मेरी जीवात्मा काबू में नही आई। फिर वे लौटकर यमराम के पास गये। यह सब कुछ मैं देख रहा था। साफ साफ सब कुछ दिखाई पड़ रहा था।
– नन्हूक प्रसाद गुप्त
इसके बाद यमराज स्वयं मुझे लेने आए। यह भी हमने साफ देखा। पास आने की हम्मत नही जुटा पाये और दूर से ही मेरी जीवात्मा को काबू में करने यानी पकड़ने की कोशिश की लेकिन एकाएक स्वामी जी महाराज वहां प्रगट हुए और कड़क आवाज में बोले कि ये हमारा जीव है तुम नही ले जा सकते इसके बाद सभी दृश्य गायब हो गये और मैं पुनः अपने शरीर में प्रवेश कर गया।
फिर धीरे धीरे चेतना आई और आंखे खुलीं। मैंने देखा कि मैं अपने बिस्तर पर था। मैंने घड़ी में समय देखा तो ढाई बज रहे थे। तीन बजे की शिफ्ट की ड्यूटी में मुझे जाना था। मैं किसी तरह तैयार होकर ड्यूटी पर चला गया। लौटने पर मैंने परिवार वालों से स्वामी जी महाराज की दया की चर्चा की।
दूसरा अनुभव भी महत्वपूर्ण है। वर्ष 1982 की साधना शिविर मे भी विजयशंकर मिश्र सहित हम लोग पांच आदमी मथुरा गए थे। उस समय सत्संग सुबह दोपहर और शाम तीन बार होता था। दोपहर का सत्संग एक बजे होता था। हम और मिश्रा जी दिशा मैदान गए थें उसी बीच सत्संग का समय हो गया। स्वामी जी मंच पर पहुंच गए और आवाज लगाई कि चलो बच्चो जल्दी चलो।
हमने आवाज सुनी तो हमारे मुह से निकला स्वामी जी जरा ठहरिए हम अभी आते हैं हम लोग जल्दी जल्दी हाथ मुंह धोकर मैदान में जब पहुंचे तो देखा स्वामी जी महाराज मंच पर खड़े थे। फिर बोले कि जाकर तुम लोग आवाज लगाते कि स्वामी जी जरा ठहरो हम अभी आते हैं। यह बात ठीक नहीं। समय से पहले आया करो।
यह सुन के हम सभी लोग दंग रह गए क्योंकि स्वामी जी ने ठीक उसी तरह शब्दों को कहा था जैसे हमने कहा था। स्वामी जी हमारी वजह से इतनी देर तक मंच पर खड़े रहे इसका पश्चाताप भी हुआ। स्वामी जी महाराज अंतर्यामी हैं सब कुछ देखते सुनते रहते हैं इस बात का परिचय हम लोगों को मिल गया।
महात्मा सब जानते हैं
कलकत्ते की बात है। मैं अक्सर वहां जाया करता था। एक सेठ जी मेरे पास आए और मुझसे कहा कि महाराज जी मेरे घर चलिए। जब मैं उनके घर गया तो उन्होंने मेरी बहुत आवभगत की और बिल्डिंग के अपने निजी कमरे में ठहराया। उनके भाव देखकर मैंने उनको थोड़ा सत्संग भी सुनाया वो बड़े प्रभाहित हुए।
जिस कमरे में रुका था खूब सजा धजा था। सुन्दर कालीन फर्श पर बिछी थीं एक कोने में तिजोरी था। बातचीत के सिलसिले में मैंने सेठ जी से पूछा कि इस तिजोरी में क्या रक्खा है ?
उनका जवाब था कि कोई खास चीज नही कुछ कागजात हैं। मैं चुप हो गयां थोड़ी देर बाद सेठ जी ने विश्राम करने की इजाजत मांगी और विश्राम करने के लिए चले गए।
आधी रात के समय कमरे मे कुछ आहट हुई तो मेरी नींद खुल गई। मैंने देखा कि सेठ जी खड़े हैं। मैं उठकर बैठ गया और पूछा कि सेठ जी क्या बात है।
सेठ जी हाथ जोड़ते हुए कुछ हिचकिचाहट के साथ बोले कि कुछ नही मुझे नींद नही आ रही थी तो सोचा कि आपके पास चलूं।
मैने कहा कि ठीक है बैठ जाइये। सेठ जी कुर्सी पर बैठ गए। कुछ बातें हुई फिर सेठ जी ने पूछा कि महाराज जी आप ने तिजोरी की बात पूछी थी। मैंने कहा कि हां मैंने ऐसे ही पूछ लिया था।
सेठ जी ने विनम्र भाव से पूछा कि महाराज आप ही बता दीजिए कि इसमें क्या है।
सेठ जी की बात सुनकर मैं हंस पड़ा। फिर मैंने कहा कि मैंने तो वैसे ही पूछ लिया था। सेठ जी के जिद करने पर मैंने कहा कि इस तिजोरी में सौ सोने की छड़ें, इतनी ही सोने की मोहरे, इतने हीरे, इतने ही नोट आदि है।
मेरी बात सुनते ही सेठ जी का चेहरा उतर गया। दीन भाव में बोले कि महाराज जी आप को कैसे मालूम हुआ ? मैंने कहा कि सेठ जी पहले यह बताएं कि जो मैंने कहा है वह सच है या नहीं। सेठ जी ने कहा कि महाराज जी जो आप ने कहा है वह सब सच है मगर आप ने यह बात जान कैसे लिया ?
मैंने बात टालने की कोशिश की लेकिन सेठ जी के बार बार आग्रह करने पर मैंने हंस कर कहा कि मेरे पास एक ऐसी बूटी है जिसे सूंघ लेता हूं तो सब कुछ मालूम हो जाता है।
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