हरिद्वार की प्रतिज्ञा

जयगुरुदेव 

हरिद्वार की प्रतिज्ञा
कुम्भ उस समय लगेगा जब ये बातें हो जायेंगी। अभी ये स्नान हिंसा का हो रहा है, खून का हो रहा है, दुराचार का हो रहा है। तुम जयगुरुदेव नाम बोल दो हम जीवात्माओं को नाम गंगा में स्नान करा देंगे।
अब तो इन प्रेमियों का काम बताने का हो गया। इन्होने बालुका के कण को खाकर प्रतिज्ञा कर लिया। ये हरिद्वार की प्रतिज्ञा है। 

सबने हाथ उठाकर की है। देश में क़त्ल, चोरी, व्यभिचार, तोड़फोड़, आन्दोलन, गर्भपात, नसबन्दी, रिश्वत, बेइमानी ये सारे एम.पी. और एम.एल.ए. कराते हैं। तुम प्रतिज्ञा करो कि इन सबको निकाल बाहर करेंगे। सभी हाथ उठाकर प्रतिज्ञा करते हैं कि निकाल बाहर करेंगे।

मेरा साथ दे दो
हमारी तालीम जो इस पराविद्या की है सब जगह फैल रही है। यह आध्यात्म विद्या की तालीम धीरे धीरे चारों और फैल रही है और पूरे हिन्दुस्तान में फैल जायेगी। यह राजनीति नही है समाजनीति है। यह कोई दूसरी बात नही है इसे आगे भविष्य बतायेगा। 

तुम अपनी जगह पर स्तम्भ बनो फिर देखो कि यह समाज कैसे एक आदर्श प्रेम का समाज बन जाता है। मैं तो हिन्दुस्तान के कोने कोने में इसे फैलाना चाहता हूं। इस मार्ग पर चलने पर तुम्हें दोनों प्राप्त होगा लोक भी और परलोक भी फिर तुम क्यों देर करते हो ?

मैं तो राजनीति वालों से कहता हूं कि तुम मेरा साथ दे दो तो फिर देखो कितनी जल्दी इस समाज का नैतिक सुधार होता है। तुम थोड़ा सा मेरा साथ दे दो तो देखो कितनी जल्दी सारे देश में अमन चैन और आनन्द और सुख फैल जाता है।

मैं तो चाहता हूं मिनिस्टरों को भी सुना दूं और साधारण जनता को भी सुना दूं मगर अभी लोग कम सुनते हैं मगर एक दिन तुम्हें सुनना ही पड़ेगा। वक्त आ रहा है। समय तुम्हें अपने आप ले आयेगा। अभी तुम चाहे जैसे रह लो पर आगे वक्त खराब आ रहा है जब तुम्हे मजबूरन सुनना होगा क्योंकि और कहीं शान्ति मिलेगी ही नही। 

शान्ति के लिए कष्टों से बचने के लिए जब तुम दौड़ोेगे तो शान्ति तो केवल महात्माओं के पास ही मिलेगी। अन्यत्र कही नही। तब तुम्हें मजबूरन आकर सुनना होगा। समय तुम्हें ले आएगा। मेरी बात सही और सत्य उतरेगी।

3 अयोध्या में कुम्भ
सात नवम्बर 1971 को बिहार के सोनपुर से हजारों साइकिलों यात्रियों की यात्रा प्रारम्भ होकर 3 दिसम्बर को कानपुर के फूलबाग मैदान में सम्पन्न हुई। यात्रा में लगभग चालीस पचास मील की दूरी पर पड़ाव डाला जाता था। 12 नवम्बर 1971 को जब साइकिल यात्री अयोध्या पहुंचे तो वहां काफी लोगों को बाबा जयगुरुदेव जी के खिलाफ प्रचार करके भड़काया गया था। 

साधू भी काफी संख्या में यात्रा के खिलाफ थे, परन्तु यात्रा पहुंचने से पहले ही कई सत्संगियों ने सभी साधुओं के भ्रमों का निवारण कर दिया था और वे शान्त हो गये थे। तत्पश्चात शीघ्र ही वहां पर एक बड़ा मंच तैयार किया गया।

अयोध्या के विभिन्न महात्माओं द्वारा प्रवचन समाप्त करने के बाद स्वामीजी महाराज ने जयगुरुदेव नाम के उदघोष के बाद कहा कि अयोध्या निवासी नर नारी, साधु भाव प्रेमी सज्जन सबसे पहले अपना परिचय दूंगा। मैं आपके सामने एक साढे़ तीन हाथ का आदमी हूं जिसका नाम माताओं ने तुलसीदास रखा। 

मैं विदेशी नहीं भारत का हूं जहां गंगा जमुना बहती है। मैं सत्य अहिंसा, प्रेम, मानवता, समानता, समाज सुधार आध्यात्मिकता का पुजारी हूं। यदि ऐसा न होता तो आज अयोध्या में आप जो लाखों का दृष्य देख रहे हैं वह देखने को न मिलता।

मैं आत्माओं को मानता हूं तथा इन आत्माओं को बनाने वाले सर्वेश्वर स्वामी को मानता हूं। जब महापुरुष शरीर में रहते हैं तो उन्ही को साकार करते हैं। शरीर छूटने पर वह ऊपर की दिव्य शक्ति में मिल जाते हैं और तब उनको निराकार कहते हैं। मैं सनातन धर्मी हूं चन्दन लगाने का नाम सनातन नहीं है। जब मन निर्मल हो जायेगा, सब विकार खत्म हो जायेंगे तभी प्रभु को प्राप्त कर सकते हो। 

चन्दन पोतने से यह काम नही होगा। यह साधु की भेष भूषा है जो आनन्द, मुक्ति और सुध की भेष भूषा है। अगर साधु भेष भूषा वाले लोग निकलकर देश में प्रचार किये होते तो 24 वर्षों में देश में राम राज्य हो गया होता। दाढ़ी बाल रखने से साधु नही हो जाते। जिसकी जीवात्मा मनुष्य शरीर रहते प्रभु को प्राप्त कर ले वही साधु है।

आज चरित्रों का नाम निशान मनुष्यों के हृदय पटल पर नहीं रहा। चारों ओर हाहाकार मच गया और सब लोग रोने लगे। प्रभु ने सोचा कि इनके दुख को मिटाया जाय। महात्माओं के प्रार्थना करने पर ऐसी शक्तियां आती हैं। ये मां के गर्भ में आती हैं और उनका दूध पीकर बड़ी होती हैं। 

ये प्रारम्भ काल से ही योग कार्य मे लग जाती हैं। योग साधन समाप्त करके तब महान कार्य करती है।। सब लोग इन शब्दों पर ध्यान रखें।आकाश के ऊपर बड़े बड़े ब्रह्माण्ड पार ब्रह्माण्ड हैं जिसका वर्णन रामायण में मिलता है। ऊपर जाने का रास्ता इसी मनुष्य शरीर के भीतर से हैं। 

मनुष्य शरीर में यह रास्ता मिल जाय तो ऊपर के ब्रह्माण्डों में पहुंच कर पूर्ण प्रेम, शान्ति एवं शक्ति की प्राप्ति हो जाये वर्ना कोई ज्ञान नहीं हो सकता। इन्हीं ब्रह्माण्डों से महात्माओं को भूमण्डल मे भेज दिया जाता है। महान आत्माओं का जन्म भारतवर्ष में हो चुका है जिसकी उम्र 30 वर्ष से ऊपर है । 

वह महान आत्मा सबको संगठित कर लेगी जिससे परिवर्तन अवश्यम्भावी है। महान आत्माओ का पुनर्जन्म होने पर परिवर्तन अवश्य होता है।
जब जब होई धर्म की हानि बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।
तब तब धरी प्रभु मनुज शरीरा। सदा हरहिं महि सज्जन पीरा।

जब लोग पापधारी, वर्ण शंकर और सत्य तथा समता से दूर हो जाते हैं तो पापाचार मिटाने के लिये महान आत्मायें आती हैं। कोई भूत या देवता बनकर मुझसे वायरलेस से कुछ कहता है कि मानवों को बताओं कि ऐसा समय आ रहा है। समय से सभी महान शक्तियों ने चेतावनी दी थी। समय से राम कृष्ण कबीर मोहम्मद ने चेतावनी दी। समय से मुझे चेतावनी देने के लिये विवष कर दिया गया कि दुनिया को सुना दो।

साकेत महायज्ञ
अहमदाबाद में सतयुग आगमन साकेत महायज्ञ का आयोजन 25 दिसम्बर 1977 से 5 जनवरी 1978 तक हुआ। उसी समय पर देवताओं की पार्लियामेन्ट भी बैठी थी। संसार को अघोर स्थिति को देखकर देवता काफी नाराज थे। उनको इच्छा थी कि सृष्टि मे ऐसी उथाल पुथल विनाश मचा दी जाय जिससे यहां कि बिगड़े नास्तिक और अहंकारी मानवों का विनाश हो जाय। लेकिन बाबाजी की मौज नही थी की अभी इतना बड़ा नर संहार हो।

बाबा जयगुरुदेव जी ने देवताओं से कहा कि तेरह आने आबादी कम हो जायेगी तो बहुत बड़ा विनाश हो जायेगा। आप सब लोग इतने क्रोधित न हों। संसार के जीव भूले हुये हैं, अज्ञानता में भरे हैं इसलिये इनको थोड़ा ओर समय दे दें सम्हलने केलिये चेतने के लिये और धर्म कर्म धारण करने के लिये।

बाबा जी की प्रार्थना पर देवतागण थोड़े शान्त हुये। उन्होने कहा कि ठीक है। साथ में यह भी कहा कि पूरब,पश्चिम, उत्तर व दक्षिण दिशाओं को तो आप मेरे ऊपर छोड़ दीजिए उसे हम लोग जैसे चाहेंगे वैसे ठीक करेंगे। बीच के भाग को आप अपने अधिकार में ले लीजिए।

जीवों को जैसे चाहिए समझाइये बुझाइये, धर्म पर चलाइये किन्तु थोड़ा अधिकार अपने मध्य क्षेत्र में भी हमें दे दीजिये जिससे जो हठधर्मी लोग आप की बातों को न मानें अथवा बातों की अवहेलना करें उनको हम ठिकाने लगा सकें।

देवताओं ने एक जहार प्रस्ताव पास किये। पांच प्रस्तावों को बाबाजी ने अहमदाबाद में उपस्थित जनता को सुना दिया और शेष नौ सौ पिन्चानवे प्रस्तावों को नही बताया। यह जरूर कहा किदेवताओं ने 2000 तक का समय दिया है सम्हलने के लिये। महात्माओं की बात माननी चाहिये।

बाबा जयगुरुदेव जी महाराज बचपन में कई राजाओं के यहां रहे जहां राजकुमारों जैसी सेवा और देखभाल उनकी होती रही। किंतु किसी स्थान पर वो बंधकर नही रहे और मौका निकालकर चुपचाप वहां से चल दिये। परमात्मा की तलाश में उनकी यात्रायें चलती रहीं। बाबाजी सन् 1945 में राजस्थान के एक स्टेट में थे। 

राजघराने में उनका बड़ा आदर सत्कार था। एक दिन बातचीत के दौरान मौज में आकर बाबा जी ने राजा साहब से कहा कि राजा साहब! होशियार हो जाइये अब ये स्टेट जाने वाली है। राजा साहब ने कहा कि महाराज ऐसे कैसे हो सकता है। कोई भी राज करे बिना राजा की मदद के वह कैसे शासन कर सकता है?

स्वामी जी महाराज ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अभी नही मानते तो जब हो जाय तब मान लेना। सन् 84 में भारत आजाद होने के बाद सरदार पटेल के प्रयत्न से जब स्टेटें विलय होने लगीं तब स्वामी जी की बातें राजा साहब को याद आई फिर राजाओं के बीच स्वामी जी महाराज की खोज होने लगी।

सन्! 50 का समय था। स्वामी जी महाराज एक जमींदार के यहां ठहरे हुये थे। एक दिन स्वामी जी महाराज ने जमींदार साहब को सलाह दी और कहा आप अपनी सारी जमीन बेचकर नकद कर लीजिये जमीदारी जाने वाली है।

जमीदार साहब ने कहा कि नही स्वामी जी ऐसा नहीं हो सकता यह असम्भव है। जमींदार के बिना कोई शासन नहीं कर सकता । जमींदारी नहीं जा सकती। स्वामी जी ने उनसे पुनः कहा कि आप मेरी बात मान लीजिये वर्ना बाद में पछतायेंगे। समय आने पर कुछ न कर सकेंगे।

जमींदार साहब ने कहना नही माना। सन! 53 में जमींदारी समाप्त हुयी। जमींदार साहब के गांव के गांव हाथ से निकल गये। बाद में बहुत पछताये मगर क्या फायदा। दिल पर गहरा सदमा लगा।

मुक्ति मोक्ष चाहिये
बाबा जयगुरुदेव जी 16 जनवरी 1983 को प्रातः जब मद्रास हवाई अडडे पर पहुंचे तो वहां के प्रेमियों ने गर्मजोषी के साथ स्वागत किया। स्वामी जी को खुली जीप में बिठाया गया जो फूल मालाओं से सजी हुयी थी। साथ में बीस गाड़ियां थीं। मद्रास की सड़कों पर लोग इस दृश्य को देख रहे थे। 

लाउडस्पीकर से तमिल भाषा में एलाउन्समेन्ट किया जा रहा था। तमिल भाषा में पर्चे बंट रहे थे। काफिला गुजरता रहा। बच्चे बूढे जवान स्त्री पुरुष सभी भागते दौड़ते आते और बाबाजी का दर्शन करते और गाड़ी के पास जाकर पर्चे लेते थे।

18 जनवरी 1983 को बाबा जी ने श्री शान्ति विजय जैन बालविद्यालय प्रांगड़ में अपना सन्देश सुनाया। स्वामी जी ने कहा कि तमिलनाडू प्रान्त बड़ा धार्मिक है, यहां की नारियां धार्मिक हैं। सारा देश महात्माओं का है। सबको मुक्ति मोक्ष चाहिए। 

आज सारा देश दुखी है सबको तकलीफ है। आप की तकलीफों को दूर करने के लिए अवतारी महान शक्तियों की आवश्यकता है। जब हम अपने धर्म कर्म को छोड़ देते हैं तो पापों का घड़ा भर जाता है। ऐसे वक्त में महात्माओं की जरूरत पड़ती है। 

मनुष्य जीवन बड़े भाग्य से मिलता है वह इसलिए कि दिन में खेती दुकान दफ्तर का काम करो और शाम को बच्चों की सेवा उसके बाद आधा घंटा भगवान का भजन करो। यहां जो कुछ भी तुम देख रहे हो सब माया की छाया है। आप इसमें फंस गए हो और इसमें अपने जीवन को खत्म कर दोगे। 

मनुष्य शरीर अनेक जन्मों के पुण्य से मिलता हैं ऐसा अवसर फिर मिलेगा नहीं। आप ने ईश्वर के विश्वास को खो दिया इसलिए कष्ट आए। बाबा जी जानते हैं कि ये कष्ट कैसे दूर होंगे। आप महात्माओं के पास बैठते नहीं।

महात्मा आप को कुछ देना चाहते हैं और देते भी हैं तो आप को लेना नहीं आता। महान आत्मा कभी कभी किसी किसी प्रान्त में पैदा होती हैं इसलिए हर प्रान्त की भाषा थोड़ी बहुत जानना बहुत जरूरी है। महात्मा आशीर्वाद देते हैं उसे तुम्हें ले लेना चाहिए।

बाबाजी के उपदेश का असर उपस्थित सभी लोगों पर पड़ा। स्कूल की प्राधानाचार्या बड़ी प्रभावित हुई और उन्होंने कहा कि महाराज जी ने जिस सरल हिन्दी भाषा में आध्यात्मवाद के गूढ़ विषय को समझाया है उसे समझने मे हम लोगों को कोई कठिनाई नही हुई। 

बाबा जी से हम बहुत ही प्रभाहित हुए हैं और उनके उपदेशों को हम जीवन में उतारने का पूरा प्रयास करेंगे। यह हम लोगों का सौभाग्य है कि तमिलनाडू की धरती पर बाबा जी जैसे महान पुरुष के दर्शन हम लोगों को हुए और प्रार्थना करते हैं कि महाराज जी अपनी दया दृष्टि यहां की जनता पर सदैव बनाये  रखेंगे।

जयगुरुदेव....... 
baba jaigurudev ji maharaj



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