रहस्य की बात

जयगुरुदेव 
इमरजेन्सी के दिन

मुझे इमरजेन्सी में जेल में बन्द किया गया था। मैं वहां चुप रहा था । सब राजनैतिक पार्टियां के लोग मुझसे मिलने आते थे। वो मुझसे कहा करते थे कि आप एकदम चुप रहते हैं कुछ तो हमें सुनाइए कुछ समझाइये।
मैंने कहा कि जिस वजह से आप लोग यहां आये हैं उसी में हम भी यहां आये हैं। अब हम क्या कहें। 

आप खुद सोचिये, आप भी तो सब देख सुन रहे हैं। वो लोग मेरे सामने रोते थे कि हम लोग निकल पायेंगे कि नहीं। मैं उनसे कहता था कि आप लोग निकलेंगे तो आप लोगों को बहादुरी का खिताब मिलेगा, मुझे तो कुछ मिलना नहीं है। बाहर से अन्दर अच्छा है। यहां बैठकर हम भजन करते हैं। मैंने उनको कहा जेल मे हो तो यहां आन्दोलन हड़ताल मत करो, कुछ रामायण पढ़ो, गीता पढ़ो, खुदा को याद करो तो वो लोग कहते कि यह सब कुछ नहीं। हमसे लोगों ने कहा कि हम आपको बेड़ी पहनायेंगे। मैंने कहा पहनाइये। 

मैं वहां चुप रहता था। वो लोग यही कहते थे कि ये चुप रहते हैं। मैंने कहा कि आप को जो करना है करलो। तनहाई दे दो, यहां रक्खो, कही और भेजो मुझे कुछ नहीं कहना। मैं तो अपने गुरु महाराज की बात याद करता रहता हूं। वो कहा करते थे कि जब अन्तर दृष्टि खुल जाती है तो ये दिखायी पड़ता है कि जीवों पर कितना कर्म भार लदा है और उनको कैसी कैसी सजा मिलेगी। और यह कर्मो का पहाड़ बिना योग अग्नि के कोई नही जला सकता। सब भोगना पड़ता है।

अगुआकार मुल्ला मौलवी से
आप यह कहते हो कि मोहम्मद साहब के बाद अब कोई भी खुदा का पैगाम लेकर नहीं आयेगा। आपकी समझ अपनी जगह पर है पर जो पैगाम मोहम्मद साहब ने लिखा है क्या आप उस पैगाम पर चल रहे हो ? इस्लाम के हुकुम को मान रहे हो ? आपने मोहम्मद साहब को नहीं देखा और खुदा को भी नही देखा और हम सब लोग इस्लाम से महरूम हो गये। 

यह माना जाये कि खुदा की मर्जी हो जाये कि हमारे इस्लाम और हुकुम को कोई नहीं मानता तो मैं दूसरे बेटे को इस्लाम और खुदा का पैगाम सुनाने के लिए भेज दूं तो क्या मुल्ला मौलवी और इमाम और मुसलमान उस पैगाम को कुबूल नहीं करेंगे ? क्या आपकी मर्जी खुदा के ऊपर है ? 

आपने उसकी सूरत को भी नहीं देखा और मुहम्मद साहब की शक्ल को भी नहीं देखा, जितने भी पीर पैगम्बर आये उनको भी नहीं देखा तो ऐसे गुनहगार हालत में जबकि हमारे दिल पर गुनाहों का महल बन गया, ऐसी सूरत में क्या आप सोचोगे ? 

इस्लाम के कलाम को कबूल करो, रहम ईमान बरकरार। मोहब्बत और प्यार इंसानियत का सुकून है। दिल को साफ रक्खो और झूठी ख्वाहिशो की कुर्बानी करो। रूह को साफ करो, परवर दिगार की तरफ लगाओ। दोनों चश्मों के बीच में जो आंख है वह साफ हो जायेगी तो खुदा का दीदार करेगी। इबादत इसीलिए की जाती है कि हम पाक साफ हो जायं न कि गन्दगी को जमा करने के लिए।

इस्लाम कहता है कि एक कतरा भी शराब मत लो। एक ही कलाम को कुबूल नहीं करते फिर सब कलाम कैसे समझोगे। दिमाग बदफैली में दौड़ रहा है। क्या आप ने इस पर भी कुछ सोचा कि खुदा कैसे अपना हुक्म सुनायेगा।
सितम्बर 2001

रहस्य की बात
यह सन् 1971 ई. की बात है। जयगुरुदेव नाम प्रचारा करने वाले बाबा स्वामी जी महाराज ने बिहार प्रान्त के जिला सोनपुर, हरिद्वार क्षेत्र से दिल्ली तक एक साइकिल प्रचार यात्रा जन-जागरण हेतू निकाली थी। जिसमे बीसों हजारें साइकिलें थीं। जिसका पड़ाव प्रत्येक 40 मील पर पड़ने वाले शहर में पड़ता था। कुछ पड़ाव इससे भी दूरी के थे। मैं भी शौभाग्य से इस वर्ष की यात्रा में शामिल हो गया। मेरी उम्र 22, 23 वर्ष की रही होगी। 

स्वामी जी महाराज उस समय कोरा आध्यात्मवाद का सन्देश ढाई ढाई घण्टे तक सुनाया करते थे। मुझे उनमें से तो बहुत याद नही हो पाता था लेकिन एक बात जो प्रतिदिन सत्संग सुनाने के मध्य बताया करते थे वह रहस्य भरी बात आज तक भी नहीं भूल पाती है। वह यह है कि ऐ नर नारियों! यह देखलो तुम्हारे सामने खम्भे में कुछ बांधकर गाड़ा गया है। यह पूरी यात्रा भर इसी तरह बंधा रहेगा। प्रत्येक पड़ाव पर गड़ता उखड़ता रहेगा। 

दिल्ली के पड़ाव पर पूज्य बाबाजी ने कहा था कि ऐ दिल्ली वासियों! यह देश की राजधानी है। आपके सामने यह झंडा खम्भे में बांधकर गाड़ा हुआ है। यह बंधा ही बंधा चल रहा है। यह अभी नहीं खुलेगा। जिस दिन यह खुलेगा उस दिन पूरे देश को पता चल जाएगा और जिस दिन यह खुलेगा उससे पहले मैं उसकी घोषण कर दूंगा। इसमें कोई राज है।

मैं सोचता था कि एक खम्भे में गड़ा हुआ झण्डा खुलने पर पूरे देश को पता कैसे चलेगा। लेकिन दिल्ली से यात्रा मथुरा आश्रम आई वहां से आगरा इटावा होते हुए कानपुर के अन्तिम पड़ाव पर जब पहुंची तो वहां पर अपना पूरा सन्देश सुनाने के उपरांत स्वामी जी ने यह कहकर सबको एकबारगी चकित कर दिया कि आज यह झण्डा खुलेगा। देखो मेरी बात को ध्यान से सुनो। 

जितने भी बस व्यवस्थापक या बस ड्राइवर हों, अपनी अपनी सवारियों को बैठाकर सीधे अपने मुकाम पर रवाना हो जाओ। तुरन्त शहर छोड़ दो यहां रुकने की या देर करने की जरूरत नहीं है, रास्ते में भी अगर कहीं शहरों में लाइट बुझाने की जरूरत पड़े तो अपनी लाइट बुझा लेना। फिर क्या था, सत्संग खतम होते ही सारी बसें बिना देरी के कानपुर शहर छोड़कर रवाना हो चली। एकाएक रेडियो पर आया पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोल दिया और आगरा तथा कानपुर की हवाई अड्डे को भी निशाना बनाकर उसे क्षतिग्रस्त कर दिया।

उस समय मेरा माथा ठनका कि महात्माओं फकीरों के कलाम में और उनकी क्रिया में कितना रहस्य होता है। और अब तो चरणों में पड़े पड़े कुछ कुछ यह पता चल गया कि महात्माओं की हर क्रिया में कोई न कोई राज छुपा हुआ होता है।
डा. ब्रजेश कुंवर सिंह

2 तुम नहीं पंहुच पाते हो
एक नवम्बर 1967 को बाबा जयगुरुदेव जी ने गोरखपुर में सत्संग किया और कहा कि जीवात्मा को परमात्मा से जोड़ने का मार्ग सन्तों के पास है महात्माओं के पास है। महात्मा जब जीवों को चेताते हैं तो सारे देवी देवता ब्रह्मा विष्णु महादेव तुम्हारे लिए दिन रात यही सोचते रहते हैं कि कैसे इन जीवों को सच्चे रास्ते से हटाया जाय। अतः वे बराबर रोड़ा डालते रहते हैं और इस बात को तुम समझ नही पाते हो। 

तरह तरह के बन्धन तरह तरह के कर्म, पूजा पाठ फसाहट के सामान तुम्हारे लिए तैयार कर रक्खा है जिसमें तुम फंसे हुए हो और उनसे तुम्हारा छुटकारा नहीं होता। माया के चक्कर में तुम दिन रात डोलते रहते हो और जहां सच्चा रास्ताा मालिक के पास जाने का होता है वहां तुम नहीं पहुंच पाते हो।

सिर जब ढका रहता है तब चेहरे की शोभा होती है। देवियों ने पुरुषों ने जब सिर को ढकना शुरु किया तो अब कितनी भव्यता चेहरे से टपकती है। अभी तो नही कुछ समय बाद सिर ढकने का नियम लग जाएगा और बाहर लिखकर गेट पर टांग दिया जाएगा कि वह सत्संग में बैठ सकता है जिसका सिर ढका हो।

मुझसे तुम आशा स्वर्ग में जाने की, बैकुण्ठ में जाने की, विष्णुलोक, रामलोक, कृष्णलोक, ब्रह्मलोक में जाने की, ईश्वर से मिलने की ही करना क्योंकि मैं इसी काम को करता हूं। दिव्य आंख, तीसरी आंख सबके पास है उसे मैं खोलता हूं। दो दिन चार दिन महीना दो महीना कर के तो देखो। लगन के साथ, प्रेम और विरह के साथ यदि साधना करोगे तो यह काम आसान हो जाएगा। जीवात्मा की आंख खुलने पर परमात्मा की सृष्टि और स्वयं परमात्मा दिखायी देता है।

मरीजों को मेरी सलाह
मेरे पास जब मरीज आते हैं तो परहेज के बारे में मैं उनको यही हिदायत देता हूं कि वो शाकाहारी रहें यानी मांस मछली अण्डा मुर्गी का सेवन न करें। साथ ही उन्हें नशे का इस्तेमाल भी नहीं करना है खास तौर से शराब, गांजा और भांग। ऐसी सलाह मे देता हूं।

चार साल पहले की बात है। एक युवक को उसके घर वाले लेकर मेरे पास आए। लड़का पूर्णतया विक्षिप्त था। मैंने उसे देखा और दवा देने के साथ साथ हिदायतें भी दे दी। मैंने कहा परहेज से रहेगा तो मालिक की दया से आराम हो जाएगा। थोड़े समय तक उसका इलाज चलता रहा और वो लड़का ठीक हो गया। उसके बाद मेरा सम्पर्क भी खतम हो गया।

भण्डारे के दिन थे। मैं मथुरा कार्यक्रम में गया हुआ था। शाम को सत्संग में बाबा जयगुरुदेव जी एकाएक मंच से बोले कि जब डाक्टर तुमको हिदायत देते हैं कि मांसाहारी भोजन मत करो तब तुमको बात माननी चाहिए और यदि नहीं मानोगे तो बीमारियां पलट कर आ जाएंगी।

यह सुनते ही मैं चौंक पड़ा। सोचने लगा कि इस वाक्य का सम्बन्ध तो मुझसे है। खैर सत्संग समाप्त हुआ। भीड़ बहुत थी और उसके  छटने में बहुत समय लगा और मैं इस प्रतीक्षा में था कि भीड़ कम हो तो अपने स्थान पर चलें। इतने में मैंने देखा कि वही युवक अपने दो तीन रिश्तेदारों के साथ मेरे पास दौड़ता हुआ आया। आते ही हाथ जोड़कर माफी मांगने लगा। 

पहले तो मैं कुछ समझ नही पाया किन्तु बाद मे पूछने पर मालूम हुआ कि अच्छा हो जाने के बाद उसने फिर से मांस खाना शुरु कर दिया था। नतीजा यह हुआ कि उसकी  बीमारी पलटकर वापस आ गई। उसके घर वाले मेरे पास रांची लाये किन्तु उन्हें जब मालूम हुआ कि मैं मथुरा भण्डारा कार्यक्रम में गया हुआ हूं तो वे भी मथुरा चले आये। वे उसी दिन मथुरा पहुंचे थे और शाम के सत्संग में बाबाजी का प्रवचन सुनने के लिए बैठ गये इस उद्देश्य से कि वहां तो उनकी मुलाकात मुझसे हो ही जाएगी।

मंच से कही गयी बाबाजी की बात को उन्होंने भी सुना कि जब तुमको डाक्टर हिदायत देता है कि शाकाहारी रहो तब तुमको उसकी बात माननी चाहिए और नहीं मानोगे तो बीमारी पलट जाएगी। यह सुनकर वे अचम्भित थे कि उन्हीं के विषय में बाबाजी ने मंच से कैसे कह दिया। 

यह अक्सर मेरा अनुभव है कि मरीज जब ठीक हो जाता है और यदि वह पुनः मांस खाने लगता है तो बीमारी वापस आ जाती है। फिर लोग आकर माफी मांगते हैं और कहते हैं कि मुझसे गल्ती हो गयी। इस संदर्भ में मैं एक और अनुभव जोड़ दूं कि एक दिन बहुत सीनियर महिला डाक्टर अपने एक रिश्तेदार को लेकर मेरे पास आयी।

उनको भी मैंने यही हिदायत दी लेकिन उनके मन में इस विषय पर काफी संशय था। उन्होंने सोचा कि मैं बाबा जयगुरुदेव जी के साथ हूं और शाकाहारी हूं इसीलिए मरीजों को यह निर्देश देता हूं।

कुछ दिनों बाद वो अपने मरीजों को लेकर आयी तों वह काफी हद तक ठीक हो चुका था। मैंने कहा कि संयम से रहोगे शाकाहारी रहोगे तो फिर तकलीफ नहीं होगी। बाद मे उन्होने अपने रिश्तेदार मरीज से कहा कि अब तो तुम ठीक हो मांस मछली खाना शुरु कर दो तो स्वास्थ्य ठीक रहेगा। अब तो तुम दवा से काफी ठीक हो गए हो।

वह महिला डाक्टर की बात मानकर मान्स खाने लगा। नतीजा यह हुआ कि बीमारी एकाएक बहुत बढ़ गयी। मैंने फिर सावधान किया और कहा कि मान्साहार भौतिक रूप से पाप कर्म हैं और आध्यात्मिक रूप से मांस खाने वालों को माफी नहीं मिलती। उस महिला डाक्टर ने मेरी बात को गहराई से सोचा और उसके बाद वे स्वयं अपने मरीजों को शाकाहारी रहने की हिदायत देने लगीं। 

अब उनका कहना है कि इससे उनको काफी अच्छे परिणाम मिले।
रोगी जल्दी ठीक होते थे और खास तौर से उनमें चिन्ता घबराहट बैचेनी आदि लक्षणों आदि में जल्दी आराम हो जाता था। उन्होंने मुझसे बताया कि अब वो अपने मरीजों को बराबर शाकाहार होने का ही निर्देश देने लगी हैं। 
-डा. शैलेन्द्र कुमार
Jaigurudev Itihas se jude pichhle panne

Jaigurudev


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