☀ जयगुरुदेव इतिहास के झरोखे से ☀
परम पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के गुरु महाराज के निजधाम जाने की तिथि अगहन सुदी दशमी संवत् 2005 शनिवार 11 दिसम्बर, 1948 है। दादा गुरु की याद में मनाये जाने वाले प्रथम चार भण्डारे सन् 1949 से 1952 तक ग्राम चिरौली, तहसील गइलास जिला अलीगढ़ में दादा गुरु के ग्राम में हुए। फिर 1953 से 1968 तक के 16 भण्डारे मथुरा के कृष्णानगर पुराना आश्रम में हुए।
परमार्थ का उद्देश्य लेकर बाबा जयगुरुदेव जी ने 10 जुलाई 1952 को वाराणसी से सत्संग का शुभारंभ किया। अर्दली बाजार महावीर रोड पर स्थित श्री श्याम कृष्ण वकील के निवास स्थान के बगीचे में सत्संग के पश्चात पांच लोगों को सर्वप्रथम नामदान दीक्षा दिया।
जैसा कि सदा से महात्माओं के साथ होता रहा बाबा जी को मानने वाले तो हुए विरोध करने वाले भी खड़े हो गये पर बाबाजी की ओजस्वी वाणी सभी अवरोधों प्रतिरोधों को पार करती हुयी अपना असर स्त्री पुरुषों पर डालती गयी। फिर गांव नगर शहर प्रान्त में सत्संग की धारा प्रवाहित होने लगी।
उस समय बाबाजी ने कहा था कि सत्संग की जो धार चल पड़ी है वह नाले नदी नहर का रूप धारण करती हुयी एक दिन समुद्र का रूप ले लेगी। वो बात अब प्रमाणित हो चुकी है। बाबाजी ने 20 करोड़ नर नारियों का जागरण भारत देश में 1972 के अन्त तक कर दिया था। बाबा जी ने 8 जुलाई 1971 को गोररखपुर में गुरुपूर्णिमा के सत्संग के अवसर पर कहा था कि आगे भारत का राष्ट्रपति मांस मछली अण्डा शराब ताड़ी से मुक्त होगा। उस दिन से भारत की जनता का भाग्य खुलना शुरु हो जायेगा।
दो महीना प्रतिनिधियों के बाद प्रान्तीय मुख्यमंत्री शाकाहारी, मद्यपान रहित हैं फिर एम पी, एम.एल.ए, शाकाहारी सदाचारी हों, उसके बाद पदाधिकारी शाकाहारी मद्यपान रहित हो। यदि ये तीन पीढ़ियां सुधर गई तो जनता की गरीबी का समय पलट जाएगा और जनता में सुख प्रेम शान्ति की लहर दौड़ पड़ेगी। जनता इसी का इंतजार कर रही है।
★ शराब के चलन की देन ★
आबादी बढ़ रही है। इसे रोकने के सभी प्रयास असफल हो गये।
जनता के मुताबिक देश में उद्योग धन्धों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। जनता को रोजगार दिलाने में राजनैतिक लोग असफल हो गये। देश में शराब का चलन और उत्पादन अधिक बढ़ता जा रहा है।
देवियां शिकायत करती हैं और कहती हैं कि पति की शराब पीने की आदत छुड़ा दीजिए घर नर्क बन गया है। शराब के नशों के कारण उद्योग धन्धा मन्द गति पर पहुंच गया है। समाज के जितने भी काम हैं खेती दुकान दफ्तर के सब मन्द गति से चलने लगे हैं।
शराब के चलन ने मजदूरों में सुस्ती ला दी है। मजदूर काम नहीं करना चाहते। खर्चा अधिक आमदनी कम। घर में समाज में विग्रह तेजी पर। दफ्तरों के काम काज शराब के चलन से न के बराबर हो गया है। शराब के चलन से झूठ, धोखा बेईमानी चोरी और कत्ल की घटनायें बढ़ रही हैं।
दुराचार, दुर्भावना, पति पत्नि का संघर्ष, परिवार की लड़ाई और राज नैतिक संघर्ष से अस्थिरता देश में पैदा हो गयी है। राजनैतिक झूठ, छल कपट इतना अधिक बढ़ गया है कि जनता किसी प्रकार की राष्ट्रभक्ति एकता अखण्डता और जनभक्ति इत्यादि का विश्वास नही करती।
धन इतना अधिक चुनाव में खर्च होने लगा और यह शराब के चलन की देन है। धन एक तरफ और चरित्र एक तरफ।
मनुष्य को मानवता से कौन विचलित करता है ? शराब का चलन। सत्य और न्याय से कौन दूर करता है ? शराब का चलन। लोक की गति ऐसी ही है। मनुष्य की अच्छी शिक्षाओं का अच्छे नैतिक उत्थान का न तो कोई प्रचार है और न ही कोई स्कूल। छात्रों की पढ़ाई उस तरह से देखी जा रही है जैसे तोते को चारों वेद रटा दिये जायें पर बिल्ली को देखते ही वह वेदों का ज्ञान भूल जाता है।
मानवता की शिक्षा ऋषियों महात्माओं द्वारा दी जाती थी। आबादी के बढ़ने पर कृष्ण ने सबको शिक्षा दी। मानवता की शिक्षा ना मानने पर जो कुछ हुआ उसका इतिहास साक्षी है। आज भी मानवता की शिक्षा जो ग्रहण नहीं कर रहे हैं तो भविष्य में उनको भी खौफनाक दृष्य देखते पड़ेंगे।
एक विकार के आने पर हजारों बुराईयों के आने के श्रोत खुल गये और वह है शराब का चलन।
देखिए! इस विकराल परिस्थिति से बचना है तो अभी से होशियार हो जाओ। तुम्हारे ऊपर संकट आने वाला है। आने वाले समय में जनता किसी तरह का भी राजनैतिक, पारिवारिक, सामाजिक सुख प्राप्त नहीं कर सकती। धन की इतनी कमी हो जायेगी कि धन के अभाव में जनता त्राहिमाम करेगी।
- सितम्बर 1993
♉ बाबा जी का निमंत्रण ♉
मानव शरीर अमोलक है थोडे़ दिन के लिये दिया गया, इस शरीर से अपनी जीवात्मा को जगाकर प्रभु के पास पहुंचाना चाहिए। आपने अमोलक शरीर से आत्म कल्याण का प्रयास नहीं किया। कर्म क्षेत्र स्थल में कर्म ही कर्म यानि पाप और पुण्य करते रहे तो आप को कुछ नहीं मिलेगा। समय पूरा होते ही मकान मालिक अपने मनुष्य मकान को ले लेगा, जीवात्मा को निकाल बाहर करेगा। फिर आपका तुरन्त हिसाब होगा। इसी जीव को चौरासी या नर्कों में डाल दिया जायेगा।
शाकाहार शुद्ध आहार करना चाहिए जिससे इन्द्रियां चलायमान न हों और शरीर का खून ठण्डा रहे। अशुद्ध आहार मन बुद्धि चित्त को खराब करता है। काम क्रोध की लोभ मोह की, अग्नि जलने लगती है। सम्पूर्ण मानव में विकारों का द्वार जमा करने का खुल जाता है। यह रास्ता नर्को मे जाने का मनुष्य अज्ञान कर्मो से कर डालता है।
पशु पक्षी मनुष्य जल के जीवों के शरीर से जीवात्मा निकाल दी जाती है, वह शरीर मुर्दे कहे जाते हैं जिसके लिए आप इस अशुद्धि में घर में आकर स्नान करते हो शुद्धता के लिए। अब आइए! प्रेम के साथ और आदर मान लीजिए ताकि थोड़े दिन की दुनिया में हमें क्या करके जाना चाहिए।
आइये सत्संग में सम्मिलित होइये और जीवातमा की सच्ची मुक्ति के लिए सच्चा रास्ता लीजिए। अंतर दिव्य आंख, दिव्य कान को खोलिए और छोड़े हुए अमर लोकों को फिर से प्राप्त कीजिए वरना एक वक्त आ रहा है कि सब लोग चिन्तित होंगे। अच्छी चीज लीजिए और बुरी चीज छोड़ दीजिए।
- Jaigurudev itihas se jude pichhle panne...
 |
baba jaigurudev ji maharaj |
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev