सतगुरु का प्रेमियों को उपदेश

जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश 

 मान लो तुम्हें नामदान मिल गया पर तुमने कुछ किया नही फिर वही लकीर के फकीर रहे तो तुम्हें क्या लाभ होगा। नामदान लेने का फायदा क्या है ? क्योंकि यह तो रास्ता कुछ करने का है उस पर चलने का है। तुम बैठे रहोगे यों ही तो कुछ नही होगा।

 तुम तीरथ में जाओ, मन्दिर में जाओ, पूरब पश्चिम जाओ चाहे उत्तर दक्षिण जाओ तुम्हारी यह विडम्बना है कि तुम भरम गए। तीरथ में जाते हो तो खोजते कि कोई महात्मा मिले जो आत्म कल्याण का रास्ता बताए । तुम कहीं भेष में अटक गए कहीं मूरत में अटक गए और घूमने फिरने में अटक गए और मन को अहंकार हो गया कि हमने तीरथ व्रत कर लिया। जब तक उस मालिक का भेद बताने वाले महात्मा नहीं मिलेंगे तब तक सब निगुरे हैं। अकेले घूम रहे हैं दुनिया में, अकेले ही जायेंगे, उनका कोई साथ देने वाला नही है।

 प्रेमी साधक आकर गुरु को अपनी कमाई बताता है कि मैंने देखा ये सुना तो गुरु को बड़ी प्रसन्नता होती है। यहां रोज कहा जाता है कि कुछ करो, दस मिनट बैठो तो उसमें भी नींद आती है और सामने आने पर बच्चा दे दो, पति ठीक कर दो, पत्नि ठीक कर दो, यह नहीं है वह नही है, तकलीफो की झड़ी लगा देते हो। 
कहा जाता है भजन करो। प्रारब्ध के भोग हैं। उन्हें तो भोगना ही होगा। भजन करोगे तो कर्म हल्के हो जायेंगे पर यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आती बस रोना रोते रहते हो। ऐसा नहीं है कि यहां साधना करने वाले नहीं बैठे हैं। वे चुपचाप अपनी साधना में लगे है।

 आज ईमानदारी मेहनत किसी में नही रही। लोग तो यही चाहते हैं कि सब की आंखे अगर बंद हो जायं तो सारा माल मेरा हो जाय। तभी तो तरह तरह की बीमारी लग गई। पहले एक रोग होता था, दवा किया ठीक हो गया अब एक रोग की दवा करो दस बीमारी साथ लग जाती है।

 यहां लोग आते हैं तो समझते हैं कि सब लोग ऐसे ही होंगे। ऐसे ही नहीं है। ये मेहनत ईमानदारी से काम करते हैं, भजन करते हैं, घर में रहते हुए साधु हैं। मैंने लोगों को दिखाया कि ये दस हजार पेंशन पाता है, ये पन्द्रह हजार तनख्वाह पाता है। यह सुनकर लोगों की अकल ठिकाने लग गयी।

 ये सीधे साधे यहां आकर बन गये। इन्हें कोई कुछ कह ले ये चुप रह जाते हैं। पहले किसी की हिम्मत नही होती थी कि इनके सामने बोल दो। 

  एक सांप सबको कांटता था, सड़क के किनारे बैठा रहता था। उधर से एक महात्माजी  निकले उनको भी काटने के लिये दौड़ा। उन्होंने कहा कि तू क्यों सबको काटता है, काटना बंद कर दे। उसने बात मान ली और काटना बन्द कर दिया। परिणाम यह हुआ कि जो भी उधर से जाये उसको कंकड़ मार दे। यह बेचारा घायल हो गया। कुछ दिन में वो महात्मा फिर उधर लौटे और पूछा कि ये क्या हो गया तुझको ? वो बोला कि महाराज आपने मना किया था तो मैंने काटना छोड़ दिया तो मेरी ये हालत हो गयी। महात्मा जी ने कहा कि मैंने काटने के लिये मना किया था फुसकारने के लिये नहीं। तू फुसकार तो सब भाग जायेंगे। तो मतलब ये कि काटने की मनाही है फुसकारने की नहीं।

 इस समय सबकी मति भ्रमित हो गयी है। आज से पचास साल पहले लोग अच्छे थे। अब तो घर घर में पड़ोस पड़ोस में राज राज मे संघर्ष और विग्रह हो गया। ऐसे समय में प्रभु को पाने का रास्ता मिल जाय इसे अपना शौभाग्य समझो प्रेम से रहो तो संसार में क्षणिक सुख शान्ति मिलती है, परमार्थ में तो शान्ति चाहिए ही। 

 स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि सबकी बात सुनना पर किसी की बात को अपने पास मत रखना। अपनी बात अपने पास रखना इससे तुम्हें कभी धोखा नहीं है। 

 तुम्हें जो आदेश दिया जाय वह करो। जो आदेश दिया जाता है वह तुम करते भी हो पर मन में सोचते हो कि ऐसा नहीं होना चाहिए तो उसका फल नही मिलता। तुम समझते हो कि वो कुछ नहीं जानते कुछ नहीं समझते। महात्मा सब कुछ समझते जानते हैं पर खोलकर नहीं कहते कि तुम अपना नुकसान कर लोगे और हमेशा के लिये चले जाओगे।

 जो सामान माया ने तुम्हें दिये हैं उनमें से जितना दे सको जरूरत मन्दों में बांटते जाओ क्योंकि एक दिन तुम्हें सब कुछ यहां से छोड़कर जाना है। 

 दुनिया का काम करते हुए भी भजन की फिक्र होनी चाहिए कि मुझे भजन करना है। जब भी मौका मिले पांच मिनट दस मिनट भजन पर बैठ जाओ।

 महापुरुषों के सत्संग में आकर अपने अवगुणों को एक एक करके निकालना चाहिए और गुणों को अपने अन्तर में भरते जाओ। धीरे धीरे स्वभाव बदल जाएगा और सच्ची व सही बातें समझ मे आने लगेंगी।

 आगे आने वाले समय में कम्प्यूटर का बहुत महत्व हो जाएगा । कम्प्यूटर पढ़कर नौकरी करने वालों को पैसा बहुत मिलेगा।

 भजन मे जब कमी दिखायी दे तो साधकों को अपनी कमजोरियों पर ध्यान देना चाहिए। लगन और मेहतन में जब कमी होगी तो भजन में रस कम आएगा।

 गुरु के वचनों को याद करना ही गुरु की पूजा है। वचन को याद करते रहो और उसके अनुरूप कार्य करते रहो तो काम बनने में कोई देर नहीं। वचन याद करने से गुरु की याद बराबर बनी रहेगी। कोई तुम्हारे घर भूखा आ जाय तो उसे दो रोटी खिला दो खाली पेट मत लौटने देना। इससे तुम्हारे अन्दर दया का श्रोत खुल जाएगा। और तुम्हारे मन को शान्ति मिलेगी।

 कभी भी एक परिवार में दो भाइयों और सगी दोनों बहनों की शादी नहीं करनी चाहिए। दोनों सगी बहनों मे कुछ समय बाद ईर्ष्या द्वेश के कारण प्रेम खत्म हो जाता है।

 नाम का एक तिनका भी अगर घट मे प्रगट हो जाय तो बहुत बड़ी बात है। जब गुरु की कृपा से घाट पर नाम प्रगट हो जाता है तो ऊपर के मण्डलों की सभी धुनों की झनकारें आने लगती हैं। इसी नाम को सुनकर सुरत के ऊपर लदे पाप पुण्य नाश होने लगते हैं।

 एक टाइम भोजन करो। पेट खाली रहेगा तो भजन बनेगा। मन का फैलाव नहीं होगा। 

 देवियों से प्रार्थना है कि पांच दिन तक स्नान बिल्कुल न करें। ऐसा न करने से सारे देश में बीमारियां फैल गयी। यह छोटी चीज नहीं बड़ी चीज है। मैं पूछता हूं तो कहती हैं कि स्नान किया। खराब खून अच्छे खून में मिल जाएगा तो डाक्टर भी ठीक नहीं कर सकता।

 पहले स्त्रियां अपने पति का नाम नहीं लेती थीं अब तो सभी नाम लेने लगीं। सामाजिक नियम सब टूट गए।

 श्वांसों की पूंजी बही चली जा रही है इससे कुछ काम ले लो वर्ना ये तन छूट जायेगा और सीधे नर्कों मे जीवात्मा चली जायेगी। ये मनुष्य शरीर बार बार नही मिलेगा।

 जैसे सिल पर चटनी पीसी जाती है वैसे ही घाट पर बैठकर मन को पीस डालो। दोनों आंखों के मध्य में अन्दर की तरफ घाट है जहां पर मन बैठा है। मन जब महीन हो जाएगा और इसकी भागदौड़ बन्द हो जाएगी तब प्रकाश प्रगट हो जाएगा। आसमानी संगीत को सुनने से ही मन वश में होता है।

जयगुरुदेव 




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ