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स्वामी जी महाराज के रोम रोम में नम्रता की धारें प्रवाहित होती रहीं। चाहे कोई भी जीव उनके सामने आता रहा चाहे उसकी अन्तर्भावना कैसी भी रही हो उन सबको स्वामी जी स्वयं सर्व शक्तिपूर्ण होते हुए भी सामान्य मनुष्य के तरह से पहले ही प्रणाम किया करते रहे। आने वाले लोग प्रणााम करने के लिये अपना हाथ उठाये या झुकें तो उनके पहले ही स्वामी जी उनको प्रणाम करते रहे।
सत्संग के लिये जब मंच पर पहुंचते थे तो खड़े होकर झुक करके चारों दिशाओं में बैठे या खड़े प्रेमियों को देर तक देखते रहे और सभी नर नारियों को प्रणााम करते रहे। सभी को देखने और प्रणाम करने के बाद ही मंच पर सत्संग करने के लिये बैठते रहे या खड़े रहते रहे।
उनके सत्संग में देखा कि साइकिल यात्रा के दौरान जब पड़ाव पड़ा तो एक से एक वहां के मठोें के महन्तगण आये जो सभी स्वामी जी का अन्तर से विरोध भाव ही रखते रहे तो भी स्वामी जी ने सभी को पहले झुक करके प्रणाम किया और उन्हें सम्मान देते हुए उनको उंचा बताया और स्वयं को नीचा बताया, सेवादार बताया स्वामी जी ने अपने को महात्मा कभी नहीं कहा।
यह भी देखा कि जब पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी इमरजेंसी हटने के बाद आश्रम पर भण्डारा के समय आधी रात को स्वामी जी से मिलने के लिये गुप्त रूप से आई तो स्वामी जी ने अपने निवास झोपडी के सामने मेन रोड पर एक बहुत बड़ा सा गेट बनवा दिया था जिस पर लिखवाया गया था कि यहां गुनाहों की माफी दी जाती है।
ज्ञातव्य है कि इन्दिरा गांधी स्वामी जी को अपना कट्टर दुश्मन मानती रहीं। फिर भी स्वामी जी सदा नम्र रहे। लेकिन इन्दिरा कपटपूर्ण हदय से मिली। वे आश्रम पर आईं तो उन्हें सम्मान के साथ स्वामी जी के कुटिया में लाया गया। वे कुटिया में गई , आधी रात के समय ।
उनके साथ आये हुए श्रीनारायण दत्त तिवारी तत्कालीन मुख्यमन्त्री उत्तरप्रदेश सरकार और श्रीमती मोहसिना किदवई भी थे लेकिन वे स्वामी जी की कुटिया में नही गये। उन्हें कुटिया से सटी हुई बैठक में बिठाया गया। वहां मैं बैठा हुआ था। ये दोनों नेतागण भी मेरे पास ही जमीन पर बैठे। वहां और कोई नहीं था।
नारायण दत्त तिवारी ने छपपर की कुटिया को गौर करके देखा तो मुझसे बोले कि झोपड़ी तो बहुत सुन्दर बनी है। उन्होंने ही इमरजेन्सी में स्वामी जी को बेड़ियों में बांध कर जेलों में तन्हाई में रखने का आदेश दिया था। किन्तु मैंने पाया कि उनके दिल में उसका तनिक भी माफी मांगने का भाव नहीं था फिर भी कपट भाव से ही बैठे रहे।
स्वामी जी से वे नहीं मिले। इन्दिरा गांधी ही स्वामी जी से मिली, किन्तु वे भी कपटपूर्ण भाव से भरी हुई थी।
स्वामी जी के पास श्री बालमुकुन्द तिवारी थे, उन्होंने जब इन्दिरा गांधी से कहा कि स्वामी जी को इमरजेन्सी में डण्डे वाली बेड़ी पहनाकर यातनायें दी गयीं तो इंदिरा गांधी ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। जबकि उन्हीं के गोपनीय निर्देश पर स्वामी जी को घोर अवमानवीय यातना दी जाती रही।
नारायण दत्त तिवारी विशेष रूप से इस आज्ञा पालन में लगे रहते थे। इन्दिरा गांधी का कपटपूर्ण भााव इतना था कि स्वामी जी से मिल कर जब वे दिल्ली गयी तो भनक लगने पर जब कुछ नेताओं ने उनसे पूछा तो उन्होंने साफ कह किया कि नहीं वे जयगुरुदेव के पास मिलने नहीं गयी थी।
वे चुपके से आधी रात में आयी थी और चुपके से हीवापस चली गयी। स्वामी जी के पास आकर के भी इन्दिरा गांधी और नारायण दत्त तिवारी अपने कपट भाव और व्यवहार के कारण निर्मल हदय वाले स्वामी जी जो देहधारी परमात्मा रहे, के क्षमादान एवं आशीर्वाद से खाली ही रह गये।
परन्तु स्वामी जी के नम्रता में तनिक भी कमी नहीं रही। वे अत्यन्त नम्र भाव से ही मिले। आधी रात में इन्दिरा गांधी के साथ स्वामी जी के गुप्त भेंट की बातें यादगार ही बनी रहीं। धन्य हैं गुरु महाराज जिन्होंने भाव कुभाव से मिलने वाले सभी के साथ निर्मल रूप से ही मिलते रहे हैं और कृपा करते रहे हैं।
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Jaigurudev