*जयगुरुदेव सुनहरी यादें* ------------------------------
4 .
---
एक सतसंगी भाई जो पुलिस कर्मचारी थे। वे स्वामी जी के सतसंग में अवश्य ही पहंचा करते थे। जब से उन्होंने नामदान पाया था तब से एक रुपया भी तनख्वाह के अतिरिक्त वे किसी से नहीं लेते रहे। अपने तनख्वाह में ही गुजारा करते रहे। एक दिन वे स्वामी जी के सतसंग में आये और स्वामी जी का चरण स्पर्श करने लगे तो स्वामी जी ने उन्हें कहा कि तिवारी तुम्हारे पेट में पैबन्द लगा है। यह पुलिस की वर्दी ऐसी ठीक नही है. तो तिवारी जी जो सत्संगी थे उन्होंने कहा कि गुरु महाराज मैं रिश्वत एक रुपया भी किसी से नहीं लेता हूं केवल जो तनख्वाह पाता हूं उसी में गुजारा परिवार का करता हूं. तो यह पैन्ट फट गया तो इसमें मजबूरी में पैबन्द लगवाया है।
तब स्वामी जी बोले कि देखो तुम सब का काम करते हो, सुरक्षा करते हो। दिन रात की तुम्हारी डयूटी है तो जो आदमी तुम्हें ख़ुशी से कुछ देता है तो उसे ले लो। किसी का दिल दुखाकर मत लो। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि पुलिस का वेतन कम से कम 300 रुपया मिले। स्वामी जी ने जनता से भी कहा कि देखो यह पुलिस वाले दिन रात हमारी सेवा करते हैं इनके भी बाल बच्चे हैं अगर ये दो रुपया मांग लेते हैं तो ख़ुशी से उन्हें दे दो तुम्हारी कमी नहीं होगी। तो ऐसा स्वामी जी की नजर थी कि सबको देखते रहे। वे चाहते रहे कि सभी लोग अच्छा खायें, अच्छा पहनें। और मैंने यह देखा है कि जितने भी लोग नर नारी सत्संग में आये और नामदान पाया है उनके रहन सहन का स्तर उंचा ही होता गया है। ऐसी कृपा गुरु महाराज की रही है।
-----
5.
-----
मथुरा आश्रम से स्वामी जी राजस्थान में सत्संग करने के लिये कार से जा रहे थे। साथ में कुछ सत्संगी भाई थे। रास्ते में लगभग 10 बज रहा था, गर्मी के दिन थे तो स्वामी जी ने अपनी गाड़ी को एक जगह सड़क के किनारे खड़ा करके उतर गये। साथ में चलने वाले सत्संगीगण भी उतर गये। सत्संगियों में कई सत्संगी ऐसे थे जिन्होंने धोती कुर्ता पहने हुए थे। स्वामी जी ने कहा कि यहीं अब आराम कर लिया जाय और सुबह भोर में फिर चलेंगे । जब स्वामी जी दूर स्थान के लिये जाया करते थे तो अक्सर अपना पका हुआ भोजन भी लिये रहते थे। सभी सत्संगी और स्वामी जी ने भी कुछ कुछ पाया और पानी पिया। जहां स्वामी जी रुके रहे वहां आस पास कोई बस्ती नहीं थी। बस वहां सड़क ही थी ।
सभी लोग कुछ कुछ कपड़ा जमीन पर बिछाकर सो गये, मगर स्वामी जी तो जग ही रहे थे उन्होंने देखा कि एक सत्संगी चुलबुल चुलबुल कर रहे थे सो नहीं रहे थे तो स्वामी जी बोले कि क्यों जी, नींद नहीं लग रही है तो उन्होंने कहा कि स्वामी जी मच्छर काट रहे हैं इसलिये नींद नहीं आ रही है। इस पर स्वामी जी बोले कि धोती के नीचे कुछ पहने हो ? तो डरते डरते उन्होने कहा कि हां, अण्डरवियर पहना हूं। इस पर स्वामी जी बोले कि धोती खोलो और अण्डरवियर पहने हुए सो जाओ। अपनी धोती ओढ़ लो। फिर मच्छर नहीं लगेगा। हुक्म का पालन हुआ और वहां स्वामी जी के साथ सुनसान रास्ते में रात बिताया। इस तरह हंसी हंसी में स्वामी जी की बातें बहुत व्यवहारिक होती रहीं।
------
6.
------
स्वामी जी महाराज अन्न का बहुत अधिक कद्र करते रहे। अन्न का एक दाना भी वे बर्बाद नहीं होने देते रहे। भण्डारा के मौके पर एक बार जब स्वामी जी सत्संगियों के डेरों के बीच टहल रहे थे, लोगों से मिल जुल रहे थे तो उन्होंने देखा कि जहां तहां सत्संगियों ने रोटी फेंक रखा है। इस पर वे सत्संग मंच से बोले कि एक भी रोटी फेंकना नहीं। यह भण्डारा का प्रसाद है, भोजन नहीं है। तुम्हें जो मिल जाता है उसको प्रेम से खाओ, खिलाओ और बच जाय तो बांध कर रख लो उसे फिर खाओ, अगले दिन खाओ मगर भूल से भी रोटी फेंकना नहीं। उन दिनों भण्डारा पर प्रेमियों को पूड़ी का प्रसाद भी मिलता था।
लोग खूब खाते भी थे और जब भण्डारा से लोग घर वापस आने लगते थे तो संगतों के लिये स्वामी जी सबको पूड़ियों का एक एक बण्डल भी बांध कर देते रहे। प्रेमी उसे अपने जिले में आते थे तो संगत में उसे टुकड़ा टुकड़ा करके उन सभी प्रेमियों को बांटते रहे जो भण्डारा में मथुरा नहीं पहुंच पाते थे।
उस समय बहुत से प्रेमी भण्डारे की रोटियों को सुखा करके घर में रख लेते रहे, उससे तकलीफ में आराम मिल जाया करता था। इस तरह मैंने देखा कि स्वामी जी रोटी खिलाते भी थे और घर के लिये छाना प्रसाद भी दिया करते थे। इतने व्यवहारिक गुरु महाराज रहे कि सत्संगियों के कुशलता की चिन्ता बराबर किया करते रहे।
 |
jaigurudev naam prabu ka |
एक टिप्पणी भेजें
1 टिप्पणियाँ
Jai Guru Dev
जवाब देंहटाएंJaigurudev