*"पहले जब आदमी सतसंग सुनता रहता था तो हर तरह की जानकारी प्राप्त हो जाती थी..."* *- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*जयगुरुदेव*
*सतसंग सन्देश: दिनांक 09.फरवरी.2022*

*सतसंग दिनांक: 02.01.2022*
*सतसंग स्थलः आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश*
*सतसंग चैनल: Jaigurudevukm*

*"पहले जब आदमी सतसंग सुनता रहता था तो हर तरह की जानकारी प्राप्त हो जाती थी..."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

इस समय के महान समाज सुधारक, वक्त के महापुरुष, उज्जैन वाले पूरे संत सतगुरु, *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने उज्जैन आश्रम पर नव वर्ष 2022 के कार्यक्रम में दिए गए सतसंग में बताया कि,

पहले जब आदमी सतसंग सुनता रहता था तो हर तरह की जानकारी प्राप्त हो जाती थी। लोक और परलोक बनाने की, गृहस्थ आश्रम चलाने की, आत्मा और परमात्मा की और आत्मज्ञान की भी।
बताए हुए युक्ति के अनुसार जब आदमी काम करने लगता है तब यह बोध और ज्ञान हो जाता है कि मैं कौन हूं? प्रभु कौन हैं?

सुन करके आदमी को अनुभव नहीं होता है लेकिन जब करता है तो अनुभव हो जाता है। तब विश्वास हो जाता है।
*जब संतों का, पूरे गुरु का सतसंग, गुरु महाराज जैसे पूरे संत का सतसंग सुना तो उससे बहुत लोगों के अंदर परिवर्तन आया।*

*"जैसे बच्चे को जानकारी कराई जाती है ऐसे ही सतसंग में ..."*
सतसंग में व्यक्ति को भी सभी तरह की जानकारी कराई जाती है। जैसे यह बच्चा जब पैदा होता है तो कोई ज्ञान नहीं रहता है। उसको ज्ञान मां बाप, परिवार के लोग सिखाते हैं।
विद्या गुरु बच्चे को पढ़ाते और सिखाते हैं। और जब आध्यात्मिक गुरु मिलते हैं तो ऊपर का ज्ञान कराते हैं। शुरू में कोई जानकारी नहीं रहती है। जैसे बच्चे को कोई ज्ञान नहीं होता है, ऐसे ही जिनको जानकारी नहीं होती है उनको जानकारी करानी पड़ती है।

तो यह सतसंग के द्वारा जानकारी कराई जाती है और बताया जाता है। जब सतसंग और पूरे गुरु मिल जाते हैं तब पशु से आदमी बन जाता है।

*मनुष्य का कर्तव्य क्या है? मनुष्य का कर्म क्या है? किस तरह से मनुष्य को रहना चाहिए?*
यह सारी चीजें धार्मिक किताबों में मिलती हैं। पहले लोग सुनाते थे। अब तो ढोलक-मंजीरा कर के लोगों का मनोरंजन कर देते हैं। राम-कृष्ण कथा, महाभारत की कथा सुना कर के प्रवचन को खत्म करते हैं।
ज्ञान वाली बातें और प्रयोग वाली बातें, *जिससे आदमी शरीर से सुखी रहे, आत्मा को शान्ति मिले, वो बात कम मिलती है।*

*"संत सतसंग से बदलाव ला देते हैं..."*
लेकिन जो संत होते हैं वह अपने निशाने के पक्के होते हैं। उनका निशाना कभी भी चूकता नहीं हैं।
जैसे शेर के समान वैसे संतों का निशाना नहीं चूकता है। *संतों का निशाना क्या होता है?* काल के गाल-जाल से निकाल कर के जीवों को अपने असली घर पहुंचाना।

देखो! जैसे कहा गया है कि सतसंग मिलने से पशु आदमी बन जाता है। *और पशुता जो करे जैसे आपै आप चरै* पशु खुद खाता है जब दूसरा कोई खाने लगे तो मार कर भगाता है।
आप ही समझो, बच्चा पैदा करने की जब इच्छा जगती है तो पहचान नहीं रहती है कि हमारी मां, बहन, बेटी है, कुछ नहीं? ये पशुता कहलाती है।

अब अगर आदमी भी उसी तरह का करने लग जाये तो अंतर नहीं रह जाता है। लेकिन जब सतसंग मिलता है तब यह पशुता अगर रहती भी है तो खत्म हो जाती है।
*पशुता से मुक्त हो कर इंसानियत आती है, वो आदमी बनता है और फिर आदमी से कहते हैं, देव बन जाता है।*

*"पूरे सतगुरु से जब जानकारी मिलती है तब..."*
देवताओं से भी आगे मनुष्य निकल जाता है।देवताओं का काम क्या है? देना। कोई भी चीज हो, दिया या लिया जाता है।
मनुष्य के अंदर जब उदारता, सेवाभाव, परोपकार आ जाता है, वो इंसान को इंसान समझने लगता है। भेड़ बकरी, कुत्ता, मुर्गा, भैंसा नहीं समझता है। जब इंसान को इंसान से प्रेम हो जाता है तब वो देवतुल्य हो जाता है।
जब जानकारी हो जाती है कि देवताओं के भी परे कोई है? उनके भी पिता हैं, जिनको निरंजन भगवान, ईश्वर कहा गया है तो उनकी भी पावर आ जाती है उसमें।
*और जब पूरे गुरु सतगुरु मिल जाते हैं तो उन देवताओं से भी आगे अपने निज घर की तरफ जीव निकल जाता है।*
jaigurudev nam prabhu ka


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