*जयगुरुदेव*
*सतसंग सन्देश / दिनांक 23.जनवरी.2022*
*सतसंग दिनांक: 17.01.2022*
*सतसंग स्थलः आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश*
*सतसंग चैनल: Jaigurudevukm*
*"गुरु का दर्शन जल्दी-जल्दी न हो तो जो गुरु का दर्शन करके आया है,*
*उसी के दर्शन से गुरु के दर्शन का लाभ मिल जाता है..."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*
विश्व विख्यात संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, पुराने प्रेमियों की सम्भाल करने वाले और नयों को *नामदान* देने वाले, इस समय मनुष्य शरीर में मौजूद त्रिकालदर्शी पूरे संत सतगुरु उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने पौष पूर्णिमा के अवसर पर दिए गये सतसंग में बताया कि,
गुरु महाराज ने आदेश दिया कि *नामदान* देना शुरू कर दो, तब बताने लग गया। ऐसी परिस्थितियां बनी थीं की *नामदान* देने की इच्छा नहीं हो रही थी।
लेकिन लोगों ने कहा एक समय पर एक ही को *नाम दान* देने का अधिकार होता है। आप *नामदान* नहीं दोगे तो फिर कौन देगा? इसमें कर्मों का लेना-देना होता है।
लेकिन गुरु महाराज का फिर आदेश मिल गया कि अब *नामदान* देना शुरू कर दो तो मैंने *नामदान* देना शुरू कर दिया।
*"गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छुटना..."*
ऑनलाइन *नामदान* नहीं दिया जाता है, एक बार तो कम से कम सामने आना ही पड़ता है।
यह है संतमत। इसमें गुरु को ही सब कुछ माना गया है। उनके अंदर वह प्रभु पावर देता है *नामदान* देने की, बताने और समझाने की, जीवों को संभालने की और मदद करने की।
*तो जिसको पावर देता है उसको देखना चाहिए, उसके रूप को याद करना चाहिए।*
कहा है कि गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छुटना। तो सबसे पहले गुरु को ही याद किया जाता है। जब देखेगा नहीं? तो वह ताकत नहीं मिल पाएगी।
*"जड़ मूर्तियां और फोटो ताकत नहीं दे सकती हैं.."*
रोशनी और गर्मी देने वाले सूरज की किरणें इतनी तेज हैं कि देख नहीं सकते हो, वो आंखों में लगेंगी।
लेकिन इसका खूब तेज किरणों वाला प्रतिबिंब कागज पर बना दो तो वह रोशनी, गर्मी नहीं दे सकता है, क्योंकि वह जड़ है।
फोटो और मूर्तियां ताकत नहीं देती हैं, वह तो एक यादगार के लिए होता है। जड़ चेतन की मदद नहीं कर सकता है। *वक़्त के गुरु को देखने और याद करने से ही वह ताकत, वह शक्ति मिलेगी।*
अब चेतन किसको कहते हैं? चेतन मनुष्य है, जिसके अंदर चेतना है । जो सुनता, बोलता, चलता, खाता, टट्टी, पेशाब करता हो वह है चेतन।
*जड़, चेतन की मदद नहीं कर सकता। चेतन के लिए चेतन की जरूरत होती है।*
*"गुरु का दर्शन जल्दी-जल्दी न हो तो..."*
जो गुरु का दर्शन करके आया है, उसी के दर्शन से गुरु के दर्शन का लाभ मिल जाता है।
संतमत में इसलिए कहा गया कि हो सके तो गुरु का दर्शन रोज करो। न कर पाओ तो दूसरे, तीसरे दिन में करो। पन्द्रह दिन में, महीने तीन महीने में एक बार करो। नहीं तो साल में एक बार करना जरूरी होता है। कहा है कि,
*बरस दिना में दरस न कीन्हा, ताकौ लागै दोष।*
*कह कबीर वाकौ, कभी न होय मोक्ष।।*
लेकिन इस समय पर देखो! जैसे विदेश बहुत दूर है। हवाई जहाज से उड़ कर वहां पहुंचने में बीस बाईस घंटा लगता है।
हर कोई तो वहां से आ नहीं सकता भारत में। और भारत में जो यह काम करने वाले हैं, वह रोज वहां जा नहीं सकते? तो सालों बीत जाता है।
परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि चाहते हुए भी लोग एक से दूसरी जगह नहीं आ जा पाते हैं। ऐसे ही पहले के समय में जब साधन की कमी थी, ट्रेन बस नहीं थे तो गुरु का दर्शन करने के लिए लोग महीना दो महीना पैदल चलकर के जाते थे।
तो उस समय पर छूट दे दिया था कि साल में अगर एक बार दर्शन न कर पाओ? गुरु का दर्शन जल्दी-जल्दी न हो तो *जो गुरु का दर्शन करके आया है, उसी का दर्शन कर लो तो गुरु के दर्शन का लाभ मिल जाता है।*
*"गुरु कोई हाड़ मांस के शरीर का नाम नहीं है..."*
गुरु एक पावर, एक शक्ति होती है जो कण-कण में व्याप्त है। गुरु एक पॉवर होती है। गुरु कोई हाड़ मांस के शरीर का नाम नहीं होता है।
गुरु एक शक्ति होती है। वह शक्ति जिससे झलकती है, निकलती है, आंखों से, मुंह से, रोम-रोम से शक्ति निकलती है, जो वह शक्ति को लेना चाहता है, कहीं न कहीं वह शक्ति को सामने पड़ने पर ले लेता है, मिल जाता है।
जब एक तरह से बाप बेटे का संबंध हो जाता है, बेटा न भी ले पावे, दूध न भी पीने के लिए पहुंच पावे तो बाप बुलाकर के दूध पिलाते है, रोटी खिलाते हैं कि नहीं तो कमजोरी आ जाएगी।
*वह खुद ताकत, शक्ति को दे दिया करते हैं। कहा गया प्रेमियों! सामने होना चाहिए। सामने से 'नामदान' लेना चाहिए। सामने बैठकर के सुनना चाहिए। एक बार सामने जरूर पडना चाहिए।*
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gutu ka dhyan kar pyare |
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