स्वामी जी की हिदायत
इस दुनिया में जिसको सत्य कहा जाता है और जिसको असत या असत्य कहा जाता है, इनमें से जो सत्य है वह परमात्मा नहीं है। इस सत्य से एकदम अलग सन्त है। जो एक रस, प्रेम प्रकाश ओर आनन्द का मूल भण्डार है अविनाशी है उसका नाम सदा सत्य है वह सत्तनाम है जो परमात्मा है । इस दुनिया में बताये गये सत्य और असत्य दोनों से ही परे वह सत है । सतनाम है।
इसी तरह से इस संसार में जिसको सगुण कहा जाता है और जिसको निर्गुण कहा जाता है इनमें से कोइ्र भी रूप् परमात्मा का नहीं है। परमात्मा नही तो यहां का निर्गुण है और नहीं तो यहां का सगुण है बल्कि वह इन दोनों रूपों से बिल्कुल अलग सगुण रूप् वाला है। वह ऐसा सगुण रूप् वाला है जिसको इस दुनिया में बताया नहीं जा सकता।
परमात्मा का सच्चा जो सगुण रूप् है और जो उसका नाम है वह केवल उन्तर अनुभूति में ही दिखााई और सुनाई देता है जिसको केवल वह मनुष्य देखता और सुनता है जो इसी दुनिया में और इसी शरीर में रहते हुए पिण्ड अण्ड ब्रह्माण्ड पारब्रह्माण्ड के परे दयाल देश सच्च खण्ड सत्तलोक में पहुंच जाता है.
29. सन्त का प्रताप
इस दुनिया में सन्त का प्रताप अकथनीय है। मनुष्य देह में सन्त वह है जो चौथा पद सतलोक में नित्य आते जातेे है।उनका यह प्रताप है कि चार खानि चौरासी लाख योनियों में पड़ा हुआ कोई भी जीव किसी प्रकार के सम्पर्क में आता है तो उसे अगली योनि सीधे मनुष्य देह की मिलती है। एक तत्व विषेश वाले जीव जो वृक्ष आदि के शरीर में है उनका सन्त यदि फल खा लेते है या पेड़ के किसी भी अंग फूल, पत्ता, शाखा, छाल आदि का उपयोग कर लेते है तो उस पेड़ को सीधे मनुष्य योनि मिलती है।
30. देहधारी परमात्मा
मनुष्य रूप में परमात्मा इस दुनिया में सन्त हैं। जीव के कर्मो को नाश करने का अधिकार या जीवों के कृत कर्मो गुनाहों को माफ करने का अधिकार केवल एकमात्र सन्त को ही है। सन्त के अलावा इस लोक में अन्य कोइ्र भी सिद्ध, योगी,योगेश्वर, तपस्वी आदि महात्मा हों उनको यह अधिकार नहीं है। इस लोक के परे अण्ड लोक के स्वर्ग बैकुण्ठ शक्तिलोक आदि के किसी भी देवता देवी ब्रह्मा विष्णु शंकर शक्ति आद्या को भी यह अधिकार नहीं है कि वे किसी जीव के कर्मो को माफ कर सके।
किसी भी जीव के कर्मो को जन्म जन्मान्तरों के कर्मो के भुगतान को कर्मो के भण्डार को केवल मनुष्य देह में जन्में हुए सन्त ही माफ करने का सामर्थ्य रखते हैं उन्हें ही यह अधिकार है, जीव के संचित सभी कर्मो को जला देते है। प्रारब्ध कर्म और क्रियामान कर्म को अपने देख रेख में भुगतान कराकर जीव को उसके निज धाम सत्तलोक में पहुंचा देते हैं । देवी देवता ईश्वर ब्रह्म यहां तक कि स्वयं वह परमात्मा भी माफ नहीं करते, माफ करने का अधिकार केवल मनुष्य रूप में परमात्मा को ही है।
सच्च खण्ड चौथा पद के नीचे जिनते भी लोक पारब्रह्माण्ड ब्रह्माण्ड अण्ड लोक आदि के तीन पद हैं उनमें जितने भी दवता देवी धनी अधिष्ठाता हैं उन सभी के एजेन्ट यानी प्रतिनिधी इस दुनिया मे सदैव रहते है। और वे एजेन्ट अपने देवता का अपने शक्ति का अपने ईश्वर का अपने ब्रह्म का प्रचार करते है उनका मत चलाते हैं और मनुष्यों को उनका ईष्ट बंधवाते हैं तथा उनका आशा पक्का कराते हैं फलतः मनुष्य सच्चाई के अंजान में नश्वर शक्तियों देवी देवताओं ईश्वर ब्रह्म आदि काआशा बांधता है,
32. बड़ा धन
नाम का धन सबसे बड़ा धन है। यह अनमोल है और यह धन आपके इस अमोलक मनुष्य शरीर में रखा हुआ हे जिसको आपने धारण किया है। आप अपने धन से नावाकिफ हैं, भूले हुए हैं इसलिये आप अपने को गरीब और भिखारी समझते हो। जिस दिन यह आपका गड़ा हुआ धन आपको मिल जायेगा उसी वक्त आप समझ जाओगे कि इस लोक के सब धन स्वर्ग बैकुण्ठ के धन ईश्वर और ब्रह्मलोक और पारब्रह्म लोक के धन कुछ भी नहीं है।
33. साधू न बनो
मैं किसी को साधू नहीं बनाता हूं, साधू बनाने नहीं आया। आप अपने घर में रहो। बाल बच्चों के साथ रहो। दिन में इनकी सेवा करो, खेती, दुकान, दफतर का अपना काम करो और इसी चौबीस घण्टे में से एक घण्टा सुबह एक घण्टा शाम को समय दे दो, बस इतने से ही तुम्हारा काम हो जायेगा।
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