स्वामी जी की हिदायत

जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश 
28. सत्त

इस दुनिया में जिसको सत्य कहा जाता है और जिसको असत या असत्य कहा जाता है, इनमें से जो सत्य है वह परमात्मा नहीं है। इस सत्य से एकदम अलग सन्त है। जो एक रस, प्रेम प्रकाश ओर आनन्द का मूल भण्डार है अविनाशी  है उसका नाम सदा सत्य है वह सत्तनाम है जो परमात्मा है । इस दुनिया में बताये गये सत्य और असत्य दोनों से ही परे वह सत है । सतनाम है।

इसी तरह से इस संसार में जिसको सगुण कहा जाता है और जिसको निर्गुण कहा जाता है इनमें से कोइ्र भी रूप् परमात्मा का नहीं है। परमात्मा नही तो यहां का निर्गुण है और नहीं तो यहां का सगुण है बल्कि वह इन दोनों रूपों से बिल्कुल अलग सगुण रूप् वाला है। वह ऐसा सगुण रूप् वाला है जिसको इस दुनिया में बताया नहीं जा सकता।
परमात्मा का सच्चा जो सगुण रूप् है और जो उसका नाम है वह केवल उन्तर अनुभूति में ही दिखााई और सुनाई देता है जिसको केवल वह मनुष्य देखता और सुनता है जो इसी दुनिया में और इसी शरीर में रहते हुए पिण्ड अण्ड ब्रह्माण्ड पारब्रह्माण्ड के परे दयाल देश सच्च खण्ड सत्तलोक में पहुंच जाता है.


29. सन्त का प्रताप

इस दुनिया में सन्त का प्रताप अकथनीय है। मनुष्य देह में सन्त वह है जो चौथा पद सतलोक में नित्य आते जातेे है।उनका यह प्रताप है कि चार खानि चौरासी लाख योनियों  में पड़ा हुआ कोई भी जीव किसी प्रकार के सम्पर्क में आता है तो उसे अगली योनि सीधे मनुष्य देह की मिलती है। एक तत्व विषेश  वाले जीव जो वृक्ष आदि के शरीर में है उनका सन्त यदि फल खा लेते है या पेड़ के किसी भी अंग फूल, पत्ता, शाखा, छाल आदि का उपयोग कर लेते है तो उस पेड़ को सीधे मनुष्य योनि मिलती है। 
यहां तक कि किसी भी लकड़ी के निर्मित वस्तु फर्नीचर आदि का सन्त उपयोग कर लेते है। तो वह लकड़ी जिस पेड़ की रही होती है उस जीव को चाहे वर्तमान में वह किसी योनि में हो उसको सीधे मनुष्य देह मिल जाता है।

यदि दो तत्व विशेष  वाले जीव कीट पतंग आदि सन्त के शरीर से स्पर्श पा जाते हैैं तो वह सीधे मनुष्य योनि में आ जाते हैं। तीन तत्व विशेष वाले पक्षी चिड़िया आदि सन्त के निकट आ जाते हैं तो वे मनुष्य योनि में सीधे आ जाते हैं। यदि चार तत्व विशेष वाले कोई भी पशु जानवर सन्त के सम्पर्क में आ जाते हैं तो उनका अगला जन्म सीधे मनुष्य देह में होता है। इसमें सन्त की कोई कृपा नहीं होती बल्कि उनका प्रताप स्वतः ऐसा होता है, क्योंकि वह ही मनुष्य देह में परमात्मा होते हैं। सन्त के अतिरिक्त अन्य किसी का प्रताप ऐसा नहीं है।


30. देहधारी परमात्मा

मनुष्य रूप में परमात्मा इस दुनिया में सन्त हैं। जीव के कर्मो को नाश करने का अधिकार या जीवों के कृत कर्मो गुनाहों को माफ करने का अधिकार केवल एकमात्र सन्त को ही है। सन्त के अलावा इस लोक में अन्य कोइ्र भी सिद्ध, योगी,योगेश्वर, तपस्वी आदि महात्मा हों उनको यह अधिकार नहीं है। इस लोक के परे अण्ड लोक के स्वर्ग बैकुण्ठ शक्तिलोक आदि के किसी भी देवता देवी ब्रह्मा विष्णु शंकर शक्ति आद्या  को भी यह अधिकार नहीं है कि वे किसी जीव के कर्मो को माफ कर सके। 

अण्ड के परे ब्रह्माण्ड लोक में जो ईश्वर ओर उनके ऊपर ब्रह्म है। उनको भी यह अधिकार नहीं हैं कि वे किसी जीव के पाप पुण्य कर्मो को माफ कर सके। इसके परे पारब्रह्माण्ड में पारब्रह्म सोहंग पुरुष को भी यह अधिकार नहीं है कि वे किसी जीव के कर्माे को माफ कर सकें।

किसी भी जीव के कर्मो को जन्म जन्मान्तरों के कर्मो के भुगतान को कर्मो के भण्डार को केवल मनुष्य देह में जन्में हुए सन्त ही माफ करने का सामर्थ्य रखते हैं उन्हें ही यह अधिकार है, जीव के संचित सभी  कर्मो को जला देते है। प्रारब्ध कर्म और क्रियामान कर्म को अपने देख रेख में भुगतान कराकर जीव को उसके निज धाम सत्तलोक में पहुंचा देते हैं । देवी देवता  ईश्वर ब्रह्म यहां तक कि स्वयं वह परमात्मा भी माफ नहीं करते, माफ करने का अधिकार केवल मनुष्य रूप में परमात्मा को ही है।


31. देवताओं के एजेन्ट

सच्च खण्ड चौथा पद के नीचे जिनते भी लोक पारब्रह्माण्ड ब्रह्माण्ड अण्ड लोक आदि के तीन पद हैं उनमें जितने भी दवता देवी धनी अधिष्ठाता हैं उन सभी के एजेन्ट यानी प्रतिनिधी इस दुनिया मे सदैव रहते है। और वे एजेन्ट अपने देवता का अपने शक्ति का अपने ईश्वर का अपने ब्रह्म  का प्रचार करते है उनका मत चलाते हैं और मनुष्यों को उनका ईष्ट बंधवाते हैं तथा उनका आशा पक्का कराते हैं फलतः मनुष्य सच्चाई के अंजान में नश्वर  शक्तियों देवी देवताओं ईश्वर ब्रह्म आदि काआशा बांधता है, 

इसके लिये नाना प्रकार का पूजा पाठ क्रिया तपस्या कर्मकाण्ड उपासना ज्ञान धारण करता हुआ अपने प्राण त्याग करता है और अनमोल मनुष्य देह को नष्ट करता हुआ अपने अन्तिम आशा के अनुसार पुतः पिशाच आदि के शरीर में या नर्को में या चार खानि चौरासी लाख योनियों के शरीरों में चला जाता है अथवा अधिक पुण्य और तप होने पर स्वर्ग बैकुण्ठ शक्ति लोक में वासा पा जाता है या उसके ऊपर ब्रह्माण्ड में कोई कोई पासा पा जाते है। औ पुनः जब वहां के भोग की अवधि पूरी हो जाती है तो इस संसार मे मनुष्य देह में आ जाते है। पुनः कर्म करते हैं और पुनः फल भोगते हैं इस तरह मनुष्यों को ये देवी देवताओ काल ईश्वर के एजेन्ट सदा अपने जाल में फंसाते रहते का काम करते रहते हैै।।


32. बड़ा धन

नाम का धन सबसे बड़ा धन है। यह अनमोल है और यह धन आपके इस अमोलक मनुष्य शरीर में रखा हुआ हे जिसको आपने धारण किया है। आप अपने धन से नावाकिफ हैं, भूले हुए हैं इसलिये आप अपने को गरीब और भिखारी समझते हो। जिस दिन यह आपका गड़ा हुआ धन आपको मिल जायेगा उसी वक्त आप समझ जाओगे कि इस लोक के सब धन स्वर्ग बैकुण्ठ के धन ईश्वर और ब्रह्मलोक और पारब्रह्म लोक के धन कुछ भी नहीं है। 

मैं आपको अपनी ओर से कुछ नहीं देने आया हूं बल्कि आपको अपने धन को बताने आया हूं और यह चाहता हूं कि आप अपने धन को प्राप्त कर लें और आपका जन्म  जन्मान्तर का रोना धोना छूट जाय। मैं आपको रास्ता बताता हूं सुगम रास्ता है इसको पकड़ लोगे और चल पड़ोगे तो अपने अमोलक धन को पा लोगे। यह रास्ता सुरत शब्द योग का है। शब्द यानी नाम की सीढ़ी सत्तलोक से तुम्हारे मस्तक तक लगी हुई है, इस सीढ़ी पर चढ़ जाओ फिर धीरे धीरे अपने मंजिल पर स्वयं पहुंच जाओगे। गरु महाराज की आज्ञा से मै आपकी प्रतिक्षण सेवा करने के लिये तैयार हूं ताकि आप अपन अमोलक नामधन को प्राप्त कर हमेशा हमेशा के लिये आनन्दित हो जायें।


33. साधू न बनो

मैं किसी को साधू नहीं बनाता हूं, साधू बनाने नहीं आया। आप अपने घर में रहो। बाल बच्चों के साथ रहो। दिन में इनकी सेवा करो, खेती, दुकान, दफतर का अपना काम करो और इसी चौबीस घण्टे में से एक घण्टा सुबह एक घण्टा शाम को समय दे दो, बस इतने से ही तुम्हारा काम हो जायेगा। 
सुरत शब्द योग का रास्ता है नाम की कमाई है यही तुम्हारा अपना काम है इसकी कमाई जीते जी कर लोगे फिर लोक में भी सुखी और परलोक  में भी सुखी। मै इसका रास्ता बताता हूं इसको आज ले लोगे तो तुम्हारा काम बन जायेगा और अभी नहीं समझ में आया तो मरने के पहले जब भी समझ में आ जाय कि अब नाम की कमाई करना है  तो मेरे पास आ जाना, बाबाजी तो तुम्हारे सेवा के लिये तब तक तैयार हैं  जब तक इस शरीर से गुरु महाराज काम लेना चाहें।

आज साधू बनने का समय नहीं है। साधू बनने पर भजन नहीं कर पाओगे और तुम्हारे ऊपर गन्दे कर्मो के भोग चढ़ते जायेंगे दुनियांदारों के कर्जो को उतारने में असंख्य युगों तक चौरासी औैर नरकों  में जाना होगा।

- साभार, संत बोध, जयगुरुदेव।
sant bodh

बाबा जयगुरुदेव जी महाराज 


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