*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट / दिनांक 06.11.2021*
*सतसंग स्थलः बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश / दिनांक: 05.नवम्बर.2021*
*"शराब-मांस खा-पी कर अपवित्र हाथों, शरीर से पूजा किया इसलिए लक्ष्मी, रिद्धि-सिद्धि नहीं मिली और न ऐसे आगे कुछ मिलेगा।"*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*
आजकल पूजा-पाठ करने से भी लाभ नहीं मिलने का कारण बता कर घर-परिवार में सुख-शांति लाने का तरीका बताने वाले, शाकाहार की वैचारिक क्रांति लाने वाले, अनिश्चितताओं से भरी जिंदगी में परमार्थ कमा कर निश्चिन्तता लाने की प्रेरणा देने वाले, प्राचीन भारतीय मूल्यों को याद दिला कर देश के स्वर्णिम भविष्य की नींव रखने वाले,
उज्जैन के पूरे संत और इस समय के महापुरुष *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 05 नवंबर 2021 को आश्रम उज्जैन, मध्यप्रदेश, भारत में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित प्रातः कालीन सतसंग में बताया कि,
आजकल दीपावली पर लोग पूजा-पाठ करते हैं। लक्ष्मी-गणेश, रिद्धि-सिद्धि की, जो जिसको मानता है, उस देवता की पूजा, याद बहुत लोगों ने किया होगा।
बहुतों ने मंत्र, तंत्र, जंत्र जगाए होंगे लेकिन फायदा नहीं मिल पाता है।
*शराब-मांस खा कर अपवित्र हाथों, शरीर से पूजा किया इसलिए कोई फल नहीं मिला और न ऐसे आगे मिलेगा।*
रिद्धि-सिद्धि, लक्ष्मी-गणेश की पूजा अपवित्र नापाक हाथ, शरीर से किया जिस शरीर से अंडा फोड़ते रहे, बकरा, मुर्गा काटते रहे।
नहीं भी काटे तो बकरे-मुर्गे का मांस ले आए। उसी हाथ से पकाया, उसी मुंह में डाला जिससे मंत्र उच्चारण पढा। अंदर से सोचा कि देवी-देवता खुश हो जाएंगे, धन-दौलत दे देंगे, घर में नोटों की बरसात कर देंगे।
लेकिन यह अंदर तो गंदा है। शराब पीकर, नशे की चीजों को खा कर आदमी होश में नहीं रह जाता है। लेकिन कहते हैं भांग, शराब नहीं पिएंगे तो गला नहीं चलेगा।
ऐसे नाचते हैं जैसे मीरा की तरह भगवान इन्हीं को मिल गए लेकिन कहते हैं शराब नहीं पिएंगे तो नाच नहीं पाएंगे, थकावट तो पीने से ही दूर होगी।
*जब शरीर गंदा है तो प्रभू और प्रभू कृपा कहां से मिलेगी? नहीं मिल सकती।*
*जैसे आपको वैसे जानवरों को भी मारने-काटने पर दर्द होता है।*
इसलिए लोगों को बताओ कि भाई शाकाहारी रहो। तुम्हारी वजह से किसी भी जीव की हिंसा न हो। चोट, कांटा लगे, उंगली कट जाए तो कितना दर्द होता है। ऐसे ही जानवर का हाथ-पैर काटोगे तो उसको भी दर्द होगा।
आपके बच्चे को कोई एक थप्पड़ मार दे, उंगली-हाथ काट दे तो दो थप्पड़ मारने की इच्छा, भारी दुख आपको हो जाता है। ऐसे ही मुर्गे, बकरे, भैंसे के बच्चे को काट देते हो और उसकी असहाय मां ऐसे देखती रहती है। *सोचो।*
*आजकल तो हिंसा की, मारने की प्रवृत्ति हो गयी है।*
आजकल तो यह प्रवृत्ति हो गई कि बेजुबानों को मारो, मरने दो। सतसंग सुन कर एक बोला कि हम तो कुत्तों को देख कर के गाड़ी चढ़ा देते थे, पिल्लों को उठा कर पटक देते थे। लेकिन हमको क्या मालूम था कि इनमें भी यही जीवात्मा है, इन को मारने से भी पाप होता है।
ऐसे ही सबको बताने की जरूरत है। *हर जीव में यही जीवात्मा है जो मनुष्य के अंदर है। इसलिए हिंसा-हत्या नहीं करनी चाहिए।*
*पहले तो अनजान की हिंसा-हत्या का भी लोग प्रायश्चित करते थे।*
किसी से अनजान में भी हिंसा-हत्या हो जाती थी तो प्रायश्चित करते थे। लिपाई करते समय चींटी या चूल्हा में लकड़ी में कोई कीड़ा अनजान में मर गया हो तो उसके लिए प्रायश्चित करती थी।
*तो प्रेमियों इन सब बातों को लोगों को बताने की जरूरत है ताकि लोगों के अंदर बदलाव आवे।*
*जोर-जबरदस्ती से नहीं बल्कि वैचारिक क्रांति से परिवर्तन लाओ।*
शक्ति से जल्दी नहीं बदले जा सकते हैं लेकिन विचारों में परिवर्तन लाने से इनके अंदर बदलाव आ जाएगा। आपको भी बदलने-सुधारने का लाभ मिलेगा और उनको भी फायदा मिल जाएगा।
तो फायदा तो परमार्थ का काम करने में है। फायदा तो इसी में है कि उनके जीवात्मा के लिए कुछ काम किया जाए, प्लेटफॉर्म तैयार किया जाए जिससे इनकी आत्मा फंसने न पावे।
*यह मौका आपको मिला है। कोई जरूरी नहीं है कि दुबारा मिले। एक-एक दिन, क्षण खत्म होता जा रहा है।*
*आज जिंदगी की कोई गारंटी नहीं इसलिए जो भी समय मिले उसको परमार्थ में लगाओ।*
पहले तो समय पूरा करने के बाद ही शरीर छोड़ते थे लेकिन इस समय तो कोई गारंटी नहीं है कि
रात को कोई सो जाए तो सुबह सवेरा देखेगा, घर से सुबह निकले तो शाम को घर वापस आ जाए।
मोटे-मोटे आदमी, राहगीर राह में चलते-चलते गिर जाते हैं, कहते हैं लकवा हो गया। कहते है मांस, अंडा, मुर्गा, बकरा खाओ तभी बॉडी बनेगी लेकिन चार आदमी मदद करें तब उठाकर ले जा पाएंगे।
अभी किसी का कोई भरोसा नहीं है तो जो भी समय मिले उसको परमार्थ में लगाया जाए। अपने और दूसरे की जीवात्मा का कल्याण कराया जाए। *यह लक्ष्य, उद्देश्य लेकर आप लोग गुरु के मिशन में लगो। इसलिए शाकाहारी बनो-बनाओ, वैचारिक क्रांति लाओ।*
जयगुरुदेव
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Baba Umakant Ji Maharaj |
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