*जब तक गोस्वामी जी के स्तर के पूरे संत नहीं मिलेंगे तब तक इसका असली अर्थ समझ नहीं सकते हो, केवल रटते रहोगे।

*जयगुरुदेव*
*सन्देश / दिनांक 17.11.2021*

*सतसंग स्थलः धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश*
*सतसंग दिनांक: 16.नवम्बर.2021*

*"धार्मिक ग्रंथों को केवल पढ़ने-रटने से मुक्ति नहीं होगी, समय के संत ही वो नाम की दौलत दे सकते हैं...*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

धार्मिक पुस्तकों में जो पूरे समरथ सतगुरु की पहचान बताई गई है, उन सभी कसौटी पर खरे उतरने वाले, जिस नाम का जिक्र बार-बार किया गया है वो अनमोल नामदान देने वाले,
इस समय के मनुष्य शरीर में मौजूद परम संत उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 16 नवंबर 2021 को धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि,

प्रेमियों! दुनिया में मत फसों। हम यह नहीं कहते हैं कि खाने कपड़े का इंतजाम न करो, अपनी व्यवस्था न बनाओ। लेकिन इतना न फैला दो कि उसी में फंसे रहो।
दिन-रात मक्खी की तरह से फंस जाओ उसी में, निकल नहीं पाओगे तो उसी में जीवन खत्म हो जाएगा। रोज बाइस घंटा इस शरीर के लिए काम करो और दो घंटा अपनी आत्मा के लिए समय निकालो।
*ताकि यह जहां से आई है, जहां कि ये बूंद है उसी समंदर में विलीन हो जाए। अब यह काम करो।*

*इस कलयुग में नाम और नाम देने वाले की महिमा कही गई है।*
तो आप कहोगे कैसे करें? इसका रास्ता आपके शरीर के अंदर से ही है, बताऊंगा। वह नाम भी आपको बताऊंगा जिसके लिए संत-महात्माओं ने कहा, गोस्वामी जी महाराज ने कहा -
*नामु लेत भव सिंधु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं।।*
वो नाम जिसे लेते ही भवसागर सूख जाए। और कहा है -
*कलयुग केवल नाम अधारा। सुमिर-सुमिर नर उतरहि पारा।।*
कलयुग में नाम को याद करके, सुमिरन करके जीव पार हो सकता है।

*जब तक गोस्वामी जी के स्तर के पूरे संत नहीं मिलेंगे तब तक इसका असली अर्थ समझ नहीं सकते हो, केवल रटते रहोगे।*
आगे उन्होंने यह भी बता दिया कि नाम कहां मिलेगा? उसकी जानकारी कैसे हो पाएगी? जिसको कलयुग में याद करके पार हुआ जा सकता है।
उसको उन्होंने धार्मिक किताब में लिख तो दिया लेकिन उतनी जानकारी रखने वाला जब कोई मिलता है तब समझाता है।
नहीं तो केवल पढ़ते चले जाते हैं जैसे गुरु ग्रंथ का पाठ पढ़ते चले जाते हैं। उन्होंने कहा गुरु की पहचान इसमें लिखी हुई है कि गुरु किस तरह का होना चाहिए? उसको समझ नहीं पाते हैं, कहते हैं पाठ करने से ही हम पार हो जाएंगे।

ऐसे ही किताबों को बस पढ़ते चले जाते हैं। लेकिन उसमें क्या लिखा है? किस तरह से करना चाहिए? इसकी जानकारी नहीं हो पाती है।
मोटी बात समझो, एम.ए. , पी.एच.डी. कर के कोई किताब लिखे तो उसे दसवीं पास क्या समझाएगा - बताएगा ? ऐसे ही लोग समझ नहीं पाते कि *गोस्वामी जी ने जिस नाम के बारे में लिखा है, वो नाम कहां मिलेगा? कौन देगा?*

*संत किसको कहते हैं?*
ऋषि, मुनि, योगी, योगेश्वर अलग होते हैं। आज ज्यादा नहीं बताऊंगा नहीं तो नए लोग भ्रम में पड़ जाओगे। जो पुराने सतसंगी हो आपको बहुत बार बताया गया। अभी भी पुराने सतसंग यू-ट्यूब पर पड़े है, और भी चैनलों पर चलता है। सतसंग आप उसमें सुन सकते हो, बताया गया है।

संत उसको कहते हैं जो आदि से अंत को सब कुछ जानता है। हमारे गुरु महाराज, बाबा जयगुरुदेव पूरे संत थे। किसी ने इनको संत सतगुरु या मुर्शिद-ए-कामिल या सच्चा गुरु या कुछ भी कहा।
*अलग-अलग भाषा में लोगों ने अलग-अलग नाम से संतो को पुकारा है।*

*हमारे गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव पूरे संत थे और अब उन्हीं के आदेश से 'नामदान' दिया जा रहा है।*
मोटी बात समझो! जैसे एक ही चीज गेहूँ को हिंदी वासी लोग गेहूँ, पंजाब में कनक, अंग्रेज व्हीट और पारसी गंदुम कहते हैं।
गेहूं तो एक ही है लेकिन नाम अलग-अलग। इसी तरह से गति तो एक ही है। हमारे गुरु महाराज पूरे संत थे और नाम की बख्शीश दिए।

*और उसी नाम को आपको आज दिया जाएगा, गुरु महाराज के आदेश से आपको आज 'नामदान' दिया जाएगा।*


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