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जब लालबहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री थे तो एक बार वह
कपड़े की दुकान में साड़ियाँ खरीदने गये।
दुकान का मालिक शास्त्री जी को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ।
शास्त्री जी ने दुकानदार से कहा कि उन्हें चार-पाँच साड़ियाँ चाहिए।
दुकान का मालिक शास्त्री जी को बहुत बढ़िया साड़ियाँ दिखाने
लगा। सभी साड़ियाँ बहुत ऊँचे दाम की थीं।
शास्त्री जी ने कहा,
भाई, मुझे इतनी मँहगी साड़ियाँ नहीं खरीदनी। कम मूल्य वाली साड़ी
दिखाओ।
इस पर मालिक ने कहा, 'साहब, दाम की तो कोई बात ही नहीं
है। यह तो हमारा सौभाग्य है कि आप यहाँ पर पधारे हैं।'
शास्त्री जीउसका आशय समझ गये। उन्होंने कहा, 'आपको साड़ी का मूल्य तो
लेना ही होगा। मैं तुमसे जो कह रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो और मुझे
कम मूल्य की साड़ियाँ ही दिखाओ और साथ-साथ उनका मूल्य
बताते जाओ।'
तब दुकानदार ने शास्त्री जी को थोड़ी सस्ती साड़ियाँ दिखाना आरम्भ किया।
शास्त्री जी ने कहा, 'भैया, ये साड़ियाँ भी मेरे लिए मँहगी ही हैं। और कम दाम की दिखाओ।'
दुकानदार को सबसे सस्ती साड़ियाँ दिखाने में संकोच हो रहा था। शास्त्री जी इसे समझ गए।
उन्होंने कहा, 'आपकी दुकान में जो सबसे सस्ती साड़ियाँ हों, वह मुझे दिखाओ।'
आखिरकार मालिक ने उनकी इच्छानुसार सस्ती साड़ियाँ निकालीं।
शास्त्री जी ने उनमें से चार-पाँच साड़ियाँ चुन लीं और उनका मूल्य देकर चले गए।
उनके जाने के बाद दुकान के कर्मचारी और अन्य उपस्थित लोग शास्त्री जी की सादगी की चर्चा करते रहे।
उन्होंने शास्त्री जी की सादगी के बारे में सुन रखा था परन्तु आज उन्हें उनकी सादगी के साक्षात दर्शन हो गये।
ऐसे थे भारत के विलक्षण प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री। उनका व्यक्तित्व सचमुच महान था।
प्रणाम।
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Jaigurudev