जयगुरुदेव
प्रेस नोट/ दिनांक 14.10.2021
सतसंग स्थलः आश्रम उज्जैन, मध्यप्रदेश / दिनांक: 25.अक्टूबर.2020
आज दशहरा के दिन मन की गति और चाल को रोक ले गए, बुराइयों को छोड़ दिया,
तो आपका ये मन का रावण मर जाएगा।
- बाबा उमाकान्त जी महाराज
पर्व और त्यौहार मनाने के पीछे छिपे असली उद्देश्य और संदेश को सरल शब्दों में बताने - समझाने वाले, ताकि सभी इनसे मिलने वाले भौतिक और आध्यात्मिक लाभ को प्राप्त कर सके, ऐसे वर्तमान के पूरे महापुरुष,
उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 25 अक्टूबर 2020 को उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम (jaigurudevukm) पर प्रसारित संदेश में बताया कि,
जगह-जगह दशहरा मनाया जा रहा है। रावण तो एक ही था लेकिन देश-विदेश में आज लाखों लोग राम बन के लाखों रावणों को मारेंगे।
रावण के अहंकार ने उसकी विद्वता, शक्ति, तपस्या का नाश कर दिया।
रावण कौन था? बड़ा विद्वान, बलवान, बड़ी शक्ति ताकत वाला था। बहुत तपस्या, मेहनत किया था। इन चक्रों को रोक लेता था तभी तो उसके अंदर ताकत सब आई थी।
लेकिन उसका मन उसकी बुद्धि को खराब कर देता था, जो एक कारण बना उसके विनाश का। तो इस मृत्यु लोक में, काल के देश में वो भी था। किसी का भी इस देश में अहंकार नहीं चला।
शिव की जगह पर, हृदय चक्र पर जब पहुंचते हैं तब अहंकार खत्म होता है। नहीं तो शिव का काम क्या है? संहार करना और अहंकार ही संहार कराता है, विनाश का कारण बन जाता है तो अहंकार उसके अंदर पैदा हो जाता था।
अहंकार की वजह से ही रावण का विनाश अवश्यंभावी हो गया था।
देवासुर संग्राम में देवताओं से लड़ने के लिए असुर तैयार हो गए थे। अहंकार उनको हो गया कि देवताओं को हम कुछ नही समझेंगे, मार देंगे, खत्म कर देंगे।
जैसे रावण ने देवताओं के ऊपर कब्जा कर लिया था। कहते हैं कि वरुण देवता यह पवन और पानी, रावण के घर पानी भरते थे। पानी भरने का मतलब सेवा करने का। जब जैसा चाहता, रावण हवा को रोक देता, तेज-कम चलाता था। अग्नि के ऊपर भी उसका कब्जा था।
वरुण, कुबेर, सुरेश, समीरा। रण सन्मुख धरि काहूँ न धीरा।।
बड़े-बड़े देवता उसके सामने टिकते नहीं थे, सबको बस में कर रखा था। तो उसका अहंकार भी खत्म होना जरूरी था।
अगर वही सब हो जाता तो राक्षस का ही यह संसार हो जाता और विधान ही बदल जाता इसलिए राम को आना पड़ा। चाहे रावण का विनाश करने के लिए दो कला यानी शक्ति परशुराम से ही उनको मांगनी पड़ी लेकिन उसका विनाश अवश्यंभावी हो गया।
सभी महापुरुष इसी मनुष्य शरीर में ही आयें हैं।
रावण का विनाश अहंकार की वजह से हुआ। लेकिन रावण को अहंकारी बनाया किसने?
उसके मन ने बनाया। क्योंकि आप ही के समान मनुष्य शरीर में वह भी था। यहां भी दुष्ट, सज्जन, साधक इसी में है। उस समय के राम-कृष्ण जो भी महापुरुष आए सब मनुष्य शरीर में ही थे।
सभी अवतारी शक्तियां जिनको भगवान कहते हो, संत - महात्मा जिनको गुरु सतगुरु कहते हो, सब मनुष्य शरीर में ही आते हैं।
अहंकार की वजह से रावण के मन ने उसके शरीर से पाप करवाये।
रावण के मनुष्य शरीर के अंदर भी मन था जैसे आपके अंदर भी मन है। तो मन यह कराता था। मन ही उसके शरीर को चला देता, अपराध करा देता था।
अब उसका मन क्यों खराब और पापी हो जाता था?
क्योंकि उसका खानपान खराब हो जाता था। जब मांस-शराब खा-पी लेता, दूसरे की औरत की तरफ खराब नजर देखता था तो मन उससे पाप करा देता था और उसके अंहकार में आ जाता था कि हमारे पर रोक-टोक नहीं है, कोई एक्शन-रिएक्शन नहीं है, हम तो आजाद हैं।
जब चाहेंगे तब अपने पावर से जमीन से लेकर के स्वर्ग तक सीढ़ी लगा देंगे और सीढ़ी पर चढ़कर के स्वर्ग पहुंच जाएंगे तो वह अहंकार ने उसको खत्म कर दिया।
अगर रावण वाला कर्म - मांस, मछली, अंडा, शराब का सेवन करोगे, दूसरे की औरत को गलत नजर देखोगे तो सजा मिलेगी, पाप का अंत होता ही है।
अब रावण के शरीर को गंदा कौन कराता था?
उसका मन। अब आपका मन अगर उसी तरह से कामी, क्रोधी हो गया तो रावण वाला कर्म अगर आप करोगे, मांस, मछली, शराब खाओगे-पियोगे तो शरीर से पाप बन जाएगा।
दूसरे की औरत को गलत नजर देखोगे, बच्चियों दूसरे के पुरुष को गलत नजर देखने लग जाओगी तो शरीर पापी हो जाएगा। पाप की सजा तो मिलती है, पाप का अंत तो होता है।
पाप जब बहुत बढ़ जाता है तब धर्म की स्थापना होती है और धर्म फिर से आता है, पुण्यात्मा लोग बनते हैं।
आज दशहरा के दिन मन की गति, चाल को रोक ले गए, बुराइयों को छोड़ दिया तो आपका ये मन का रावण मर जाएगा।
मन को आज मारने की जरूरत है। और आज अगर दशहरा के दिन आप मन की गति को, चाल को, मन को, रोक ले गए और अभी तक की गई सभी बुराइयों को छोड़ दोगे।
शरीर के अंग से बुराइयां करके शरीर को जो आपने गंदा, अपवित्र किया, शरीर से पाप किया उसको अगर आप छोड़ दोगे तो समझो कि आपका यह मन का रावण मर जाएगा।
और यही मन फिर उधर ऊपर की तरफ लग जाएगा और आंखों के ऊपर भी यह मन जाता है तो वहां ब्रह्मांडी मन बन जाता है।
वही मन फिर साथ देने लगता है।
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev