*साधना में बैठने की आदत डालो तो गुरु कृपा से खेल-खेल में ही काम हो जाता है।*

*जयगुरुदेव* 
*प्रेस नोट/दिनांक 04 अगस्त 2021*
रजनी विहार आश्रम, जयपुर, राजस्थान

*साधना में बैठने की आदत डालो तो गुरु कृपा से खेल-खेल में ही काम हो जाता है।*

सभी जीवों को तरह-तरह से उनके मानव जीवन का असली उद्देश्य बतला कर, पूरे गुरु से नामदान लेकर मुक्ति मोक्ष प्राप्त करने की निरंतर समझाइश देने वाले,
इस धरा पर समय के पूरे संत उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने अपने जयपुर स्थित रजनी विहार आश्रम से 02 अगस्त 2021 सायंकाल में यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित सतसंग में बताया की,

अभी दुनिया वाले तप रहे हैं, जल रहे हैं, परेशानी झेल रहे हैं। लेकिन आप प्रेमी जब सुबह-शाम थोड़ी देर साधना पर बैठते हो तो शान्ति आपको मिलती है और साधना में तरक्की हो जाए, रूह इस शरीर से निकल कर उपरी लोकों में जाने लगे तो उस समय ये शरीर और इससे अनुभव होने वाली गर्मी-सर्दी, परेशानी सब भूल जाता है।
लेकिन मन साथ नहीं देता है। इसका और सुरत का साथ चोली-दामन के साथ के समान हो गया। ये मन हो गया कलयुगी। इन्द्रियों से मन को खुराक मिलती है तो ये वहीं चला जाता है। मन आँख, कान, मुख, नीचे की इन्द्रियों में सुख ढूंढता है।

खाने-पीने-देखने में मन चला गया तो साधना में बैठने पर भी वही चीज याद आती है। मन उठाता है की शरीर को ले चलो, गाना-बजाना देखो-सुनो जिससे मस्ती आवे, आनंद मिले। मन दुनिया की नाशवान चीजों में आनंद खोजने लग गया।
लेकिन कहते हैं की धीरे-धीरे बात बन जाती है। खेल-खेल में ही बात बन जाती है। हाजरी लगाते रहो, दरबार में तो सुनवाई हो ही जाती है। 
*पड़ा रहे दरबार में, धक्का धनी का खाए। कभी तो गरीब नवाजे, जो दर छोड़ के न जाय।।*
दर नहीं छोडोगे, बैठते रहोगे, आदत डाले रहोगे तो कभी सुनवाई हो जाएगी। 

*दुनियादारी में सफलता से नहीं बल्कि त्याग करने से इज्जत बढती है।*

कई नामदानी बिलकुल दुनियादार हो जाते हैं। सोचते हैं की दुनिया की चीजों में ही रस मिलेगा, धन-पुत्र-परिवार बढ़ाने में ही हमारी भलाई होगी, हमें सम्मान मिलेगा, इज्जत बढ़ेगी।
इज्जत इसमें नहीं बढती है। देखो! एक से एक राजा-महाराजा हुए, किसी की पूजा नहीं हुई लेकिन जिन्होंने त्याग किया उनकी पूजा हुई। समय की जरुरत के हिसाब से इस भारत देश में संत, ऋषि-मुनि आये और वैसा काम किया, बगीचा लगा कर चले गये।
बबूल का पेड़ लगाया तो छाया वहां भी मिल जाती है। संतों ने तो ऐसा वृक्ष लगाया कि उसका फल अभी भी लोगों को मिल रहा है। संतों ने बहुत मेहनत किया, जीवों में आदत डाली। संत उपदेश करने के लिए ही होते हैं, शंकाओं का समाधान करते हैं।
आपके कर्म कर्जों की अदायगी के लिए आपको ये परिवार मिला है। संतों के पास जाओगे तो आराम से लेना-देना अदा करवा देंगे वरना गाली-मारपीट से भी कर्म कर्जे अदा करने पड़ जाते हैं।

*महात्मा आपसे सेवा लेकर आपके कर्मों के लेन-देन को आसानी से पूरा करवा देते हैं।*

जैसे समझो! आपने किसी को मारा-पीटा और अब वो आपको मारेगा। तो संतों के यहाँ केवल उसकी कोहनी ही लग गयी उसी में कर्जा अदा करवा देते हैं। आपने किसी का खाया, अब उसे खिलाना है।
आपने भंडारा में रोटी का आटा दे दिया, रोटी बना के खिला दिया, पानी ही पिला दिया तो कर्जा अदा हो जाता है। मेला इसलिए महात्मा लगवाते थे की एक-दुसरे का कर्मों का कर्जा अदा हो जाये।

देखो! सेवा का कितना लाभ मिलता है? जीव अलग-अलग कर्मों के होते हैं, कर्जा अदा करने के लिए एक-दूसरे से जोड़ दिए जाते हैं। आप देखो कि बराबर प्रेम घर में बहुत कम लोगों के होता है। कोई कम कोई ज्यादा - सतसंगी भाव वाला, भजनानंदी होता है चाहे साथ सतसंग में आये लेकिन भाव-भक्ति अलग-अलग होती है।
तो जोड़ा जाता है आपसी कर्जा अदा करने के लिए। जब सन्तों के पास लोगों का आना-जाना होता है तो महात्मा उसी कर्जे को आसानी से अदा करा देते हैं। नहीं तो इसी गृहस्थी में गाली-गलौज, मारपीट से कर्जा अदा होता है।

*सेवा से कर्म कटते हैं, दीनता आती है, जिससे ही प्रभु मिलते हैं।*

गुरुजी महाराज ने नौ दिन, ग्यारह दिन तक एक जगह पर कैंप लगा करके सतसंग सुनाया, बहुत मेहनत किया। एक आदमी से शुरू किया। अब देखो! कितने हो? अब भी बढ़ते जा रहे हो।
जिसने ये लक्ष्य बनाया कि नामदान दिलाना, भटके को रास्ता बताना पुण्य का काम है तो इसे करना चाहिए। शरीर का भोजन दाल-रोटी आदि है लेकिन आत्मा का भोजन शब्द का आहार है। आत्मा यदि सुखी हो जाएगी तो शरीर भी प्रसन्न रहेगा।

जब बताये गए नाम की कमाई जीव करेगा तो शब्द सुनाई पड़ेगा और शब्द का आहार मिलेगा। नामदान कईयों को मिल चुका है। कई लोग प्रचार का प्रयास अभी भी कर रहे हैं।
संगत अभी बहुत बढ़ रही है। जड़, बीज तो पहले के संतों ने डाला लेकिन गुरु महाराज ने सिंचाई करके पौधे को बड़ा किया और फल भी मिलने लगा। आप इतने आदमी गुरु प्रेम में, गुरु की दया लेने के लिए आये हो। उनके आदेश की पूर्ति होती है तो उसमें आप आते हो। 

संत भी बताते हैं कि कम खाओ तो आराम से हजम हो जाये, गम खाओ यानी बर्दाश्त करो और निंदा मत करो तो सुखी रहोगे। समाज में भी जो छोटा बन के रहा, दो बात किसी की बर्दाश्त किया तो सुखी रहा।
ये छोटा बन कर लेने का छोटा, दीनता का रास्ता है। अंदर के पांचो भूत लोभ मोह अहंकार काम क्रोध, जब तक कमजोर नहीं पड़ेंगे तब तक आपकी तरक्की भजन में नहीं हो सकती। 

*साधना में बैठने की आदत डालो, गुरु कृपा से खेल-खेल में ही काम हो जायेगा।*

आप लोग आदत डालो। देखो! इससे कहाँ से कहाँ पहुँच गये। ऐसे ही आप भी ध्यान-भजन में बैठने की आदत डालो। जब शरीर को बैठाओगे तो मन भी स्थिर हो जायेगा।
*जब दया-कृपा हो जाती है तो खेल-खेल में ही बात बन जाती है, कर्म कट जाते है, संस्कार जागते हैं और काम बन जाता है, मनुष्य जीवन सार्थक हो जाता है।*



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