*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट / दिनांक 29.10.2021*
*सतसंग स्थलः नई दिल्ली, भारत / दिनांक: 17.अक्टूबर.2021*
*मनुष्य शरीर भगवान का भजन करने के लिए मिला है, कुछ अपनी जीवात्मा के लिए भी करो....*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*
मानव जीवन में गुरु की महिमा समझाते हुए इस समय के पूरे संत सतगुरु,
उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 17 अक्टूबर 2021 को रजोकरी, नई दिल्ली, भारत में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि,
प्रेमियों! आप जो नए लोग आए हो, आप को *नामदान* भी देना है इसलिए ज्यादा विस्तार में नहीं जाना चाहता हूं लेकिन मोटी बात आपको बताऊंगा।
*यह मनुष्य शरीर आपको भगवान का भजन करने के लिए मिला है।*
ये शरीर कुछ समय के लिए मिला है। इसको एक दिन आप को न चाहते हुए भी खाली कर देना पड़ेगा।
इसके लिए जो भी सामान आप इकट्ठा कर रहे हो यह सब आप के आखिरी वक्त पर काम आने वाला नहीं है, इसलिए कुछ वहां के लिए भी बनाओ।
*गुरु की असली पहचान अन्तर का जलवा देखने पर होती है।*
आप शरीर से सेवा करते हो। सेवा का विधान संतो ने बनाया। संत आते हैं, समझाते-बताते हैं, रास्ता बताते हैं और रास्ते पर चला कर के मंजिल तक पहुंचा देते हैं।
जैसे हमारे गुरु महाराज। गुरु रहते इसी हाड़ मांस के मानव शरीर में लेकिन जल्दी कोई पहचान नहीं पाते है। *जब तक अंतर में जलवा नहीं देखते हैं, जब तक पहचान नहीं होती है।*
रानी इंदुमती ने जब अंतर में कबीर साहब का जलवा देखा तब बोली कि आप हमको मृत्युलोक में क्यों नहीं बताएं कि मैं ही सब कुछ हूं। तो मुझे इतनी साधना, मेहनत क्यों करनी पड़ती।
तब बोले तुझको विश्वास न होता कि मनुष्य शरीर में भी इतनी शक्ति हो सकती है। इसलिए तुझको रास्ता बताया, रास्ते पर चलाया और फिर यह जलवा दिखाया। बोल तेरी मदद किया कि नहीं किया।
तब चरणों में गिरी, बोली; आपके मदद के बिना एक एक कदम नहीं चल सकती थी, न समाज में, न मृत्यु लोक के किसी भी दुनिया स्थान में और ऊपर तो कदम-कदम पर रोड़े आते रहे लेकिन मैं आपको याद करती रही और बाधाएं हटती रही, आपकी दया तो महान है।
*प्रेमियों! गुरु पर पूर्ण विश्वास करो, उनकी रजा में राजी रहो, वो ही आपके लिए फायदेमंद है।*
कहा गया है संतो की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार। ये भी कहा गया कि
*"सब धरती कागज करूं, लेखन सब वन राय।*
*सात समंदर की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाए।"*
सारी धरती को कागज, सारे पेड़ों को कलम, समंदर को स्याही बनाने पर भी गुरु की महिमा को नहीं लिखा जा सकता।
*तो प्रेमियों! आपको विश्वास करना चाहिए, जैसा गुरु कहें वैसा करना चाहिए, उसी में राजी रहना चाहिए, वही फायदेमंद होता है।*
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