...ऐसों के साथ संगत रखिये

संतो की हितभरी अनुभव-वाणी , अमृतवाणी
संसकारों  से प्राप्त शिक्षण

संस्कारों से जो शिक्षण प्राप्त होता है, वह और किसी पद्धति से नहीं।

...ऐसों के साथ संगत रखिये

इधर उधर की अत्यधिक गप्प लड़ाने वालों के साथ अधिक संगत मत बढ़ाइये। उसमें कोई सुख नही है। संगत ठीक से चुनकर बनाइये। किसी ज्ञानी पुरुष या अच्छे मित्रों के साथ संगत रखिये जो आपके मन में आध्यात्मिक विचार जगा सकें, और ईश्वर को पाने का प्रयास  करते रहिये।

बिना खोजे नही मिलता
बिन खोजे से ना मिलै, लाख करै जो कोय।
पलटू दूध से दही भा, मथिवे से घिव होय।।
कोई लाख कोशिश करके, बिना आत्मखोज किये, बिना आत्ममंथन किये किसी को अपने वास्तविक स्वरूप  आत्मा परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती। जैसे- दूध जमाने से दही बन जाता है लेकिन घी तो दही के मंथन आदि के बाद ही प्राप्त होता है।

अच्छे संस्कारों की जरूरत है
देश को सम्पत्ति  की जितनी जरूरत है उससे अधिक  संस्कारों की जरूरत है।
विचार पूर्वक प्रयत्नों से सब संभव है
हमारे भाग्य में किस बात की कमी है ? केवल उचित प्रयत्न नहीं करने के कारण ही हम लक्ष्य की प्राप्ति से वंचित रह जाते हैं। प्रयत्न करें तो कैसे करें यही पहले समझ में नही आता है। मुख्य प्रयत्न तो विचारों का है अतः पहले उसके विषय में बोलना उचित रहेगा। हम सत्य एवं नियम की राह पर चलें तथा नीति और न्याय को न हीं छोड़ें।
बुद्धि से ही सब कुछ होता है और इसको देने वाला भगवान परमात्मा है। प्रथम इन्हीं को अपना बना लीजिए, जिनके चरणों में लक्ष्मी वास  करती है। कोई भी कार्य करने से होता है, इसलिए पहले प्रयत्न करना ही चाहिए। प्रयत्न ही परमेश्वर है।


पत्थर की नांव पर मत चढ़ो
कबीर कुसंग न कीजिए, पाथर जल न तिराय।
कदली सीप भुजंग मुख, एक  बूंद तिर भाय।।

कुसंगति ना करो। जैसे पत्थर की नांव पर चढ़कर कोई नदी पार नहीं कर सकता, ऐसे ही कुसंगति करते हुए कोई भव सागर से पार नहीं हो सकता। 
संगति का बड़ा प्रभाव पड़ता है। लोकमान्यतानुसार, स्वाति नक्षत्र में ओसों क बूंद केले में पड़ने से कपूर, सीपी में पड़ने से मोती और सर्प के मुख  में  पड़ने से विष हो जाती  है अर्थात एक ही प्रकार की बूंद से संगति अनुसार तीन प्रकार के गुण  हो जाते हैं

-संत कबीर साहब जी 




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