*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट/दिनांक 20.09.2021*
निकोल, अहमदाबाद, गुजरात
*बाबा जयगुरुदेव जी ने दिया आदेशः "उमाकान्त पुरानों की करेंगे सम्भाल और नयों को देंगे नामदान।"*
इस कलयुग के इतिहास में सबसे अधिक जीवों को नामदान देने वाले और जन्म-मरण के असहनीय पीड़ा से छुटकारा दिलाने वाले *बाबा जयगुरुदेव जी महाराज* के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी,
उज्जैन के महान संत *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 12 सितंबर 2021 को निकोल, अहमदाबाद, गुजरात में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि,
गुरुजी महाराज ने तो बहुत बड़ा काम किया। जितने भी संत आए सब लोगों ने मिलकर जितने जीवों को *नामदान* नहीं दिया, उससे कई गुना ज्यादा जीवों को *नामदान* गुरुजी महाराज ने दिया है।
*गुरुजी महाराज अपने गुरु के आदेश का पालन अंतिम सांस तक करते रहे, ऐसे ही मुझको भी गुरु आदेश का पालन करना है।*
गुरुजी महाराज अपने गुरु के आदेश का पालन अंतिम समय तक करते रहे। लेकिन पंच भौतिक शरीर में रहने के कारण, जल पृथ्वी अग्नि वायु आकाश का यह जो शरीर है, उनको भी इसे छोड़ना पड़ा। लेकिन छोड़ने से पहले मेरे लिए ये आदेश दे दिया था *नामदान* देने का।
गुरुजी महाराज के पास जब आया था, तब मैं कुछ नहीं जानता था कि संतमत क्या चीज होती है। वही दुनिया की इच्छा, पढ़ाई-लिखाई, घर वालों की भी वही इच्छा थी, शादी-ब्याह होगा, बाल-बच्चे बढेंगे, वही इच्छा थी।
लेकिन गुरुजी महाराज ने दया किया। सबसे विरक्ति दिला दी। न ब्याह, न कोई दुकान, न कोई दफ्तर कराया। अपने पास रखा।
इच्छा उससे खत्म किया। इच्छा अगर लगी रहती, बनी रहती तो यह फिर नहीं हो पाता। यह कैसे हुआ? गुरु की दया से ही हुआ।
और गुरुजी महाराज ने यह काम दे दिया मुझको। तो जब तक यह शरीर चलता रहेगा, मैं करता रहूंगा क्योंकि गुरु के आदेश का पालन मुझको करना है।
गुरुजी महाराज बहुत पहले बोल कर के गए थे कि, *ये पुरानों की सम्भाल करेंगे और नयों को नामदान देंगे।* तो सम्भाल वाली बात मैंने प्रेमियों आपको बताया। बहुत सारी बात बताई।
*यह सब सम्भाल की ही बातें बताई। आप अगर यह समझो, इसको अगर आप अपना लोगे तो आप सम्भल जाओगे।*
*नामदान देना दुनिया का सबसे कठिन काम है।*
अब जो नए लोग आए हो, आपको *नामदान* दूंगा। *नामदान* देना कोई आसान काम नहीं है, बहुत कठिन काम है। दुनिया का सबसे कठिन काम यही है। लेकिन अब गुरु के आदेश का पालन करना है। गुरु का आदेश चाहे रैन में हो, चाहे बैन में, चाहे सैन में कहा गया शिरोधार्य होना चाहिए।
*एक समय पर धरती पर एक ही को नामदान देने का होता है अधिकार।*
एक समय पर एक ही आदमी को *नामदान* देने का अधिकार होता है। वह जब *नामदान* देता है तभी उसमें बढ़ोतरी होती है। ऐसे तो कोई भी बांटने लग जाए, ऐसे नहीं होता है।
आपको बताऊं, जो जानकार बुद्धिजीवी लोग हो, आपको बताता हूं। देखो पीपल, पाकड़ और रसाल यह पेड़ होते हैं। इनका बीज सीधे, इनका फल जमीन में गिर जाए तो जमता नहीं है, पौधा नहीं तैयार होता है।
इस फल को जब पक्षी खाता है, उसके मुंह में जाता है, उसके मुंह से जब बीज निकलता है, जमीन में जब गिरता है, तब उसका पौधा निकलता है।
तो मुंह से सुनना जरूरी होता है। कई लोग ऐसे हैं जो कहते टेलीफोन से, ऑनलाइन *नामदान* दे दो। लेकिन ऐसा नहीं होता है, मर्यादा होती है।
*मर्यादा को नहीं खत्म किया जाता है।*
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