*सातवें शब्द भेदी गुरु को ढूंढ कर सतलोक पहुंच कर जीवन सार्थक बना लो।*

*जयगुरुदेव*

*प्रेस नोट/ दिनांक 12.09.2021*
गुरु पूर्णिमा पर्व, जयपुर, राजस्थान

*सातवें शब्द भेदी गुरु को ढूंढ कर सतलोक पहुंच कर जीवन सार्थक बना लो।*

इस समय मनुष्य शरीर में मौजूद पूरे शब्द भेदी गुरु, जो आयतों, ब्रह्मवाणी, वर्ड, शब्द को सुनने का रास्ता बताते हैं,
उन पहुंचे हुए आला दर्जे के सन्त-फ़क़ीर *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर 07 जुलाई 2017 को जयपुर, राजस्थान में यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित सतसंग में बताया कि,

देश, समाज, मानव बुद्धि के और सबके आध्यात्मिक विकास में संत-महात्माओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इसलिए कहा गया-

*संतों की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।*

संतों की महिमा का वर्णन ही नहीं किया जा सकता है। इन्होंने जो जीवों के लिए उपकार किया उसका बदला भी नहीं चुकाया जा सकता है।
इसलिए पन्द्रह दिनों में, महीने में एक बार संतों के आश्रम पर लोग जाते थे, सत्संग सुनते थे, उनके बताए रास्ते पर जब चलते थे तो यही गृहस्थ आश्रम स्वर्ग जैसा था। कोई खींचातानी नहीं थीं। कोई आदमी घर छोड़कर भागता नहीं था, औरतें जल कर मरती नहीं थीं।

*देश-समाज-मानव के विकास में संतों का योगदान अवर्णनीय है।*

देखो भाई-भाई में इतना प्रेम था कि भाई, भाई के लिए जंगल वनवास चला गया था। आज की तरह से लड़ाई-झगड़ा नहीं था। पिता और पुत्र एक दूसरे के फर्ज को समझते थे। पिता के आदेश पर राम ने राजगद्दी को ठोकर मार कर जंगल जाना कबूल कर लिया था।
*तो आप समझो संतों के पास जाने, उनके बताये रास्ते पर चलने से नुकसान नहीं होता बल्कि फायदा ही होता है।*

*जीवात्मा की शक्ति से ही ये शरीर चलता है।*
देखो! इस शरीर को चलाने वाली शक्ति है - जीवात्मा। जिसके निकलने के बाद यह दुनिया की कमाई, धन-दौलत, मकान जिसके लिए आदमी दिन-रात दौड़ता है, धर्म को भी छोड़ देता है, ईमान को भी बेच देता है, वह सारी चीजें यहीं छूट जाती हैं।

इस जीवात्मा के निकल जाने के बाद इस शरीर को लोग मिट्टी कहने लगते हैं। कहते हैं, यह मिट्टी है, ले जाओ इसको, जलाओ नहीं तो सडन-बदबू पैदा हो जाएगी।

तो वह क्या चीज है जो निकलती है? जिसे दुनिया का कोई भी वैज्ञानिक, पंडित, मुल्ला, पुजारी, ज्योतिषी इस बात का पता नहीं लगा पाया कि कौन सी ऐसी चीज निकलती है?

वह है जीवात्मा। इन्हीं दोनों आंखों के बीच में बैठी हुई है। उसका प्रकाश हृदय चक्र पर पड़ता है फिर वापस होकर नाभि चक्र, फिर इंद्री चक्र, फिर गुदा चक्र पर पड़ता है, जिससे ये चक्र चलते रहते हैं। इंगला,पिंगला, सुषम्ना यह तीन नाडीयां इस शरीर को चलाती हैं।

*जीवात्मा शब्द को पकड़ कर देवी-देवताओं के दर्शन कर सकती है।*

इन्हीं दोनो आंखों के बीच में जीवात्मा बैठी हुई है। कहा गया है कि ढाई आखर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय। ढाई अक्षर *शब्द* से ही सब कुछ बना है। शब्द का खिंचाव जब होता हैं तो दुनिया संसार में कुछ नहीं बचता।

यहां तक कि देवी-देवता भी चटाई की तरह से समेट लिए जाते हैं। जैसे मृत्युलोक है, ऐसे ही बहुत से ऊपर लोक हैं, स्वर्ग और बैकुंठ में रहने वाले देवी-देवता भी ऐसे चटाई की तरह से समेट लिए जाते हैं और दसवां द्वार स्थान के पास लटका दिए जाते हैं।

शब्द से ही सब कुछ बना है। जीवात्मा जब शब्द को पकड़ लेती है, जिससे उतारी गई है तो यह ऊपरी लोकों का दर्शन करती है। मनुष्य शरीर में देवी-देवताओं का दर्शन होता है। इसी में स्वर्ग और बैकुंठ का आनंद मिलता है। इसी में अनहद वेदवाणी, आकाशवाणी जो चौबीसों घंटा हो रही, वह सुनाई पड़ती है।

*सतसंग में आओ तो आपको सब जानकारी हो जाएगी।*

सतसंग आप अब अगर समय निकाल कर सुनोगे तो शरीर की रचना कैसे हुई? कैसे जीवात्मा इसमें डाली डाली गयी? कैसे इससे निकाल कर के उस मालिक के पास पहुंचाते हैं? कैसे उस समुद्र में विलीन करते हैं जिसकी ये अंश है? जन्म-मरण से कैसे इसका छुटकारा होता है? 

*जन्मते और मरते वक्त जो तकलीफ होती है उससे कैसे बचा जा सकता है?*
यह तो सब आपको और दूसरे सत्संग में सुनने को मिलेगा। समय आपके पास रहेगा। नहीं भी समय रहेगा तो निकाल लोगे। कोई काम आपका बिगड़ेगा नहीं। तो आपको बहुत सारी चीजों की जानकारी हो जाएगी।

*सातवें शब्द भेदी गुरु को ढूंढ कर अपना असला काम बना लो।*

अब यह है कि कोई रास्ता बताने वाला मिल जाए, संभाल करने वाला मिल जाए, बता कर के, समझा कर के, चला कर के, वहां तक पहुंचाने वाला मिल जाए।
सातवाँ गुरु शब्दभेदी गुरु मिल जाये तो यह चीज संभव हो जाती है। *असला काम तो यही है मनुष्य शरीर पाने का कि जीवात्मा को अपने मालिक के पास पहुंचा दिया जाए, नर्क चौरासी से छुटकारा ले लिया जाए।*


Jaigurudev




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