*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट/दिनांक 08 अगस्त 2021*
आश्रम उज्जैन, मध्यप्रदेश
*सफलता प्राप्त करने के लिए साधकों को कड़े नियम-संयम का पालन करना पड़ता है।*
आध्यात्मिक क्षेत्र में साधकों को सफलता प्राप्त करने की बारीकियों को सामाजिक पहलुओं और विद्यार्थी जीवन के माध्यम से सरल शब्दों में समझाने वाले, पूरे संत सतगुरु उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने उज्जैन आश्रम, मप्र. में 08 मार्च 2020 को होली कार्यक्रम के यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित सतसंग में साधकों और विद्यार्थियों में समानता बताते हुए कहा कि,
सामाजिक जीवन में विद्यार्थीयों को सफलता प्राप्त करने के लिए कहा गया है,
*काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च।*
*अल्पहारी गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।*
*काक चेष्टा:* यानी कौवा बहुत होशियार होता है उसका एकदम ध्यान अपने निशाने पर होता है की हमको कोई मार न पावें, खाने के लिए हम झपट के ले आवें। कुछ ऐसे होते हैं जिनको दो तब खाते हैं। कुछ ऐसे होते छीन कर ले आते हैं।
कुछ कुत्ते होते हैं जिनको जब दो तब खाएंगे, कुछ ऐसे होते हैं चाहे जितनी मार पड़ जाए, थाली में से ले जाते हैं। पक्षी तो कई तरह के हैं लेकिन एक कौवा जो होता है यह छीन कर ले जाता है। अन्य पक्षियों को दोगे तब खाएंगे तो उस तरह से अपने निशाने पर रहो। काक चेष्ठा उसी तरह की रखें, इच्छा उसी तरह की रखें जैसे कौवा रखता है।
*बको ध्यानं:* बगुला क्या करता है? एकदम चुप बैठा रहता है और जब मौका मिलता है फट से अपने शिकार पर चोट मार के खा लेता है। बगुला की तरह कहते हैं ध्यान लगाकर पढ़ो।
*श्वान निद्रा:* यानी कुत्ता जो होता है वह गहरी नींद कभी भी नहीं सोता है। हमेशा चेतन रहता है क्योंकि ड्यूटी उसकी इस तरह की रहती है रखवाली करने की। सो जाएं अगर रखवाली करने वाला तो लूट लिया जाएगा।
इस तरह से विद्यार्थी को होना चाहिए, कुत्ते की तरह सोना चाहिए। चेतन होकर के थोड़ी देर आराम कर लिया फिर पढ़ने लग गए।
*अल्पाहारी:* भरपेट खाना खाकर के सो जाओगे तो हजम हो जाएगा लेकिन जैसे विद्यार्थी को डिग्री लेने को होता है तो वो कम खाता है कि रात में हम जग कर पढ़ाई करें।
ज्यादा खा लेंगे तो बैठ नहीं पाएंगे। पेट खराब हो जाएगा, बीमारी हो जाएगी तो थोड़ा सा कम खाना पड़ता है।
*गृह त्यागी:* अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विद्यार्थी को गृह त्यागी भी बनना पड़ता है।
*इसी प्रकार अपनी साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए साधकों को भी पूरे नियम-संयम का पालन करना पड़ता है।*
 |
Baba Umakant Ji Maharaj |
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev