*लड़कियों को पढ़ाओ-लिखाओ लेकिन रोटी बनाना तो जरूर सिखाओ।*

*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट/ दिनांक 10 अगस्त 2021*
दुःख निवारण काफिला पडाव, ग्वालियर, मप्र.

*पश्चिमी सभ्यता की अंधी नकल करने के बजाय भारतीय संस्कृति के अनुसार बच्चे-बच्चियों का पालन कर उन्हें अच्छे संस्कार दो।*

आध्यात्मिक शिक्षा देने के साथ-साथ पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव में आकर टूटते-बिखरते भारतीय परिवारों को बचाने और उन्हें जड़ से मजबूत कर देश को समृद्ध बनाने की शिक्षा देने वाले,
इस समय के महापुरुष उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 23 नवम्बर 2017 को अपने 4 प्रान्तों के 31 दिवसीय दुःख निवारण काफिले के समापन पड़ाव ग्वालियर, मप्र. में अपने सतसंग में बताया कि,
अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति के अनुसार अच्छे संस्कार दो ताकि उनका भविष्य उज्जवल बने और वो देश-समाज-परिवार की तरक्की के साथ-साथ अपना आत्म कल्याण भी कर सकें।

*नौकरी दिलाने में जितना पैसा खर्च करते हैं उतना पढ़ाई में खर्च करें तो बच्चा आगे निकल जाये।*

आप लोग नौकरी दिलाने के लिए जो पैसा देते हो, उतना पैसा बच्चों के पढ़ाई पर खर्च कर दो तो बच्चा आगे निकल जाए। ध्यान नहीं रखोगे, बच्चा खेलता रह गया, स्कूल में कुछ नहीं पढ़ेगा तो कितना पैसा देकर आप उसकी नौकरी लगवा पाओगे?
इसलिए बच्चे का ध्यान रखना चाहिए कि वो घर से निकलने के बाद कहां जा रहा है? क्या कर रहा है।

*लड़कियों को पढ़ाओ-लिखाओ लेकिन रोटी बनाना तो जरूर सिखाओ।*

बच्चियों को लोग पढ़ाते हैं। कहते हैं, बच्ची को हम टेबल पर ही चाय कॉफी नाश्ता रोटी पहुंचा देते हैं। अब जब शादी-ब्याह होता है, तब पता चलता है कि खिचड़ी तक बनाना नहीं जानती।
तब जैसे ही ससुराल में पहुंचती है, लड़ाई-झगड़ा शुरू हो जाता है। अरे! बुड्ढे मां-बाप भी बच्चे को यही आशा रख कर के पालते हैं, पढ़ाते लिखाते हैं कि पढ़-लिख कर आएगा, शादी ब्याह होगा, बहू आएगी, गरम-गरम कॉफी चाय रोटी बना कर देगी हमारे बुढ़ापे में।
उनको भी तो आशा रहती है। इसलिए लड़कियों को पढ़ाओ-लिखाओ लेकिन रोटी बनाना भी जरूर सिखाओ, पोंछा लगाना, बर्तन धोना जरूर सिखाओ।

*पैसा कमाना तो सीख गये लेकिन खाना-पहनना नहीं सीख पाये।*

आप देखो कि भारत धर्म परायण देश है। भारत की संस्कृति कभी नहीं खत्म हो सकती। यहां पश्चिम की संस्कृति अगर लाओगे तो तकलीफ होगी।
अगर पाश्चात्य संस्कृति आ जाए, एकदम लोग नंगे घूमने लग जाए तो? लेकिन उसको आने में तो बहुत समय लगेगा।
यह जो बीच की संस्कृति आ गई, कहते हैं एक लाख बहू और दो लाख बेटा महीने में कमा रहा। कमा तो रहा है, लेकिन उसने खाना-पहनना तो सीखा ही नहीं। खड़े-खड़े खाना, खड़े-खड़े टट्टी-पेशाब करते हैं।
कहां खाते हैं? वो नाली के किनारे जो ठेला लगे रहते हैं, वहां खाते हैं। चाइनीज और जो बाजार की मिलावटी चीजें, तेल की बनी हुई, उसको खाते हैं।

*भारतीय संस्कृति को तो मत खत्म करो। बच्चों को अंग ढांकना तो सिखा दो।*

जैसे-जैसे कमाई बढ़ती चली गई, शरीर नंगा होता चला गया। पहले लोगों के कपड़े फटे रहते थे तो कहते थे गरीब है, नहीं बनवा सकता।
अब जिसका पेंट जितना फटा होता है, उतना ही बड़ा आदमी कहलाता है। कम से कम अंग ढंकना तो सीख लो, अंग ढंकना तो बच्चों को सिखा दो। भारतीय संस्कृति को मत खत्म करो।
*जब सिखाओगे, बताओगे बच्चों को तो संस्कृति की जानकारी आएगी। अंग्रेजी पढ़ने से जानकारी तो होगी हर चीज की, लेकिन संस्कृति जो भारत की है वह नहीं आ पाएगी। इसलिए इन चीजों का ध्यान रखना जरूरी होता है।*

जयगुरुदेव

Parmarthi Sandesh


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