"आलसी बेटे और ठंडी रोटी" की प्रेरणादायी कहानी 30.

जयगुरुदेव 
प्रेस नोट/दिनांक 03 अगस्त 2021
आश्रम उज्जैन, मध्यप्रदेश
कहानी संख्या 30.
गुरु कृपा के साथ-साथ अपनी मेहनत से, भौतिक और आध्यात्मिक कमाई दोनों करो।

जीते जी मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने के लिए मानव मात्र का आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त करने वाले और साथ ही साथ समाज में रहने के तौर-तरीके सिखाने वाले,
समय के पूरे संत उज्जैन वाले पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 22 मई 2020 को अपने उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम (jaigurudevukm) पर प्रसारित सतसंग में,
प्रेमी भक्तों को आध्यात्मिक शिक्षा व सामाजिक शिक्षा दोनों एक कहानी के माध्यम से देते हुए समझाया कि,
आप ये सोचो की समरथ गुरु हमें मिल गए हैं, अब वो ही सब कुछ करेंगे तो आपको भी कुछ करना चाहिए।

कहानी संख्या ३०. 
*आलसी बेटे और ठंडी रोटी" की प्रेरणादायी कहानी*

एक आलसी बेटा माँ के समझाने पर भी कुछ कमाता नहीं था और बाप-दादा की संपत्ति पर रहता खाता था।
घर वालों ने सोचा की हम इसकी शादी कर दें, हमारा कर्त्तव्य पूरा कर दें। ऐसी भी परिस्थितियाँ आती हैं जब आदमी सोचता नहीं है कि वो दूसरे घर की कन्या को ला रहा है, खिला पायेगा? रख पायेगा या नहीं? कैसे क्या होगा? नहीं सोचते।

माता-पिता को यह सोचना चाहिए कि बच्चे जब कुछ कमाने लगे, घर में आमदनी होने लगे तब शादी करें।
शादी के दूसरे दिन से ही खर्चे शुरू हो जाते हैं। आज कल कई घरों में झगडा इसलिए रहता है कि लड़का कमाता नहीं है, खर्चा वो ही रहता है, दोनों ठाट से रहना चाहते हैं।
कभी ऐसी भावना भी आ जाती है कि जो करता है वो ही खिलाएगा। मां-बाप बहु को लाये हैं तो वो ही खिलाएंगे, करेंगे।

तो उस लड़के की शादी कर दी। फिर भी लड़का कुछ न करे। तब गर्म रोटी परोसते समय माँ बोले कि खा ले, ठंडी रोटी खा ले। लड़का समझ न पाए और खाना खा ले।
कुछ लोग सोचते हैं कि माँ-बाप तो कहते ही रहते हैं। कुछ की कहने की और कुछ की सुनने की आदत बन जाती है।

लड़का भी सोचता, माँ तो कहती रहती है, छोड़ो इस बात को। एक दिन माँ बाहर गयीं तो बहु को कह कर गयीं कि गर्म रोटी परोसते समय कहना, ठंडी रोटी खा लीजिये।
जब बहु ने ऐसा कहा तो लड़का बिगड़ा कि तुम मेरी माँ से भी बड़ी हो गयी? गर्म रोटी को ठंडी रोटी क्यूँ कह रही है? बहु बोली कि अपनी माँ से पूछो। मैं तो उनके कहे अनुसार कह रही हूँ।

लड़के ने रोटी नहीं खाई। माँ जब आयीं, पूरी बात जानीं, लड़के को बुलाया, पूछा तो लड़का बोला कि आप माँ हो तो कह सकती हो। लेकिन ये पत्नी है, ये कह नहीं सकती। फिर पूछा कि आप गर्म रोटी को ठंडी क्यों कहती हो?
माँ बोली कि ठंडी रोटी उसे कहते हैं जब सुबह या शाम की बनाई रोटी को शाम या सुबह को खाया जाये। अब बतला कि तेरे पिता का धन जो तू खा रहा है वो ताजा है या ठंडा ? लड़का बोला कि ठंडा।

तब माँ बोली कि तू अपने पिता की ठंडी रोटी ही तो खा रहा है। जब तू मेहनत करके, कमा कर के लायेगा तभी तो गर्म रोटी खायेगा। तब लड़के के समझ में आ गया ठंडी रोटी का मतलब।

खुद मेहनत करनी चाहिए।

ऐसे ही पिता की दौलत, पॉवर को समझो। गुरु को सब कुछ कहा गया है, माता-पिता कहा गया है, तो गुरु की कृपा, शक्ति से हम भौतिक रोटी खाएं या आध्यात्मिक धन प्राप्त करें तो वो ठंडी रोटी ही कहलाएगी।
इसलिए प्रेमियों! खुद मेहनत करनी चाहिए।

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