*जय गुरु देव*
*प्रेस नोट/ दिनांक 22 जुलाई 2021*
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम,
जयपुर, राजस्थान
*अन्य लोगों की देखा-देखी में आप भूल जाते हो की, आप कितने विशेष हो।*
जीवों को नर्क और चौरासी की आग से बचने का सीधा और सरल रास्ता बताने वाले वर्तमान के पूरे सन्त सतगुरु *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने अपने जयपुर, राजस्थान स्थित आश्रम से 18 जुलाई 2021 को यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(Jaigurudevukm)* पर प्रसारित सायंकालीन सतसंग में बताया कि,
इस समय तो बिना देखे, बिना पात्रता की जांच किये नाम लुटाया जा रहा है। पहले तो कठोर परीक्षाएं लेते थे, संकल्प बनवाते थे, पात्र बनाते थे और फिर नाम दान देते थे।
जब गुरु महाराज ने नाम दान देना शुरू किया तो रोज 3 घंटे का समय भजन में देने का इकरारनामा भरवाते थे। बाद में लुटाने लग गए। जरुरत भी थी।
जैसे दफ्तर में चपरासी चपरास लटकाता है तो उसे आने-जाने में रोक-टोक नहीं होती। कहीं हाथ पर मोहर लगाते हैं। इसी तरह इस काल के देश में नामदान लेने से काल के प्रकोप से बचत तो हो जाती है लेकिन ....
जब आप समाज में गैर नामदानियों के बीच में रहते हो तो उनको देख के ये मन तरह-तरह की इच्छाएं बना लेता है और आप उनके अनुसार काम करने लग जाते हो।
तब आप अपने को भूल जाते हो कि हम नामदानी है, सतसंगी है, हमारा दर्जा अलग है, हमें अन्य लोगों से हट करके अपना खान-पान, चाल-चलन बनाना चाहिए। तो आप कुछ लोग तो बिलकुल समझ ही नहीं पाते हो की मनुष्य शरीर की कीमत क्या है?
जैसे और लोग खाने-पीने और मस्ती में लगे हैं, ऐसे ही आप नामदानी लोग भी लग जा रहे हो। यही काम तो पशु-पक्षी भी करते हैं- खाना-पीना, बच्चे पैदा करना और दुनिया से चला जाना। यही काम आप भी करते रहे तो उनमें और आप में अंतर क्या रह जायेगा?
देव दुर्लभ शरीर, जिसके लिए देवता 24 घंटे प्रार्थना करते रहते हैं की थोड़े समय के लिए हमको मिल जाता तो हम अपना काम बना लेते। जैसे सब लोग दुनिया से चले जा रहे ऐसे ही आप भी साँसों की पूंजी खत्म होते ही चले जाओगे।
इसलिए प्रेमियों! समझो, चार खान अंडज, पिंडज, युष्मज, स्थावर और 84 लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ ये आपका मनुष्य शरीर है। शरीर में 72 हजार नसें हैं जिनमें मुख्य इंगला, पिंगला, शुष्मना नसों के द्वारा जीवात्मा की पॉवर नीचे गुदा चक्र तक आती है।
*गर्भवती बच्चियों, ऑपरेशन से बचो, मन को ज्यादा लालची मत बनाओ।*
जो गर्भवती बच्चियां तकलीफ से बचने के लिए ऑपरेशन करना चाहती है। ऑपरेशन से नसें कट जाती है। एक बार ऑपरेशन होने पर फिर ऑपरेशन से ही बच्चा पैदा होता है। समझो एक बार-दो-चार बार ऑपरेशन हो गया तो शरीर की शक्ति क्षीण हो जाती है।
संयम-नियम का पालन करोगी, शरीर हरकत में रहेगा तो ऑपरेशन की जरुरत नहीं पड़ेगी, शरीर स्वस्थ रहेगा। पहले की माताओं को जानकारी रहती थी। चक्की चलाते-चलाते पेट में दर्द हुआ और बच्चा पैदा हो गया।
साधना इसी शरीर से ही तो करनी है। इसलिए मन को ज्यादा लालची मत बनाओ।
*जो मन कहे करो मत कोई, जो गुरु कहे, करो तू सोई।*
मन के कहने से यदि खान-पान, चाल-चलन बिगड़ा तो भजन नहीं बन सकता है। इसलिए इन चीजों का विशेष रूप से ध्यान रखो।
*आपका एक-एक मिनट कीमती है*
एक-एक मिनट का समय आपका कीमती है। देखो कल, सवेरा किसी ने नहीं देखा। रात को सोते हैं की सुबह उठेंगे, दैनिक क्रिया में लगेंगे लेकिन रात में ही समय पूरा हो गया, चले गए।
तो इस वक़्त पर कलयुग में कोई निकले तो कोई गारंटी नहीं है की 2 घंटे के बाद ठीक-ठाक घर वापस आ जायेगा। इसलिए आप सब यहीं के लिए मत करो, कुछ वहां के लिए भी करो जहां आपको शरीर छोड़ के जाना है।
*शरीर से की गयी परमार्थी सेवा से केवल शारीरिक लाभ ही मिलेंगे।*
देखो! अब अगर आप चूक गए तो मुहर तो लग गयी है, अब नरक में तो बहुत भारी पाप करने पर ही जाना होगा। लेकिन जन्मने और मरने की पीड़ा आपको बर्दाश्त करनी पड़ेगी।
आप बहुत अच्छा काम करते रहो, रोटी खिलाना, पानी पिलाना, किसी की निंदा-बुराई न करो, सबको जानो, समझो, सबके साथ समान व्यवहार-भाव रखो, तो ये जो धर्म का काम है, ये आप करते रहो लेकिन आत्मा का उद्धार कल्याण इससे नहीं हो सकता है।
शरीर से जो भी आप सत कर्म करोगे, पुण्य जिसको कहते हो, करोगे तो उसका लाभ शरीर तक ही रह जायेगा। शारीरिक लाभ मिलेगा।
धन को अच्छी जगह लगाओ तो लक्ष्मी बढ़ जाएगी। लक्ष्मी बराबर घर में बनी रहेंगी, लेकिन अगर आपके मन के अनुसार कहीं खर्च हो गयी तो चली जाएगी। वो भी दुःख आपको झेलना पड़ेगा।
धन से सेवा करोगे तो धन बढेगा, शरीर से सेवा करोगे तो रोग कटेंगे लेकिन आत्मा का कल्याण नहीं होगा। ये सब तो एक प्लेटफार्म संतों ने बनाया, सेवा का विधान बनाया, तैयार किया। जैसे पहले आप चूल्हा-चक्की, अनाज इकठ्ठा करते हो फिर भोजन बनाते हो।
ऐसे ही संतों ने ये सब माहौल, वातावरण बनाने के लिए, लोगों का मन स्थिर करने के लिए, दुनिया की तरफ से हटाने के लिए बनाया लेकिन काम सब लोगों से भजन का ही करवाया। तो बराबर आप लोग भजन में लगो।
*हमें सब पता है की आप कितना भजन करते हो।*
हमें मालूम है की कितने लोग आप भजन पर नहीं बैठते हो और सामूहिक ध्यान-भजन में भी नहीं आते हो। लेकिन ये भी एक दया है आपके ऊपर, संस्कार आपके हैं कि आप ये सतसंग सुनने के लिए आये हो, सतसंग सुन रहे हो।
बहुतों को तो फुर्सत ही नहीं है। कुछ तो ऐसे हैं जो अपनी मौत को ही भूल चुके हैं। तो आप उनकी नक़ल मत करो, उनकी सोच में मत जाओ। आपकी परमार्थी सोच, अपने आत्म कल्याण का होना चाहिए।
*आत्मा का उद्धार करना परमार्थी काम है, असला काम यही है।*
आप कहते हो की हम परमार्थी काम करते हैं, रोटी खिलाते हैं, पानी पिलाते हैं, सेवा करते हैं तो भाई ये सब अपने शरीर के लिए है लेकिन आप आपकी आत्मा के लिए क्या करते हो?
आत्मा का उद्धार करना, परमात्मा के पास पहुंचाना ये परमार्थी काम है, असला काम यही है। भजन-ध्यान करते रहो।
*जिनको नामदान अभी तक नहीं मिला है, वो मालिक के जीते जागते नाम जयगुरुदेव को बोलते रहो, जपते रहो, नाम ध्वनि बोलते रहो। समय आएगा, गुरु महाराज की दया होगी तो नामदान भी आपको मिल जायेगा।*
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