आजकल ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्यता बहुत बढ़ रही है, यह समाज के लिए दु:ख दाई चीज़ है।

जयगुरुदेव
प्रेस नोट/दिनांक 28 जुलाई 2021
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम,
देराठू, अजमेर, राजस्थान

आजकल ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्यता बहुत बढ़ रही है, यह समाज के लिए दु:ख दाई चीज़ है।

मनुष्य कौन है? कहां से आया? क्यों आया? और मरने के बाद कहां जाएगा? - इन सबका ज्ञान-भान कराने वाले वर्तमान के पूरे सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 23 जुलाई 2021 को गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर देराठू, अजमेर आश्रम से भक्तों को संदेश देते हुए बताया कि,
बुराई करके एक दूसरे के कर्मों को तो लोग लाद ही रहे हैं तो बुराई करके आप दूसरे के कर्मों को क्यों लादो? इसलिए आप एक आध्यात्मिक मंच बनाओ आध्यात्मिक प्लेटफार्म बनाओ।

किसी भी जाति धर्म मजहब की निंदा बुराई मत करो।

किसी की निंदा-बुराई मत करो। किसी भी धर्म, जाति, मजहब, मजहबी किताब, धार्मिक ग्रंथ या कोई भी ग्रंथ, किताब, राजनीतिक पार्टी या नेता आप लोग किसी की निंदा मत करो।

ऐसा कोई काम न करो कि संतमत बदनाम हो और आपका मिशन कमजोर पड़ जाये और आगे न बढ़ पाये।

सन्तों ने संतमत का जो बीज डाला है, गुरु महाराज ने पौधा लगाया, वह पौधा जो बढ़ रहा है, इस पौधे को आप बढ़ाओ। जिससे फल लोगों को खाने को मिलने लग जाए।
ऐसा कोई काम न करो कि आपकी वजह से पौधा ही सूख जाए। आपकी वजह से सन्त मत बदनाम हो जाए, संत मत आगे न बढ़ पाए और आपका मिशन कमजोर पड़ जाए। ऐसा कोई काम मत करो।

विचार-भावना, खान-पान और चाल-चलन सही रखो।

नभ्या और जिभ्या पर कंट्रोल रखो। देखो प्रेमियों! माहौल बहुत खराब होता जा रहा है। लोगों का खान-पान, चाल-चलन, आचार-विचार खराब हो रहा है। लोभ-लालच, ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्यता बहुत बढ़ रही है। यह लोगों के लिए, समाज के लिए बडी ही दुखदाई चीज है।

यदि आप भी ऐसे माहौल में ढल जाओगे तो आपकी और आपके गुरु के मिशन की क्या कीमत रह जाएगी?

गुरु महाराज आपके लिए ये मिशन छोड़ कर गए हैं। यदि ऐसे माहौल में आप भी ढल जाओगे तो फिर आपकी, आपके और गुरु महाराज के मिशन की क्या कीमत रह जाएगी?
आपके भरोसे जो बहुत कुछ छोड़कर के गए, देखो यह हमारी लगाई हुई बगिया की सिंचाई-गुड़ाई करेंगे, इसमें फल आने लगेगा, लोग खाकर के खुश हो जाएंगे, नहीं तो आप यह समझो मिशन खत्म हो जाएगा, बगिया सूख जाएगी। तो ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिए।

प्रेमियों! अपने को निहारते रहो कि हम संत मत के हिसाब से चल रहे हैं या नहीं?

अपने को ही निहारते रहो, अपने को ही देखते रहो कि हम सन्त मत से अलग कहां जा रहे हैं? किधर जा रहे हैं? हमारे बच्चे, परिवार वाले किधर जा रहे हैं?
दुनियादारी की तरफ जा रहे हैं या सन्तमत के हिसाब से चल रहे हैं? बोली-बानी बोल रहे हैं, नाम की कमाई कर रहे हैं, ध्यान भजन सत्संग कर रहे हैं।
इसकी निगरानी रखो, ध्यान रखो।

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