जयगुरुदेव स्वामी जी ने कहा -

जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश  

सन्त बोध 

*1. मेरा काम*

मैं इस दुनिया को नहीं तो बनाने आया हूं और नहीं तो इसे मिटाने आया हूं।
मैं केवल अपना काम करने के लिए आया हूं, और मेरा केवल यहां एक ही काम है–
तुम्हारी जीवात्मा को उसके निज धाम में वापस पहुंचाना।
हम आए वही देश से जहां तुम्हारो धाम।
तुमको घर पहुंचावना एक हमारा काम।।



*2. मिलौनी का देश*

यह दुनिया बनने और बिगड़ने का देश है। यहां बनेगा फिर बिगड़ेगा।
यहां एक रूप, एक रस कुछ भी रहने वाला नहीं है।
यह मिलौनी का देश है, सत्य और असत्य दोनों हमेशा मिले जुले रहते हैं।
कभी सत्य अधिक हो जाता है कभी असत्य अधिक हो जाता है, परन्तु सदा दोनों का मिलौनी रहता है, और जो वास्तव में सत्त है वो इस दुनिया के सत्य और असत्य से अलग है और उसका देश सतलोक है जो इस लोक से परे और बहुत ही दूर है।


*3. नामदान*

मैंने अपना काम पूरा कर लिया। गुरु महाराज के चरणों में बैठ कर के मेहनत किया और उनकी कृपा हुई तो मेरा काम पूरा हो गया।
मैं तो चाहता था कि मैं अपने में ही जब तक यह शरीर है पड़ा रहूं किंतु गुरु महाराज का हुक्म हो गया कि उनके इस अमोलक धन को बांटो तो इसलिए उनके नामधन को बांट रहा हूं। वैसे यहां ये काम बहुत खराब है, इस काम को करना। मैं नहीं चाहता था कि इस काम को करूं लेकिन गुरु महाराज का हुक्म है, करता हूं उनका नाम धन बांट रहा हूं।
आप इसे ले लोगे तो आपका काम बन जायेगा। मेरा भी बना तो आपका जरूर बन जायेगा।



*4. जयगुरुदेव नाम* 

यह जयगुरुदेव नाम मेरा नहीं है। यह परमात्मा का नाम है, प्रभु का नाम है। यह जाग्रत नाम है, इस वक्त का । यह जीवों को उद्वार करने वाला नाम है। यह गुरु महाराज का प्रकट नाम है । गुरु ही परमात्मा है। गुरु के पहले जय और गुरु के बाद देव, इस तरह जयगुरुदेव , उस प्रभु का नाम है।

 जयगुरुदेव नाम की जहाज इस वक्त इस भवसागर के तट पर लगा हुआ है । इस मे बैठ जाओगे तो पार हो जाओगे । इस जयगुरुदेव नाम मे शंका मत करो । हरि के हजार नाम कहते हैं तो यह जयगुरुदेव नाम भी प्रभु का नाम है मैं इस नाम का प्रचार करता हूं। 

मेरा नाम इस साढे़ तीन हाथ के शरीर का नाम जो माता पिता ने रखा वह नाम है तुलसीदास। माता पिता ने यह नाम क्यों रखा यह तो वह ही जाने मतलब की मेरा नाम यह, प्रभु का नाम जयगुरुदेव इस बात को अच्छी तरह समझ लो।


*5. महात्मा नहीं*
  
मैं महात्मा नही हूं । नहीं तो कभी महात्मा कहता हूं। और नही तो मैं कोई गुरु हूं। आप चाहे जो कह लो वह आपकी मर्जी। 
मैं तो एक सीधा..सादा आदमी हूं बस आपकी तरह । 
अन्तर इतना है केवल कि मैं अपने घर पहुंचने का सच्चा रास्ता जानता हूं और आप नही जानते। मैं चाहता हूं कि आप भी सच्चा रास्ता को जान लो। उस पर चल पड़ोे और इसी शरीर मे जीते जी अपने घर पहुंच जाओ। एक बार पहुंच गये तो हमेशा के लिये आना जाना खत्म।

-- परम पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज 

Baba  jaigurudev ji maharaj


sant bodh
Sant umakanji ji maharaj


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ