जयगुरुदेव
परम सन्त पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ने लोगों को संदेश देते हुए कहा है कि इस समय देश और दुनिया पर संकट का समय है। ये प्राकृतिक आपदाएँ जो आ रही हैं, भूकम्प आ रहे हैं, कोरोना रोग प्रचण्ड रूप ले रहा है, बहुत लोगों की जानें जा रही हैं, बहुत लोगों को इससे परेशानी हो रही है, बहुत से लोग अस्पताल में भर्ती हैं, बहुत से लोग तड़प रहे हैं, बहुत से लोग मरे पड़े हैं, उनका अन्तिम संस्कार तक नहीं हो पा रहा है, बहुत से लोग घरों में क़ैद हैं, कोई भूखा है, कोई प्यासा है, तो बहुत परेशानी का समय है। ऐसा कहा गया है कि-
धीरज,धर्म, मित्र और नारी।
आपतकाल परखिये चारी।।
इस समय सरकार और प्रशासन ने जो नियम बनाया है, उस का उल्लंघन नहीं करना है, उसको तोड़ना नहीं है। नियम के अन्तर्गत रहते हुए ही लोगों को बताने-समझाने की ज़रूरत है कि उस मालिक को याद करो।
जब आदमी हर तरफ़ से निराश हो जाता है तो उस मालिक को याद करता है। जब मालिक को याद करोगे, दीनता से पुकारोगे तो उसके तो मदद करने के बहुत बड़े हाथ हैं, बहुत तरीके हैं। जैसे काल के सज़ा देने के बहुत से हथियार हैं, वैसे ही मालिक के बचाने के भी हैं।
आप सब लोग "जयगुरुदेव" नाम का जाप करें, सुमिरन, ध्यान, भजन करें जो गुरु ने बताया है। लोगों को धीरज रखने की प्रेरणा दें, उतावलेपन में ऐसा कोई काम न करें जिससे उनकी और दूसरों की जान को ख़तरा हो जाए।
धर्म किसे कहते हैं ? "परहित सरिस धर्म नहिं भाई" यानी
परोपकार। भूखे को रोटी खिला देना, दुःखी बीमार को दवा दिला देना, कोई अभाव में है तो उसकी मदद कर देना। ये है परोपकार।
सबसे बड़ी चीज़ है जीवात्मा को बचाया जाए, इनकी अकाल मृत्यु न होने पावे, ये प्रेतयोनि में न जाने पावें, इनके कर्म ऐसे ख़राब न बनने पावें जिसकी वजह से इनको नरक जाना पड़े, तो इस समय इनको बचाने की ज़रूरत है। हिंसा, हत्या, तोड़फोड़, आन्दोलन न करने लग जायें, लोगों में उन्माद पैदा न होने पावे, ये समझाने की ज़रूरत है क्योंकि जब आपातकाल होता है या परेशानियांँ आती हैं तो लोगों के अन्दर उन्माद पैदा हो जाता है। किसी बात के लिए उन्माद से लोगों को बचाना ये इस वक़्त का बड़ा धर्म है।
धीरज, धर्म के बाद मित्र की व्याख्या करते हुए महाराज जी ने कहा कि मित्र किसको कहते हैं? जो हमेशा मददगार हो, तो बताया गया है “तुम्हीं मेरे मित्र, तुम्हीं मेरे सखा, मेरे मार्ग दर्शक हो” तो वो कौन होता जो पावरफुल होता है, तो पावर किसके अन्दर होता है। मनुष्य शरीर मे इस धरती पर सन्त, महात्मा, गुरु रहते हैं, वो पावरफुल होते हैं, वो मालिक ईश्वर पावरफुल है, देवी-देवता पावरफुल हैं। उनको अपना बनाओ कहने का मतलब है कि उनको बराबर याद करते रहो।
महाराज जी ने समझाया कि नारी मतलब इन्द्रियाँ हैं तो अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखो, अन्यथा ये कभी भी धोखा दे देंगी। इन पर ख़ुद भी कंट्रोल रखो और लोगों को भी बताओ ।
देश-दुनिया की मौजूदा हालात में कोरोना जैसी लाइलाज महामारी से राहत पाने के लिए दुखहर्ता परम सन्त बाबा उमाकांत जी महाराज जी ने सभी राजनेताओं से जीवहत्या, स्लाटर हाउस तथा माँस-शराब की दुकानें बन्द करने की अपील की है।
जीवहत्या सबसे बड़ा पाप कर्म है। धार्मिक पुस्तकें बताती हैं कि पाप कर्मों की बहुत कड़ी सज़ा मिलती है। अगर आपने यह ऐलान कर दिया कि देशहित में शराब और जीवहत्या की दुकानें बन्द की जाती हैं तो सारी दुनिया में आपका यश फैल जाएगा और सारा विश्व भी इसे अपना लेगा।
पूज्य महाराज जी ने कहा है कि इस समय पर जो हमारे स्वास्थ्य रक्षक डाक्टर-नर्स हैं और सुरक्षा में तैनात पुलिस व सफ़ाई कर्मी हैं, उनका सहयोग व आदर-सम्मान करना हम सबका नैतिक दायित्व है।
इस समय महामारी के बीच उठ रही अफ़वाहों से लोगों को सावधान रहने की ज़रूरत है। जो जहाँ हैं, थोड़ा सा सब्र और करके अभी वहीं रुके रहें, ख़तरों से ख़ुद भी बचें और दूसरों को भी बचायें। सभी लोग अपने आस-पास में ध्यान रखें कि कोई जीव भूखा न रहे, अपने हिस्से में से थोड़ा उसको भी दे दीजिए।
पूज्य महाराज जी ने आगाह किया है कि चण्डी एक देवी है जो विश्व भ्रमण पर निकल चुकी है जिससे भविष्य में पूरे विश्व में धन और अन्न की बहुत कमी होने से जन-धन की बड़ी हानि होगी। क़ुदरती करिश्मे को कैसे रोक सकेंगे? तब लोगों को तथा देश के कर्णधारों को महापुरुषों की बातें याद आयें लेकिन तब बहुत देर हो चुकी होगी।
सन्त-फ़क़ीर तो समय-समय पर लोगों को विनाश से बचाने के लिए आगाह करते रहे हैं, लेकिन " विनाश काले विपरीत बुद्धि " के नाते लोग उनकी सलाह पर ध्यान ही नहीं देते हैं। आज भी पूज्य सन्त बाबा उमाकांत जी महाराज इस कोरोना महामारी का मूल कारण माँसाहार और शराब को बता रहे हैं लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। पूज्य महाराज जी गऊ माता की जान बचाने के लिए कई दशकों से बराबर प्रार्थना सरकार से करते आ रहे हैं। आगे गाय की बड़ी आवश्यकता होगी, गाय का दूध- मूत्र- गोबर सब हितकारी होगा।
महाराज जी ने यह भी कहा है कि माँस व शराब के पैसे से कभी भी देश तरक्की नहीं करेगा और वो पैसा जिस जगह पर भी लगेगा, वहाँ सत्यानाश ही करेगा। शाकाहारी और नशामुक्त हुए बिना चाहे कितनी बढ़िया दवा बना लें, यह महामारी ख़त्म नहीं होने वाली है। एक वायरस ख़त्म होगा, फिर दूसरा-तीसरा वायरस नया नाम और नया रूप लेकर आ जाएगा। इसलिए देश के जिम्मेदार लोग जनहित में माँस-शराब की दुकानें बन्द करवा दें।
साधु अवग्या का फल ऐसा।
जरहि नगर अनाथ का जैसा।।
साध्वी कर्माबाई की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। बहुत से साधु उनसे मिलने के लिए आते थे। ऐसे ही एक रोज़ एक महापुरुष आकर कहने लगे," कर्माबाई ! हर रोज़ भगवान् आपके घर भोजन करने के लिए आते हैं। आप भगवान् के लिए कैसे भोजन तैयार करती हो?"
कर्माबाई ने अपने सीधे स्वभाव के अनुसार कहा," मैं प्रभु का स्मरण करते-करते ही भोजन ( खिचड़ी ) बनाती हूँ। जिस समय भोजन तैयार हो जाता है, परोसकर रख देती हूँ। भगवान् आकर भोजन कर जाते हैं।"
महापुरुष कहने लगे," आपको भोजन बनाने से पहले स्नान करना चाहिए, चौके में लिपाई करनी चाहिए। जिन लकड़ियों पर भोजन बनाती हो, उनको धोकर और सुखा कर ही जलाना चाहिए।"
यह बात सुनकर कर्माबाई चिंतित हो गई कि मैंने तो कभी ऐसा सोचा ही नहीं।
दूसरे दिन कर्माबाई ने लकड़ियों को धोकर सूखने के लिए रख दिया, चौके में लेपन किया और स्नान करके भोजन बनाने लगी। भगवान् हर रोज़ की तरह नियत समय पर ही आए और देखा कि कर्माबाई का भोजन अभी तैयार नहीं है, इसलिए वे वापस चले गए।
कुछ देर बाद कर्माबाई ने भोजन तैयार कर परोस दिया। भगवान् आए और भोजन करने लगे। उनके हाथ और मुँह पर खिचड़ी लगी हुई थी कि उसी समय स्वामी रामानन्द जी के दरबार में भी भोग लगाने हेतु भोजन रख दिया गया।
अक्सर भोजन की थाली को कपड़े से ढक कर भगवान का आह्वान किया जाता था। भगवान आए तो रामानन्द ने देखा कि भगवान के हाथ और मुँह पर खिचड़ी लगी हुई है। रामानन्द ने पूछा," प्रभु ! आप यह खिचड़ी कहाँ से खाकर आए हैं और आज आप इस रूप में कैसे आ गए?"
भगवान ने कहा," मैं रोज़ कर्माबाई के यहाँ खिचड़ी खाने जाता हूँ। आज किसी ने उसे बहका दिया जिस कारण उसे खिचड़ी बनाने में देरी हो गई। उसने अभी हाथ धुलाए भी नहीं थे कि आपने याद कर लिया। मुझे उसी तरह उठकर आना पड़ा, हाथ-मुँह धोने का समय नहीं मिला।"
यह सुनकर स्वामी रामानन्द दंग रह गए कि कर्माबाई के घर हर रोज़ भगवान खिचड़ी खाने जाते हैं। स्वामी रामानन्द कर्माबाई के घर गए और कहा," तुम हर रोज़ भगवान के लिए खिचड़ी बनाती हो और भगवान हर रोज़ खिचड़ी खाने तुम्हारे घर आते हैं। तुमने ऐसी कौन सी साधना कर रखी है, जिसके कारण भगवान तुम पर इतने दयालु हैं?"
कर्माबाई ने कहा," मैंने तो ऐसी कोई साधना नहीं की है, मैं सन्त रविदास की बताई हुई मर्यादा के अनुसार भगवान का स्मरण करते हुए भोजन तैयार करती हूँ।"
यानी सन्तों का रास्ता बाहरी आडम्बर के बजाय भीतरी कमाई करने का है जिससे अपनी मंज़िल आसानी से मिल जाती है।
मक्का की बात है। एक नाई एक व्यक्ति के बाल बना रहा था। उसी समय फ़क़ीर जुन्नैद वहाँ आ पहुँचे और कहा, "ख़ुदा की ख़ातिर मेरी भी हज़ामत बना दो।"
ख़ुदा का नाम सुनते ही नाई ने अपने ग्राहक से माफ़ी माँगते हुए कहा," दोस्त ! अब मैं आपकी हज़ामत थोड़ी देर नहीं बना सकूँगा। ख़ुदा की ख़ातिर उस फ़क़ीर की ख़िदमत मुझे पहले करनी होगी क्योंकि ख़ुदा का काम सबसे पहले होना चाहिए।"
इसके बाद उसने फ़क़ीर जुन्नैद की हज़ामत बड़े प्रेम और श्रद्धा- भक्ति से बनाने के बाद नमस्कार करके उन्हें विदा कर दिया।
कुछ दिन बीत गये। एक रोज़ जुन्नैद को किसी ने कुछ पैसे भेंट किये तो वह उन्हें नाई को देने आये। पर नाई ने
पैसे लेने से इन्कार करते हुए कहा, "आपको शर्म नहीं आती ? आपने तो ख़ुदा की ख़ातिर हज़ामत बनाने को कहा था, पैसों की ख़ातिर नहीं।"
फिर तो जीवन-भर फ़क़ीर जुन्नैद को वह बात याद रही और वह अपनी मण्डली में अक्सर कहा करते थे," मैंने निष्काम ईश्वर-भक्ति एक हज्जाम से सीखी है।"
तात्पर्य यह है कि छोटे से छोटे व्यक्ति में या छोटी से छोटी बात में भी बड़े से बड़े संदेश छिपे होते हैं, जो उन्हें खोज सकता है, वही सच्चा ज्ञान प्राप्त कर पाता है। जीवन में सजग होकर चलने से प्रत्येक अनुभव प्रज्ञा बन जाती है। जो अनमने से बने रहते हैं, वे दरवाजे पर आये आलोक को भी लौटा देते हैं।
पूज्य उमाकांत जी महाराज ने देश की जनता को कोरोना वायरस जैसी तमाम भयंकर बीमारियों और मुसीबतों से बचने के लिए "जयगुरुदेव" नाम की एक संजीवनी बूटी दी है।
पूज्य महाराज जी ने कहा कि इस "नाम" को हमारे गुरु महाराज निजधाम वासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सन्1960 में जगाया और सिद्ध किया था, जो प्रभु, ख़ुदा, गाड का ही नाम है और अभी भी पूर्ण पावरफुल है।
शाकाहारी व नशामुक्त रह कर "जयगुरुदेव" की नामध्वनि करने से सभी तरह की मुसीबत-तक़लीफ़ में सुकून-राहत मिलेगी। नामध्वनि ऐसे करनी है-
"जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव"
"नामध्वनि" बोले बिना बचत की कोई आशा मत रखना।
सभी सत्संगी भाई-बहन आलस्य त्याग कर सुबह-शाम नियमित रूप से सुमिरन, ध्यान, भजन और नामध्वनि ज़रूर करें। इस समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग करें।
जयगुरुदेव, जयगुरुदेव, जयगुरुदेव, जय जयगुरुदेव
विशेष--साधना टीवी चैनल पर गुरुवार को सुबह 9.00 से 9.40 तक शेष दिनों में सुबह 8.40 से 9.20 तक पूज्य संत बाबा उमाकांत जी महाराज का सत्संग प्रसारित होता है।
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