महात्मा बुद्ध की शिक्षा
आध्यात्मिक सन्देश
महात्मा बुद्ध के समय की बात है।
एक युवक ने अनेक देशों में जाकर विभिन्न कलाएं सीखीं यथा धनुर्विद्या, जहाज बनाना, गृह निर्माण आदि।
वह इन कलाओं में पारंगत था। अपने घर वापस लौटने पर वह अहंकारवश लोगों से कहता था- "संपूर्ण जगत में मुझ जैसा बुद्धिमान व गुणी व्यक्ति कोई नही है ?"
धीरे धीरे यह बात महात्मा बुद्ध तक पहुंची। भगवान बुद्ध उस युवक को जानते थे व उसकी प्रतिभा से परिचित थे।
वह इस बात से चिंतित हो गए कि कहीं उसका अभिमान उसका नाश न कर दे।
एक दिन महात्मा बुद्ध एक भिखारी का रूप धारण कर हाथ में भिक्षापात्र लेकर उसके पास गये।
युवक ने बड़े अभिमानपूर्वक पूछा- "कौन हो तुम ?"
बुद्ध बोले- "मैं आत्मविजय का पथिक हूं।"
युवक ने उनके शब्दों का अर्थ जानना चाहा तो महात्मा इस प्रकार बोले-
एक शस्त्र निर्माता भी बाण बना लेता है, एक नाविक जहाज पर नियंत्रण रख लेता है, गृह निर्माता सुन्दर भवन का निर्माण कर सकता है।
"केवल ज्ञान से मनुष्य महान नहीं होता है, वास्तविक उपलब्धि है मन की निर्मलता।
यदि मन निर्मल नहीं हुआ तो बड़ा ज्ञान भी व्यर्थ है। अहंकारमुक्त व्यक्ति ही ईष्वर को पा सकता है।"
यह सुनकर युवक को अपने भ्रम का अहसास हो गया।
वह बुद्ध के तात्पर्य को समझ गया कि अहंकार बुद्धि को नष्ट कर देता है इसलिए मनुष्य को अहंकार रहित ही रहना चाहिए।
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Teachings of Mahatma buddha |
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Jaigurudev