संगत की प्रार्थनायें (post no.14)
प्रार्थना रोज होनी चाहिए एवं २-३ प्रार्थना -
सभी प्रेमियो को याद होनी चाहिए।
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*Darshan do mere nath ...*
दर्शन दो मेरे नाथ मेरी अखियां हैं प्यासी।
सुध लो मेरी है नाथ मेरी अखियां हैं प्यासी।।
दर्शन दो है नाथ मेरी अँखियाँ हैं प्यासी। ... 1
हे करुणा सागर हे कृपालू आर्त भाव से तुम्हें पुकारुं।
हे सुख रंजन हे दुख भंजन अब तो तेरी ओर निहारुं।
अब सुनलो मेरी पुकार व्याकुल अँखियाँ हैं प्यासी।
दर्शन दो है नाथ मेरी अँखियाँ हैं प्यासी। ...2
भोर भये जीवन के लेकिन मन को प्रकाशित कर न सके।
जीवन का दिन ढल गया पर तुमको मैं ना देख सकी।
अब साझ हुई हे नाथ व्याकुल अखियां हैं प्यासी।
दर्शन दो है नाथ मेरी अँखियाँ हैं प्यासी। ...3
भटक रही मैं निर्जन वन में राह न मुझको सूझ रही ।
काम क्रोध और लोभ मोह के बन्धन में मैं उलझ रही।
ये कैसा माया जाल प्रभु जी व्याकुल है दासी।
दर्शन दो है नाथ मेरी अँखियाँ हैं प्यासी। ...4
वर्षा की बूंदे ये मुझको और व्यथित कर जाती हैं।
तुम बिन सुंदरता इस जग की और ना मुझको भांति है।
अब मूक निहारूं बाट व्याकुल अखियां हैं प्यासी।
दर्शन दो है नाथ मेरी अँखियाँ हैं प्यासी। ...5
प्रार्थना ८३ .
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नैया लगा दो भव पार पार मेरे सतगुरु...२
तुम बिन मेरा और न कोई देखा है नजर पसार,
पसार मेरे सतगुरु।।२।।
भव सागर मे डूब रहा हूँ तुम ही हो मेरे पतवार,
पतवार मेरे सतगुरु।।३।।
संग के साथी पार उतर गये मै ही पड़ा हूं मझधार,
मझधार मेरे सतगुर।।४।।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कमल बलिहार,
बलिहार मेरे सतगुर।५
नैया लगा दो भव पार, पार मेरे सतगुरु ।।
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जयगुरुदेव प्रार्थना ८४ .
*Naiya ke khivaiya gurudev...*
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नैया के खिवैया गुरुदेव प्रभु आओ।
नैनो में समाओ मेरे मन में रम जाओ।।
मन के समुन्दर में तूफान उठा भारी।
दिशा का न बोध मुझे झुकी अंधियारी।
आशा के आलोक, त्रिलोकी जी बचाओ।
नैनो में समाओ मेरे मन में रम जाओ।।
तुझसे अलग हुआ गुण तेरे गाने को,
माया ने निवास किया तुझको रिझाने को।
खुद को ही भूल गया, आन को जगाओ।
नैनो में समाओ मेरे मन में रम जाओ।।
मैने सुना है तेरी शान निराली है,
नहीं है निराश तेरे दर का जो सवाली है।
भक्ति की ज्योति मन मन्दिर में जगाओ।।
नैनो में समाओ मेरे मन में रम जाओ।।
जगत के पाप सन्ताप से बचाओ,
अनन्त आनन्द निज रूप में समाओ।
शरण पड़ा हूँ दीनानाथ अपनाओ।।
नैनो में समाओ.....मेरे मन में रम जाओ।।
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प्रार्थना ८५ .
*Naam to bada pyara hai...*
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नाम तो बड़ा प्यारा है, जयगुरुदेव।
भक्तों का भी सहारा है, जयगुरुदेव।।
गुरूजी मेरी आँखों मे आके बस जाना।,
ज्योति बड़ी प्यारी है, जयगुरुदेव।।
नाम तो बड़ा प्यारा है, जयगुरुदेव....
गुरूजी मेरी जिव्या में आके बस जाना,
सुमिरन तो बड़ा प्यारा है, जयगुरुदेव।।
नाम तो बड़ा प्यारा है, जयगुरुदेव....
गुरूजी मेरे हाथों मे आके बस जाना,
सेवा तो बड़ी प्यारी है, जयगुरुदेव।।
नाम तो बड़ा प्यारा है, जयगुरुदेव....
गुरूजी अपने सत्संग मे मुझको बुलाना,
ध्यान तो बड़ा प्यारा है, जयगुरुदेव।।
नाम तो बड़ा प्यारा है, जयगुरुदेव....
गुरूजी अपने चरणों मे मुझको बिठा लो,
चरण तो बड़े प्यारे हैं, जयगुरुदेव।।
नाम तो बड़ा प्यारा है, जयगुरुदेव....
भक्तों का भी सहारा है, जयगुरुदेव....
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जयगुरुदेव प्रार्थना ८६ .
Nar tan me satguru se...*
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नर तन मे सतगुरु से सुर्त अर्ज कर रही है,
अब तो बचालो स्वामी दासी यह बह रही है।।१।।
शौभाग्य से यह नर तन इसे कभी मिला था,
पर गुरु नही मिले तो अब,तक भरम रही है।।२।।
नर्को मे दुख उठाये यम जूतियाँ भी खाई,
चौरासी योनियों मे जी-जी कर मर रही है।।३।।
शौभाग्य से इसेे यह नर तन मिला है अबकी,
कहीं व्यर्थ खो न जाये इससे सहम रही है।।४।।
हे दीन बंधु सतगुरु दाता दयालु स्वामी,
सुर्त बून्द यह तुम्हारी चरणों पर रोरही है।।५।।
अपना बना के स्वामी अब राख लो शरण में,
जाकर कहाँ छिपूं मे दावाग्नि दह रही है।।६।।
वह मार्ग चाहती है जो शान्ति सर्वदा दे,
यमकाल फिर न पकड़े विनती सुना रही है।।७।।
सुनते हैं भूलकर भी दुनिया जो तुम पर आये,
उस पर कृपा तुम्हारी बरसात कर रही है।।८।।
विश्वास इससे मन मे दृण बार- बार करके,
पल्ला तुम्हारा पकड़े छोड़ कर न जा रही है।।९।।
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जयगुरुदेव प्रार्थना ८७ .
*Nij charno ka darash...*****
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निज चरणों का दरश करा दो गुरु,
मुझे प्रेम दीवानी बना दो गुरु ।।१।।
जगत जाल से दूर हटाकर,
मुझे शीशे मे रूप दिखा दो गुरु।।२।।
कुल कुटुम्ब से दूर हटाकर,
मुझे सहस कंवल दिखला दो गुरु।।३।।
घण्टा, शंख सुनाकर मुझको,
त्रिकुटी धाम बता दो गुरु ।।४।।
गगन शिखर का दरश कराकर,
मुझे दशवाँ द्वार लखा दो गुरु ।।५।।
मान सरोवर कर्म धुला कर,
मुझे हँस स्वरूप बना दो गुरु।।६।।
महा सुन्न होय भँवर गुफा मे,
मेरे काल के जाल तुड़ा दो गुरु।।७।।
सत्पुरुष, सतलोक दिखाकर,
मुझे वीन की तान सुना दो गुरु।।८।।
अलख अगम का भेद बताकर,
मुझे जयगुरुदेव गोद बिठा दो गुरु।।९ ।।
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प्रार्थना ८८ .
*Oh ho ji mere pyare guru ne...*
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हुयी मगन जब चढ़ी गगन में, सुरति अधिक लजायी।
सौ सौ योजन चढ़ गयी ऊपर कुछ न दिया दिखायी।
पहली सीढ़ी चढ़ी गुरु जी सहस कँवल दिखलाई ।
दूजी सीढ़ी चढ़ी गुरु जी, त्रिकुटी द्वार जब आयी।
चौथी सीढ़ी चढ़ी गुरु जी भंवर गुफा मैं आयी।।
पांचवी सीढ़ी चढ़ी गुरु जी सतलोक पहुंचायी।
ओ हो जी मेरे प्यारे गुरु ने, धुर धुर बीन बजायी।।
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Jai Guru Dev Naam Prabhu Ka
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शेष क्रमशः पोस्ट न. 15 में पढ़ें 👇🏽
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