【 गुरु की दया, प्रेमियों के अनुभव 】 (post 8)
*महात्मा प्रारब्ध बदल देते हैं* - आर के पाण्डे*
सम्भवतः सन 72 की बात है ।
स्कूल में कार्यक्रम कराने की बात जब उन्होंने कही तो प्रिंसिपल ने बुरा भला कहते हुए इन्कार कर दिया।
मैं कुछ लोगों को लेकर अपनी मोटर साइकिल से बदरावां होते हुए शिवगढ़ गया और प्रिन्सिपल से मिला।
मेड़ का रास्ता था। स्वामी जी कार से उतरकर मेरी जावा मोटर साइकिल पर पीछे बैठ गये और कहा कि उसके पीछे चलो।
स्वामी जी ने उस खेत के चारों तरफ पैदल टहलते हुए एक चक्कर लगाया। हम सब खड़े खड़े यह दृश्य देखते रहे।
स्वामी जी लौटकर जब आये तो उन्होंने रामकुमार से कहा कि बच्चू! *आज से तुम्हें दोनें टाइम भोजन मिलेगा।*
बरामदे में पड़ी चारपाई पर स्वामी जी आसन लगाकर बैठ गये। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई राजा महाराजा बैठा हो।
डलवे में पूड़ी और बर्तन में आलू की सब्जी ढककर रक्खी थी।
स्वामी जी ने डलवा बाहर निकलवाया। कपड़ा उठाया तो देखा बड़ी - बड़ी पूड़ियां थां। सबको बिठाया गया। आंगन भर गया तो कुछ लोग बाहर बैठ गये। पूड़ी सब्जी सबको परोसी गयी। सबने खाया किन्तु एक सत्संगी ने नही खाया।
स्वामी जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा कि तुम्हें याद तो रहता नही है जाकर देखो कहीं लौटै औटे मे रखा होगा।
वह बेचारा सोचते हुए गया तो, मगर डर रहा था कि अब क्या करुं। लुटिया पर जब उसकी निगाह गयी तो देखा कि वह दूध से भरी हुयी थी और गरम थी, मानो अभी उसमे गरम दूध डाला गया है। उसने लाकर उसे पीने के लिए दे दिया।
लगभग सात महीने बाद रामकुमार मेरे दफ्तर में आया। बढ़िया धोती, कुर्ता, टोपी सदरी की पोशाक में और बोला कि बढ़िया एक घड़ी ले दीजिए।
मैंने उससे पूछा कि ये सब क्या है ?
मैंने कहा कि कुछ बताओ तो सही।
फिर कहने लगा कि बाबा का एक और चमत्कार सुनो।
एक ठाकुर साहब की भैंस दूध नही देती थी और सबको मारती अलग थी। ठाकुर साहब बहुत परेशान
मैं उनके पास गया और उन्होंने मुझे भैंस दे दी।
पैसे के लए पूछा तो डांटने लगे कि *`तुम मुझे पैसा दोगे ?` ले जाओ।*
*मैंने हिम्मत की और भैंस के पेट पर, पीठ पर `जयगुरुदेव` लिख दिया।*
सत्संग में स्वामी जी ने बताया कि ऐसा करने से जानवर भी ठीक हो जाता है। मैंने वही किया।
भैंस पांच लीटर दूध देती है दोनों टाइम। आधा बेच देते हैं और आधा बच्चे पीते हैं। तनख्वाह पूरी बच जाती है।
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......रामकुमार की कहानी सुनकर मैंने कहा कि *जैसे तुम्हारे दिन बहुरे है वैसे सबके दिन बहुरें।*
मैंने उसे एक अच्छी विदेशी घड़ी 85 रुपये में दिलवा दी जिसकी कीमत बाजार में 125 रुपये थी। कस्टम वालों को कुछ छूट मिल जाती है।
मैं सोचने लगा कि स्वामी जी ने उससे कहा था कि *`आज से तुम्हें दोनों टाइम भोजन मिलेगा`* सो बात सच साबित हुयी और उसका प्रारब्ध बदल गया।
जयगुरुदेव
_- शाकाहारी पत्रिका से साभार_
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1 टिप्पणियाँ
संतो की महिमा अनन्त, अनन्त किया उपकार।।
जवाब देंहटाएंJaigurudev