【 *स्वामी जी से प्रेमियों के सवाल जवाब* 】
*प्रश्न ९४. स्वामी जी! अगर कोई अपनाया जीव अकाल मृत्यु चोला छोड़ देवे तो उसके बाकि के प्राण कहाँ भुगताये जाते हैं ?*
उत्तर- अगर कोई अपनाया हुआ जीव कर्मो के चक्कर की वजह से अकाल मृत्यु चोला छोड़ दे तो उसकी सुरत को स्वेत सुन्न मे ठहराकर बाकि के प्राण वहां भुगताकर जहां उसकी डोर बांध रखी है खींच लेंगे । अगर उसकी भक्ति पूरी है तो एक दम ऊपर कि सुन्न में पहुँचा देंगे।
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*प्रश्न ९५. स्वामी जी! सन्त सब मुल्कों में प्रगट होते हैं या नहीं ?*
उत्तर- नौखण्ड प्रथ्वी में से सन्त ज्यादातर भारतखण्ड में जीवों को चिताते हैं और इसी मुल्क में ज्यादातर जन्म उसी दरजे के जीवों को दे दिया जाता है, जो परमार्थी घाट पर आने वाले हैं या संस्कारी हैं।
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*प्रश्न ९६. स्वामी जी! जीव गर्भ में कब आता है और क्या खाता है और क्या देखता है, क्या सुनता है और क्या कहता है। और जब जन्म लेता है तो बच्चा क्यों रोता है ?*
उत्तर- जब बच्चा पांच महिने दस दिन तक माता के समान चेतना से परवरिस पा चुकता है तब विषेश चेतना उसमें आती है और बच्चा हरकत करने लगता है। उस वक्त उसको कई जन्मों की याद रहती है और वह प्रार्थना करता है कि मालिक मुझे इस काल कोठरी से निकालो, मैं तुम्हारा भजन खूब करूंगा, और अन्तर का नूर देखता है और धुन को सुनता है और अमी रस पीता है।
मगर जिस वक्त जनम होता है उसकी सुरत की तवज्जह ऊपर से नीचे पिंड और इन्द्रियों की तरफ उतारी जाती है। और एक परदा भूल का माया डाल देती है जिससे जीव पिछले जनम का हाल सब भूल जाता है और नूर देखना और धुन सुनना सब बन्द हो जाता है।
इसलिए उसी वक्त बच्चा रोता है।
अगर थाली बजाई जावे या घंटा बगैरा बजाया जावे तो फौरन उसकी तवज्जह उधर लग जाती है और उसको कुछ तसल्ली हो जाती है और रोशनी सामने देखने से भी खुश हो जाता है।
इससे भी साबित होता है कि गर्भ में बच्चा अन्तर के नूर और प्रकाश को देखता है और धुन को सुनता है मगर जिस बच्चे के प्राण बहुत ही थोड़े हैं और कुछ जिन्दगी लेकर नहीं आया वह नहीं रोता।
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*प्रश्न ९७. स्वामी जी! क्या कोई जीव एक ही जन्म में पार हो सकते हैं ?*
उत्तर- जो सतगुरु के सच्चे प्रेमी हैं उनको वह चारों जन्म एक जन्म में भुगता देते हैं, जो मध्यम हैं उनको दो जन्म में, बाकि सत्संगियों को उनके संस्कार के मुआफिक चार तक।
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*प्रश्न ९७. स्वामी जी! काल जीव को बहका देता है या नहीं ?*
उत्तर- जो परमार्थी जीव दुनियादारों के बहकावे में नहीं आते हैं और सतगुरु व सत्संग की दृढ़ता नहीं छोड़ते, वह अन्तर में काल के बहकावे में भी नहीं आते हैं।
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*प्रश्न ९८. स्वामी जी! तीरथ जाने का क्या फायदा या नुकसान होता है ?*
उत्तर- आजकल को जो तीरथ को जाते हैं उन पर मैल चढ़ता है, उनसे वह जीव बेहतर हैं जो घर में रहते हैं और मालिक का नाम नहीं लेते।
कर्मों का मेल अन्तःकरन पर होता है। कड़ी नानक साहब-
*कोट तीरथ मंजन स्नाना, इस काल में मैल भरीजै।*
*साध संग जो हरिगुन गावे, सो निर्मल कर लीजै।।*
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*प्रश्न ९९. स्वामी जी! पाप का फल सबको एकसा मिलता है या कम ज्यादा ?*
उत्तर- एक शख्स ने पाप किया और उसकी याद करके खुश होता है, दूसरे शख्स ने पाप किया मगर उसको याद नहीं करता बल्कि उसकी खबर भी नहीं रखता। तीसरे शख्स ने पाप किया मगर बाद में पछताया और अफसोस किया। इनमें सबसे बड़ा पापी और गुनहगार पहिला है, उससे कम दूसरा और सबसे कम तीसरा।
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*प्रश्न १००. स्वामी जी! बीमारी का सबब क्या है और क्यों बीमारी दवा से जाती है कोई नहीं जाती ?*
उत्तर- बीमारी तीन किस्म की होती है- एक तो समय और तत्वों की तब्दीली से, दूसरे बदपरहेजी से, तीसरे प्रारब्ध कर्म अनुसार।
यह तीसरी दवाईयों से नहीं जाती करम भुगत जाने पर जाती रहती है।
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*प्रश्न १०१. स्वामी जी! बच्चों को क्रियामान कर्म लगते हैं या नहीं ?*
उत्तर- सात बरस तक लड़की और पांच बरस की उमर तक लड़के को क्रियामान कर्म नहीं लगते हैं। घोर कलियुग से पहिले यह कायदा था कि पांच बरस तक लड़की को और सात बरस तक लड़के को नहीं लगते थे। कुछ बन भी गये तो कुछ माफ हो जाते हैं, कुछ उनके मां बाप को लग जाते हैं।
जयगुरुदेव ●
शेष क्रमशः पोस्ट न. 18 में पढ़ें 👇🏽
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परम पुरुष पूरण धनी जयगुरुदेव अनाम |
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