JaiGuruDev Question Answer [18]
उत्तर- सतगुरु का अपनाया जीव चौरासी नहीं जाता है, अगर भारी करम करेगा तो धर्मराय से उसको सजा दिलवाकर दोबारा नीच घर में जन्म दिलवाकर सेवा और भक्ति लेकर पार करते हैं।
---------------------------
*प्रश्न- 103 स्वामीजी! परमार्थी को कुकर्म का दोष ज्यादा लगता है या गैर परमार्थी को ?*
उत्तर- अगर दो परमार्थी जीव आपस में कुकर्म करें तो दोनों को दोष ज्यादा लगेगा। अगर एक परमार्थी और दूसरा गैर परमार्थी है तो परमार्थी को ज्यादा लगेगा, गैर परमार्थी को कम।
-------------------------
*प्रश्न-104 स्वामीजी! सत्संगियों के प्रारब्ध करम में कुछ सहायता होती है या नहीं ?*
उत्तर- जो सतगुरु के प्यारे और आज्ञाकारी हैं उनको प्रारब्ध और क्रियामान कर्म सहायता के साथ भुगताये जाते हैं। जो नाम के घाट पर चलते हैं, उनको कर्मो का दंड ज्यादा भुगतना पड़ता है।
-----------------------
*प्रश्न-105 स्वामीजी! भजन सुमिरन के वक्त किस तरफ मुंह करके बैठना चाहिए ?*
उत्तर- जब तक सुरत अन्तर में पहले मुकाम तक न पहुंच जावे भजन पूरब की तरफ मुंह करके बैठ के करना चाहिए। अगर ऐसा न हो सके तो उत्तर या पश्चिम की तरफ मुंह करके बैठें, दक्षिण की तरफ मुंह करके न बैठें।
----------------------
*प्रश्न- 106 स्वामीजी! क्या पहिले युगों में स्त्रियों के पति ही उनके गुरु थे ?*
उत्तर- पहिले तीन युगों में स्त्रियों के जो पति थे, वह आप मालिक से मिलने की उपासना में उमर का एक हिस्सा खर्च करते थे इसलिए महात्मा वक्त ने मसलिहत समझकर यह कहा कि नारी को गुरु की जरूरत नहीं, उनके पति ही उनके गुरु हैं, उनकी सेवा करें।
---------------------
*प्रश्न-107 स्वामीजी! परमार्थी को किस प्रकार का भोजन खाना चाहिए और किस भोजन से बचाव रखना चाहिए ?*
उत्तर- साधू व सच्चे परमार्थी को इन बातों का ख्याल रखना चाहिए-
1 मालिक के नाम पर पवित्र भोजन जो मिले वह खावें।
2 मरते वक्त का पुण्य किया हुआ अन्न या मनसा हुआ भोजन या देवी भैरों वगैरा की पूजा का नहीं खाना चाहिए। अगर ऐसा भोजन या अन्न वगैरा कहीं से आ जाये तो गरीबों या मुंहताजो को या कोढी कंगलों को देना चाहिए या सतगुरु जिसको मुनासिब समझें अपनी दया से दे दें।
-----------------------
*प्रश्न- 108 स्वामीजी! साधू को भिक्षा मांगना चाहिये या एक जगह आशा लगा कर बैठे रहने चाहिये ?*
उत्तर- एक जगह यह आशा लगाकर बैठे रहने से कि कोई प्रसाद लावे तो हम खायें, यह बेहतर है कि अपने इष्ट का नाम लेकर भीख ले आवें।
थोड़ी हो तो थोड़ी बांट खावें, ज्यादा हो तो ज्यादा बांट खावें।
------------------------
*प्रश्न- 109 स्वामीजी! प्रहलाद भक्त को मालिक ने खम्भ में से प्रगट होकर दर्शन क्यों दिये ?*
उत्तर- प्रहलाद भक्त को सच्चा विश्वास था कि मालिक समरथ है और सब जगह मौजूद है, इसलिये उसके विश्वास के अनुसार प्रगट होकर नरसिंह रूप से दर्शन दिया।
----------------------
*प्रश्न- 110 स्वामीजी! सुमिरन के साथ ध्यान करना जरूरी है या नहीं ?*
उत्तर- जिस नाम का सुमिरन किया जावे अन्तर में उसके स्वरूप का ध्यान भी जरूर करना चाहिये, वरना वह सुमिरन पूरा फायदा न देगा।
-----------------------
*प्रश्न- 111 स्वामीजी! राम से महात्माओं की क्या मुराद है ?*
उत्तर- पहिले महात्माओं ने भी जो राम कहा है इससे उनकी मुराद अन्तर के भेद से थी।
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में लेटा।
एक राम का सकल पसारा, एक राम इन सब से न्यारा।।
इसमें पहले राम से मुराद रामचन्द्र जी हैं, दूसरे से मुराद मन है जो रम रहा है, तीसरे राम से मुराद ब्रह्म से है जिसका सकल पसारा इस देश में है और चौथे राम से मुराद पार ब्रह्म है जो इन सबसे न्यारा है।
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev