Spiritual collections | अध्यात्म सार संग्रह

.                    जय गुरु देव 
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★ मनुष्य शरीर ऐसा द्वार है, जो प्रभु ने इस जड़ संसार के विशाल जेलखाने से निकालने के लिये बनाया है। 
इसे व्यर्थ में न जाने दें, और प्रत्येक क्षण भक्ति कमाकर जीवन को सफल बनायें।

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★ सन्त-मत, धर्म-जाति, देश और मानव द्वारा निर्मित समस्त सीमाओं से परे, आवागमन के चक्र से सन्त सतगुरु की भक्ति द्वारा जीते जी परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग है।

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★ सन्त मत आध्यात्मिक उन्नति का व्यवहारिक मार्ग है। इस मार्ग पर निर्मल रहनी, सात्विक आहार, ईमानदारी की कमाई, ऊंचे पवित्र विचार होना परमावश्यक है। सदाचार, नैतिकता की नींव पर ही परमार्थी विकास की उन्नति निर्भर है।

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★ गुरु के बिना ईश्वर का बोध नहीं हो सकता, इसलिए व्यवहारिक दृष्टि से सतगुरु के रूप में प्रकट हुआ साकार परमेश्वर, निराकार परमेश्वर से अधिक महत्वपूर्ण है।

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★ सच्चा सतगुरु मिलने पर वह जीव को प्रभु से मिला देता है, और साधक को भक्ति और मुक्ति का खजाना मिल जाता है।

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★ परमार्थ के खोजी जीव को जब तक वक्त का गुरु नहीं मिलेगा, उसका आत्मकल्याण असंभव है। ऐसे गुरु की सेवा और भक्ति से जीव चौरासी के चक्कर से छूटकर मालिक को प्राप्त करके जीवन मुक्त हो जाता है।

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★ परमात्मा के नाम का अमोलक हीरा, प्रत्येक मनुष्य के अन्दर छिपा हुआ है। जो जीव युक्ति पूर्वक अन्तर में इसकी खोज करता है वह इस नाम धन को पाकर निहाल हो जाता है। 

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★ मन को निश्छल करने एवं आत्मा को निर्मल बनाने के लिए परमात्मा से मिलने की युक्ति ही नामयोग या सुरत शब्द योग है।

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★  किसी भी देश, काल, जाति के महात्माओं ने मालिक से मिलने का एक ही रास्ता बताया है और सभी महात्माओं के अनुभव भी एक से ही हैं। 

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★ सतगुरु का सत्संग जीवों के अन्तर में प्रभु के प्रति प्रेम जगाता और विश्वास बढ़ाता है। जिससे जीव आत्मिक लाभ को प्राप्त कर निहाल हो जाता है।

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★ सच्चा सेवक सतगुरु के दरबार में मान-बढ़ाई, पद का लालच छोड़कर, दीन बनकर, दासों का दास बनकर, संगत की सेवा मे तल्लीन रहता है। और अत्यंत दीनता-निरीहयता के साथ सतगुरु की दया मैहर की याचना करता रहता है।

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प्रणाम,
जयगुरुदेव ●


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