*कल्याण की राह* *ब्रह्माजी व उनके मानस पुत्र लोमस ऋषि में मुक्ति हेतु संवाद व विभिन्न पूजा पाठ से लाभ-हानि।*
सतयुग- 17 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेता- 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर- 8 लाख 64 हजार वर्ष, और कलियुग- 4 लाख 32 हजार वर्ष।
चारों युगों को मिला कर एक चौकड़ी कहते हैं, 72 चौकड़ी को एक मन्वन्तर और 14 मन्वन्तर को मिला कर एक कल्प होता है। इस तरह 4 अरब 35 करोड़ 45 लाख 60 हजार वर्ष की अवधि को एक कल्प कहा जाता है।
भाखा उन सब बिधि बिधि कहिया।।
पितु से पूछी मुक्ति की बाता।
गंगा का फल कहौ विधाता।।
जे जे तीरथ सबै नहाये।
जल जिव जोनि माहिं भरमाये।।
सेवा ठाकुर कीजै जाई।।
लोमस-
दूजा जाना और न भेवा।।
सेवा सिव कीन्ही बिधि भाँता।
फूल पत्र जल अच्छत साथा।।
येहि बिधि पूजा करी बनाई।
अन्त जोनि पाहन की पाई।।
पीपर में जल नाओ जाई।।
ऐसी भक्ति करै मन लाई।
सहजै में मुक्ती होइ जाई।।
एक दिया तुलसी पै लावै।
तो सौ कोटि जग्य फल पावै।।
लोमस-
वृक्ष जोनि पाई येहि बूझा।।
ता की बिधि भाखौं निरबारा।।
कानखजूरा देंही पाई।
बार बार भौ में भरमाई।।
ता से मुक्ति सहज में पाई।।
लोमस-
अन्त जनम माखी कौ लीन्हा।।
ऐसे बर्त कीन्ह बहुतेरा।
ता का सुनु बरतंत निबेरा।।
पिरथम ऐतवार को कीन्हा।
ता से जनम चील्ह कौ लीन्हा।।
मंगल बहु बिधि बरत रहाई।
ता से जनम सूअर कौ पाई।।
अरु पुनि बरत तीज कौ कीन्हा।
कूकुर जनम ताहि से लीन्हा।।
अरु अनन्त चौदस पुनि कीन्हा।
ता से जनम ऊँट कौ लीन्हा।।
और चतुरथी बरत बखाना।
ता से जनम भैंस कौ जाना।।
या से मुक्ती होइ विचारी।।
लोमस-
जनम मिला जो बकरी केरा।।
जो तुम कही सभी हम कीन्हा।
मुक्ति न पाई रह्यो अधीना।।
ऐसी कहाँ कहाँ की गाऊँ।
जेहि पूजौं तेहि माहिं समाऊँ।।
नहिं होइहैं या से निरबारा।।
लोमस ऋषि मैं कहौं बिचारा।
संत सरनि से होइ उबारा।।
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1 टिप्पणियाँ
Jai guru dev
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