*प्रश्न ६०. स्वामी जी ! भूमि का क्या असर होता है ?*
उत्तर - महात्माओं ने कहा है कि भूमि का भारी असर होता है | जिस भूमि पर ऋषि-मुनियों महात्माओं ने तप किया, साधना की, भजन किया वह भूमी पवित्र मानी जाती है | ऐसी भूमि पर निवास करने से शांति मिलती है | मन की चंचलता दूर होती है बुद्धि में विवेक आ जाता है | इसीलिए लोग तीर्थों में जाते हैं | ऐसी भूमि पर भजन बनता है |
जिस भूमि पर कत्ल होता है हत्याएं होती हैं वह भूमि अच्छी नहीं | वहां प्रेत आत्माएं निवास करती हैं और जो वहां जाता है उन्हें परेशान करती हैं | भूमि का ही असर था कि त्रेता में श्रवण कुमार जैसे आज्ञाकारी पुत्र का दिल्ली की भूमि पर कदम रखते ही उसके विचार बदल गये| सेवा-भाव जो माता पिता के प्रति था सब समाप्त हो गया |
यह दिल्ली की भूमि का ही असर है कि विलासिता हेतु वहां 80 फ़ीसदी से ऊपर स्त्रियां शराब पीने लगी | शराब का यह गुण है कि शराब मांस मांगता है | शराब और मांस का सेवन करने पर मनुष्य विषय चाहता है | आज विषय विकार का असर सारे देश में व्याप्त हो गया है | और बढ़ता ही जा रहा है |
दिल्ली की भूमि से हटकर जब तक राजधानी नहीं बदलेगी तब तक सुख और शांति की बात करना कोरी कल्पना है | पवित्र भूमि पर बैठकर जब तक देश का शासन नहीं किया जाएगा जनता खुशहाल नहीं हो सकती|
>>>>>>>>
*६१. स्वामी जी! मौत के वक्त क्या होता है?*
उत्तर- जब जीवात्मा यानि रूह शरीर में सिमटती है, तो रूह के साथ प्राण भी सिमटते हैं। रूह का भास सिमटकर आकाश में जाता है, प्राण उसके साथ जाते हैं। उस समय कुछ भी याद नहीं रहता। जब आत्मा शरीर से निकलकर आकाश में जाती है तो काल उस रूह की सारी जिन्दगी के कर्मों के मुताबिक उस पर बुद्धि छोड़ देता है और बुद्धि में सारी उम्र के कर्मों के मुताबिक इच्छा पैदा होती है। बच्चों में, स्त्री में, जानवरों में, धन में, जहां कहीं भी इच्छा जायेगी उसी के मुताबिक संसार में वापस जाने का ख्याल आयेगा। मगर रास्ता नहीं मालूम।
उस वक्त यमदूत आवाज देते हैं कि इधर आ जा। रास्ता इधर है। यमदूतों की आवाज किसी जाने पहचाने की सी प्रतीत होती है जो कि म्रत्यु की ओर खींचती है। आवाज होती है कि मेरी ओर आओ। मैं वहीं हूं जिसकी तुम्हें तलाश है। जब वह उस आवाज के पीछे जाता है तो काल उधर अपना मुंह खोले बैठा होता है। रूह उसके मुंह में जाकर चबाई जाती है। उस समय आखों से पानी निकलता है या डर के मारे टट्टी हो जाती है। इसके बाद फरिश्ते इंसाफ के लिए पेश करते हैं और यमराज कर्मो के अनुसार सजा देते हैं, नर्कों चौरासी में डाल देते हैं
>>>>>>>>
*प्रश्न ६२. स्वामी जी ! भजन में तरक्की नहीं होती क्या करें ?*
उत्तर - तरक्की नहीं होती तो इसमें तुम्हारे मन का कसूर है। सत्संग बार बार मिलना चाहिए और मन की भागदौड़ कम होनी चाहिए। सांसारिक वस्तुओं के लिए अनावश्यक तृष्णा होगी और भजन को गैर जरूरी समझोगे तो मन नहीं लगेगा। भजन ध्यान सुमिरन को बेकार समझकर करते हो। इससे भजन कभी भी नहीं बनेगा।
एकाग्रता का होना जरूरी है। एकाग्रता आने पर आत्मा शरीर को छोड़ना शुरु कर देती है और शरीर सुन्न होने लगता है। फिर शब्द सुनाई जब देगा तो मन उसकी ओर आकर्षित होगा, क्योंकि शब्द में से अमृत चूता रहता है। मन जब उसको पियेगा फिर चुप हो जायेगा और जीवात्मा का साथ देने लगेगा। इसके बाद जीवात्मा शरीर के नौ द्वारों को छोड़कर ऊपर चली जाती है।
शरीर से निकलने के बाद मन और आत्मा का पहला कदम स्वर्ग में पड़ता है जहाँ कोई कष्ट नहीं होता है आनन्द ही आनन्द होता है। एक बार जब साधना चल पड़ती है तो गुरु साधक को अन्तर में मार्ग दर्शाते हुए ईश्वर, ब्रहम, पारब्रहम, सबका दर्शन कराते हुए सत्तलोक पहुंचा देते हैं, जो सारी जीवात्माओं का अपना असली घर है। सत्तलोक से ही उतरकर सारी जीवात्मायें नीचे उतर कर आयीं थीं।
>>>>>>>>
*प्रश्न ६३- स्वामी जी! सत्संगी के मन से प्रेम और भक्ति उड़ जाये तो उसका क्या होगा ?*
उत्तर - सत्संगी के मन से प्रेम और भक्ति उड़ गई ईर्ष्या विरोध आ गया तो समझ लेना चाहिए कि माया ने अपना जाल बिछा दिया है, मन मलिन हो गया है और पाप कर्म बनते जा रहे हैं। यह काल का दांव है जो सत्संग में बैठकर वो कर रहा है।
यदि सत्संगी कोई खोटा कर्म करता है तो सतगुरु उसे बुराई करने से रोकते हैं। सत्संग मे सब बातें कहीं जाती हैं जिससे सत्संगी अपने आप को सुधार ले और माफी मांग ले कि आइन्दा ऐसी गल्ती नहीं करेगा। यदि बार बार समझाने पर भी वो नहीं चेतता है तो ऐसा जीव काल के हवाले हो जाता है।
>>>>>>>>
*प्रश्न- ६४. स्वामीजी! सत्संग के वचन सुनते हैं मगर यकीन नहीं आता क्या करें ?*
उत्तर- अगर समझ आ जाये तो एक वाक्य ही काफी है। सत्संग में बार बार समझाया जाता है कि अगर तुम्हें गुरु का दर्शन करना है तो वह तुम्हारे अन्दर ही बैठा है। दोनों आखों के ऊपर तीसरा तिल है। रास्ता अन्दर ही गया है। आत्मा दोनों आंखों के बीच में बैठी है और अपने प्रकाश को नीचे तक उसने फैलाया है जिसके कारण शरीर हरकत करता है, हिलता डुलता है।
ध्यान के वक्त प्रकाश को समेटकर आंखों तक लाना है। फिर उसके बाद अन्तर जगत का रास्ता प्रारम्भ होता है। पहले तारा मण्डल दिखाई देगा फिर सूर्य मण्डल और उसके बाद चन्द्र मण्डल को जब जीवात्मा पार करती है तो आगे सतगुरु खड़े हैं। वहां उनका नूरानी स्वरूप है और लिंग शरीर में विद्यमान हैं। गुरु के चरण कमल यहीं मिलते हैं, जिनकी वन्दना की जाती है। चरण कमल बहुत ही प्रकाशवान हैं। जीवात्मा जब यहां पहुंचती है तो घण्टे की आवाज सुनाई पड़ती है। इसी आवाज को शब्द कहते हैं, नाम कहते हैं।
पहले थोड़ा विश्वास करना ही होगा फिर अन्तर में जब परिचय मिलने लगेगा, आत्मा सूक्ष्म मण्डलों स्वर्ग बैकुण्ठ आदि की सफर करने लगेगी, तब धोखा किसी बात का नहीं रहेगा।
जयगुरुदेव ★
शेष क्रमशः पोस्ट न. 12 में पढ़ें 👇🏽
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev