【 *मेरा अनुभव* 】
तीन वर्ष से पेट की बीमारी से परेशान था। 25 जून 2001 को परिवार सहित आश्रम पंहुचा। मन में लग रहा था कि बचूंगा नहीं अतः जो भी पैसा पास में था संस्था कार्यालय में जमा कर दिया। उसके बाद महेश जी रांची वाले के डेरा में ठहर गया। रात्रि में भोजन भण्डारे में किया। मन में सोच रहा था कि मालिक का दर्शन और सत्संग आज नहीं मिला। ढाई बजे रात्रि में मैं सोकर उठा फिर पानी पिया। थोड़ी देर बाद दो-तीन दस्त हुए, उसके बाद कईं होने लगे।
तीन चार बार वोमेटिंग हुई। गर्दन और कलेजे में इतना तेज दर्द था लगता था कि प्राण निकल जाएंगे। बर्दाश्त के बाहर जब दर्द होता था तो इच्छा होती थी कि अभी प्राण निकल जायं। किसी तरह डेरा पर गया तो पत्नि से कहा गाय का घी और विक्स मल दो। गाय का घी तो नहीं था अतः विक्स मलने के बाद थोड़ा आराम मिला। मन में आत्म ग्लानि हो रहीं थी कि हम तो दुनिया से जा रहे हैं। मुझे स्वामी जी महाराज का दर्शन भी नहीं हुआ, न कोई सेवा किया और न ही सत्संग मिला। हम तो कहीं के नहीं रहे।
3 बजे परमार्थी सेवा की घण्टी लगी मन में हुआ कि चलो श्रमदान में । मिट्टी की सेवा चल रही थी। दो डलिया मिट्टी ढोने के बाद काफी दर्द शुरु हो गया और दस्त भी मालूम होने लगे। ऐसा लगा कि मेरे शरीर में जान ही नहीं है। मैं महोली आश्रम के नजदीक चला गया। एक आदमी सोया हुआ था और मैं भी लेट गया। मेरा शरीर छूट गया।
अब मैं ऊपर के दृष्य को देखने लगा। काल भगवान को स्वामी जी महाराज के रूप में देख रहा था। आंख बड़ी थी और लाल लाल थी। अनेक दृश्य देखता हुआ चला जा रहा था। मैंने अपने पूर्वजों को देखा, पिताजी को खोजा लेकिन पता नहींं चला। मैंने मखमल का सेज देखा। अरबों खरबों सूरज और चन्द्रमा देखा और स्वामी जी के शरीर में रोम रोम में चांद सितारे देखे। बहुत खुश हुआ। फिर ऐसा लगा कि मेरा शरीर अलग पड़ा है।
मन में एकाएक बच्ची का ख्याल आया, पत्नि का भी ख्याल आया फिर शरीर में आ गया। थोड़ी थोड़ी पीड़ा महसूस हुई किन्तु ताकत भी महसूस हुई।
चार बजे स्वामी जी की गाड़ी आई। पीछे पीछे कई मोटर साइकिलें थीं। इसके बाद में डेरा की तरफ गया और रुकते रुकते वहां पहुंचा। फिर पानी पीकर सो गया। उठने पर लोग मुझे अस्पताल ले गए। डॉ. सैनी ने कहा कि शरीर में खून बिल्कुल नहीं है। सुई लगी और मुझे दवा दी गई। बुखार तेज था।
डाक्टर ने कहा कि स्वामी जी की दया से जिन्दा हो। भण्डारे से भोजन आता, दस दिन तक तबीयत खराब रही फिर ठीक हो गया अब खाना भी पचता है। स्वामी जी महाराज ने जो जो अनुभव मुझे दिए उन्हें मैं चमत्कार ही समझता हूं।
- राजकुमार, गुप्ता वैषाली
(साभार, शाकाहारी सदाचारी साप्ताहिक पत्रिका)
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जयगुरुदेव ★
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