17. Yamdut bhag gaye
★ यमदूत भाग गए ★
बचपन की अवस्था थी । खेत पर काम कर रहा था अचानक मुझे सुस्ती महसूस हुई फिर वहीं लेट गया। साथ के लोगों ने कहा कि तबीयत ठीक नहीं है तो घर चले जाओ। मैं आया और बालकराम चाचा के दरवाजे पर लेट गया। मलेरिया के डाक्टर निकले तो चाची ने उनसे कह कर दवा दिला दिया । फिर साहस करके अपने घर आ गया और दरवाजे पर चारपाई पड़ी थी उसी पर लेट गया ।
शाम का समय था अचानक मेरी चारपाई हिलने लगी और ऊपर से आवाजें आने लगीं- खट खट की। चारपाई हिलने लगी तेजी के साथ और आवाजें भी तेज हो गईं। चारपाई ऊपर नीचे होने लगी।
मैने नीचे झांक कर देखा कि कोई हिला तो नहीं रहा है किन्तु वहां कोई नहीं था। घबड़ाकर चारपाई से उतरना चाहा और जमीन पर खड़ा हुआ तो जमीन हिलने लगी जैसे पानी में नांव हिलती हो। अब मैने समझ लिया कि मेरा अन्त समय आ गया है। मेरे मंझले चाचा जी सुगर मिल बारांबकी में सर्विस करते थे ड्यूटी जा रहे थे मेरी हालत देखकर साइकिल मोड़कर घर में रख दिया और मुझे अपने घर में उठा ले गए और कमरे के अन्दर लिटाया।
अब मुझे पूरा आसमान दिखाई देने लगा और ऊपर से उतर रहे बहुत से विमान दिखाई पड़ने लगे। मैने चाचा से बताया कि मुझे लेने के लिए यमदूत विमान लेकर आ रहे हैं अब मुझे कोई नहीं बचा सकता। चाचा ने कहा कि हम बांका, कुल्हाड़ी, बल्लम लिए हैं कोई नहीं आयेगा। मैने कहा कि आप को कुछ दिखाई नहीं पड़ेगा। सब लोग मेरे पास खड़े देखते रह गए।
यमदूतों ने मुझे उठाकर जाल में खड़ा कर लिया।
मेरे पास में अनोली गांव है। वहां के निवासी काशीराम को यमदूतों ने मारकर उसी जाल में बांध लिया। यह सब मुझे दिखाई पड़ रहा था। वह उसी दिन मर गए थे। अब मुझे लेकर अगल बगल यमदूत मेरे सीने पर करौली रखकर चल दिए। बहुत तेजी से उड़ते जा रहे थे।
जितने भी देवी देवताओं के नाम जानता था सबको याद किया राम, कृष्ण, हनुमान आदि। अपने जानकारी में किसी को छोड़ा नहीं सबसे मुसीबत से छुड़ाने की फरियाद किया लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली। तब जयगुरुदेव नाम याद आया दीवाल पर लिखा देखा करता था- *‘जयगुरुदेव नाम परमात्मा का-जीते जी भगवान से मिलाने वाला, संकट और मुसीबत से बचाने वाला नाम- जयगुरुदेव।*
मैने जयगुरुदेव नाम का उच्चारण जैसे ही किया यमदूत सब पता नहीं कहां चले गए। फिर वहीं कुछ सत्संगी धोती, कुर्ता, टोपी पहने आए, सत्संग किए मुझे बड़ी शान्ति मिली। फिर मैं कनौजी लाल के साथ सत्संग में आना शुरु किया। मुझे गुरु पर विश्वास हो गया। प्रचार प्रसार में भी समय देने लगा। इमरजेंसी में जेल भी गया था। 2 महीना 21 दिन बच्चों की बैरिक में रहकर स्वामी जी महाराज को याद किया।
जेल से निकलने के बाद 3 अप्रेल 1977 को लखपेड़ा बाग बाराबंकी में नामदान लिया। तबसे बराबर सेवा का अवसर मिलता रहा। मालिक बड़े दयालु हैं मुझे अति कृपा करके काल के जाल से छुड़ा लिया और साथ ही चरणों में लगा लिया।
- सोहनलाल राजवंशी
ग्रा.बसावनपुर, पो. नानमऊ, बाराबंकी
शेष क्रमशः अगली पोस्ट 7 में पढ़ें ...👇
जयगुरुदेव ◆
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