◆ गुरु महाराज ने सुनाई कहानी ◆ 6.

कहानी संख्या  6.

*छोटी कहानी की बड़ी सीख*

एक सेठ के चार बेटे और चार बहुएं थीं। सेठ ने मन में सोचा कि यह देखा जाय कि  कौन बहू बेटा घर और व्यापार को सम्हाल सकेगा। एक दिन उसने अपने चारों बहू  बेटों को बुलाया और कहा कि मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं तुम चारों को मैं गेहूं के पांच पांच दाने दे रहा हूं। इसको सम्हाल कर रखना। जब मैं वापस आऊंगा तब तुम लोगों से ले लूंगा। यह कहकर सेठ ने पांच पांच दाने चारों बहुओं के हाथों में रख दिया और तीरथ करने चला गया।

एक दो दिन तो बहुओं ने गेहूं को सम्हाला फिर बड़ी बहू के मन में आया कि दे भी गए ससुर जी तो गेहूं के पांच दाने। उसने दानों को फेंक दिया।
दूसरी बहू ने उसको पोटली में रखकर कहीं डाल दिया और ये सोचा कि ससुर जी के आने तक पोटली पड़ी रहेगी और वह लापरवाह हो गई। तीसरी बहू ने पांचों दानों को जतन से रक्खा और रोज उनको गिन लेती थी। 
चौथी बहू समझदार थी। उसने सोचा कि ससुर जी पांच दाने देकर गए हैं। इसको बढ़ाना चाहिए। उसने पांच दाने बो दिए। गेहूं की बालियां आई गेहूं निकला। उसने उसको बोया। इस तरह से उसने धीरे धीरे से गेहूं की फसल बढ़ाती गई और पांच सौ बोरे गेहूं के गोदाम में रखवा दिए।

सेठ वापस लौटकर आया उसने बड़ी बहू से गेहूं के पांच दाने मांगे। उसने साफ कह दिया कि पांच दाने किस काम के ? मैंने उसे फेंक दिया। दूसरी से जब मांगा तो उसने कहा कि रख दिया है मिलेगा तो दे दूंगी। तीसरी से मांगा तो वो गई और  पांचो दाने लाकर दिया और कहा कि मैंने इसको बड़े जतन से रक्खा था और रोज इसको गिनती रहती थी। फिर सेठ ने चौथी बहू को बुलाया उससे दाने मांगे तो बहू बोली कि चलिए पिताजी गोदाम देख लीजिए पांच दानों के पांच सौ बोरे गेहूं रक्खे हैं। सेठ खुश हो गया और उसने अपनी सारी जिम्मेदारी अपने छोटे बहू बेटा को सौंप दी।

ठीक यही हालत हमारी है। सबको स्वामी जी महाराज बराबर नामदान देते हैं और कहते हैं कि इसे सम्हाल कर रक्खो यानि रोज याद करते रहो लेकिन कोई इधर से लेकर गया, उधर फेंक दिया और दुनिया के रगड़े झगड़े में फंस गया। उसने उसकी कदर नहीं की।
कोई लेकर जाता है तो कभी याद करता है कभी नहीं करता है। कोई लेकर जाता है तो सोचता है कि चलो कुछ नहीं तो कम से कम रोज नाम का सुमिरन करते रहें। और कोई  नाम की कमाई में लग जाता है और आध्यात्मिक दौलत को प्राप्त करता है। जब गुरुमहाराज से वह अपनी कमाई बताता है तो गुरु महाराज को बहुत खुशी होती है।

स्वामी जी महाराज कहा करते हैं कि तुम आकर ऐसे ही खड़े हो जाते हो और दुनिया को रोना रोते रहते हो। मैं कहता हूं कि भजन करो, नाम की कमाई करो तो मुझे भी प्रसन्नता होगी।

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शाकाहारी सदाचारी बालसंघ बालक साप्ताहिक पत्रिका
 28 से 6 मई  2010

जयगुरुदेव ◆

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