*【आना ही होगा 】*
वर्ष १९७९ में काशी में जहां गंगा रेती में दो करोड़ लोगों का जमघट हुआ था। बाबाजी ने कहा था कि मैं पांच तरह के जाल तैयार कर रहा हूं जिसमें बड़ी -बड़ी, छोटी-छोटी मछलियां मगरमच्छ फंसेंगे।
महापुरुष जिसे अपने जाल से घेर दें तो क्या मजाल है कि कोई उसमें से निकल सके। प्रसंगवश सुनी, पढ़ी, देखी घटनाऐं याद आ ही जाती है।
सिख गुरुओं का वाक्या है। चौथी या पांचवी पातशाही थी। उस समय बनारस में महाराजा चेतसिंह का राज्य था। गुरु दरबार का एक शिष्य बहक कर वहां से भाग निकला। वह पढ़ा-लिखा था और अच्छा वक्ता था गुरु साहब का सत्संग भी सुना ही था।
वह बनारस में आकर महाराजा का राजगुरु बन बैठा। भाषण देने में प्रवीण था। अतः बड़ा मान-सम्मान होने लगा। महाराजा बनारस उसके अनन्य भक्त बन गये। शाही सेवा सत्कार होने लगा । भक्तों की, श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने लगी।
पंजाब में बैठे गुरु साहब वहीं से सब देख रहे थे कि यह शिष्य कितना लोगों को ठग रहा है खुद गुरु बनकर। उस समय सिक्ख गुरुओं का बड़ा सम्मान होता था।
गुरु साहब ने महाराजा बनारस को एक पत्र लिखा कि हमारा चोर तुम्हारे दरबार में गया है और तुमने उसको शरण दी है। फौरन उसके हाथ पांव बांधकर वापस लौटा दो।
महाराजा ने पत्र पढ़ा तो उन्हे कुछ समझ में नहीं आया। बड़े पशोपेश में पड़े कि आखिर चोर है कौन ?
तब वे अपने राजगुरु के पास गए और उनसे अपनी परेशानी बताई। राजगुरु ने जब गुरु साहब का पत्र सुना तो उनके चेहरे का रंग उड़ गया। अपने को संयत करके बोले कि जाओ, हम कल तक इसका पता लगा लेंगे।
महाराजा तो लौट आये पर राजगुरु की नींद भूख हराम हो गई। सोचने लगे कि अगर कहूं मैं ही हूं वह चोर तो अब तक की सारी साख मिट जाएगी। और अगर न कहूं तो गुरु महाराज बख्शने वाले हैं नहीं। अन्त में उन्होने निर्णय किया कि अपना राज खोल देंगे और जाकर गुरु के दरबार में अपनी भूल की माफी मांगेंगे।
दूसरे दिन सुबह ही वह महाराजा के पास पहुंचे। चेहरा सूखा हुआ था। महाराज घबड़ाकर बोले कि गुरु जी ! क्या बात है, कौन चोर है? आप परेशान क्यों हो? पर गुरुजी चुप।
महाराजा ने कहा आप बेझिझक होकर बताइए, वह मेरा कितना भी सगा क्यों न होगा मैं उसके हाथ पैर बांधकर गुरु साहब के दरबार में भेज दूंगा।
बड़ी मुश्किल से गुरुजी ने कहा कि मेरे ही हाथ पैर बांधकर भेज दो। महाराजा को विश्वास न हुआ। तब राजगुरु बोले कि भाई! वह चोर मैं ही हूं।
मैं अपने गुरु साहिब के ज्ञान की चोरी तो नहीं कर सकता था किन्तु उनके सत्संग वचनों को चुरा ले आया और खुद गुरु बन बैठा। मेरे हाथ पैर बांध दो और ऐसी हालत में मुझे वहां भेजो।
यह है महापुरुषों का जाल। बड़े-बड़े ज्ञानी, ध्यानी दिखावा करने वाले, भाषण देने वाले एक ही आवाज में झुक जाते हैं, सारी अकड़, झूठा दिखावा सब उतर जाता है।
बाबा जी पहले कहा करते थे कि हारकर मजबूर होकर तुम्हें मेरे पास आना ही होगा। तो ये बड़े -बड़े लोग समझते थे कि हमको क्या मतलब है वहां जाने से? वहां तो गरीब, अनपढ, गंवार गांव के लोग जाते हैं। हम तो बड़ी बड़ी कोठियों वाले- हमसे बुद्धिमान और कौन है ?
बाबा जी की कोई खबर अखबार रेडियो पर नहीं आयेगी तो बाबा जी का प्रचार कैसे होगा ? यहां तक कि भूतपूर्व स्त्री प्रधानमंत्री भी जिसने सोचा था कि बाबा जी को जेल में बन्द कर, हथकिड़यां, बेड़ियां लगाकर, तनहाई देकर, हर प्रकार के कष्ट देकर, आश्रम तुड़वाकर, उनके प्रचार को समाप्त कर देंगे। अब उनके भी चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं हैं। अखवारों में धीरे धीरे चर्चायें होने लगी हैं। सबकी भागदौड़ बाबा जी तक शुरु हो गई है।
सन्तों का दरबार तो इतना विशाल होता है कि वहां किसी को अस्वीकार नहीं किया जाता।
‘कोटि विप्र बध लागे जेहीं, आये शरण तजौं नहिं तेही’ यह महापुरुषों का सिद्धान्त है। लेकिन अब तो आप अपने ऊपर से झूठे दिखावे भरे राजनैतिक दांव पेंच वाले नकाब को उतारकर आवें। सन्तों के दरबार में अपने गुनाहों की माफी मांगे। आपने सब हथकण्डे अपना कर देख लिये आपकी सारी चोरी खुलती चली गई। अब अगर आप आते हैं तो कम से कम अब तो चेत जायं।
सारा जीवन बर्बाद कर दिया कुर्सी प्राप्त किया, उसे ही कौन सा चैन आराम मिल गया? आपकी तो मृगतृष्णा ही है। आप आने लगे। बड़ी खुशी की बात है।
समय रहते समझदारी से आकर अपना कल्याण कर लीजिए। नहीं तो परिवर्तन तो होने ही वाला है। कौन जानता है क्या हो ? समय चक्र का कोई ठिकाना नहीं होता।
बहुत पुरानी फिल्मी गीत की चन्द लाइनें-
धरती को आकाश पुकारे, झूठे बन्धन तोड़ के प्यारे, आना ही होगा।
● वक्त गुरु के पास प्यारे, आना ही होगा।
(शाकाहारी पत्रिका 21 से 27 मई 2013)
बीते हुए दिन कुछ ऐसे हैं 👇🏽
जयगुरुदेव|
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