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कबीर साहब के समय की बात है। राजा बीर सिंह उनका शिष्य था। कबीर साहब जब भी उसके पास जाते तो वह सिंहासन छोड़कर नीचे उतर जाता और कबीर साहब को सिंहासन पर बिठा देता था। वीर सिंह बड़ा प्रतापी राजा था। पण्डित मोलवी सब उसका सम्मान करते थे।
एक बार कबीर साहब एक वैश्या को लेकर राज दरबार में पहुंच गए। उनके दोनों हाथों में शराब की बोतलें थीं। रास्ते में जब वह जा रहे थे तो लोगों ने इस दृश्य को देखकर बड़ी हंसी की, मजाक किया और पीछे पीछे बहुत से लोग राजमहल तक पहुंच गए। राजा को खबर दी गई तो वह बाहर आया और कबीर साहब की हरकत को देखकर उसके मन में अभाव आ गया। लोगों ने राजा से कहा कि कबीर साहब ने शराब पी है और सरेआम तवायफ को लेकर दरबार तक आये हैं।
कबीर साहब भजन गा रहे थे और उसी में झूम रहे थे।
कबीर साहब ने जब देखा कि राजा परीक्षा में फैल हो गया है और स्वागत सत्कार उनका नहीं किया तो वे सोचने लगे कि उनको सम्हालना जरुरी है।
रंगीन बोतलों में गंगा जल था उन्होंने उन्हें अपने पैरों पर उड़ेल दिया। जब मदिरा की दुर्गन्ध नहीं फैली तो राजा समझ गया कि यह कोई खेल है। वह सिंहासन से उतर कर पास आया और हाथ जोड़कर बोला कि महाराज आपकी क्या मौज है ?
कबीर साहब तो चुप रहे किन्तु पास में खड़े एक महात्मा ने कहा कि जगन्नाथ जी के मन्दिर में आग लगी हुई है और कबीर साहब उसे बुझा रहे हैं। यह सुनकर राजा आश्चर्य में पड़ गया फिर विचार आया कि इसकी जांच -पड़ताल करनी चाहिए ।
सुबह होते ही उसने सिकन्दर लोदी के दरबार में सिपाही भेजा कि कबीर साहब ने ऐसा कौतुक किया है। सिकन्द लोदी ने जब पता लगवाया तो मालूम हुआ कि ठीक उसी समय पर जगन्नाथ जी के मन्दिर में आग लगी थी।
राजा वीर सिंह को जब बादशाह लोदी की खबर मिली कि घटना सच है। मन्दिर में आग लगी थी और कबीर साहब उसे बुझा रहे थे तब उसकी आंखें खुली और कबीर साहब की महिमा समझ में आई।
जयगुरुदेव |
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