ये वो भारत भूमि है, जहां पर गिद्ध, कौवों, बंदर और भालुओं ने वो काम करके दिखा दिया जो इंसान नहीं कर पाये - बाबा उमाकान्त जी महाराज
जयगुरुदेव
ये वो भारत भूमि है, जहां पर गिद्ध, कौवों, बंदर और भालुओं ने वो काम करके दिखा दिया जो इंसान नहीं कर पाये - बाबा उमाकान्त जी महाराज
कोलकाता, रक्षाबंधन 2013
महाराज जी ने सत्संग प्रेमियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रेमी भाई बहिनों! यह बात समझने की है कि दुनिया किसने बनाई ? उस मालिक ने बनाई। अब दुनिया बनाने वाला ही आपको मिल जाय तो आपको पापी पेट के लिए गुनाह करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी। फिर तो- ‘जो इच्छा कीन्ही मन माही, हरि प्रताप कुछ दुर्लभ नाही।।’
जिस चीज की इच्छा करोगे वह इच्छा तुम्हारी पूरी हो जाएगी। जब काश्तकार अपने खेत में खड़ा होकर के हाथ जोड़कर पानी मांगता था, तो बादल बरस जाते थे। सती सावित्री ने पति के प्राणों को वापस ले लिया। सती अनुसुइया ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश को बच्चा बना दिया। इसलिए- ‘एक साधै सब सधै, सब साधै सब जायं।।
लोग एक को साधते थे। उस मालिक को प्राप्त करते थे। लोग सन्तो के पास जाते थे और सत्संग जब उनको मिलता था, वो रास्ता लेकर के जीवात्मा के लिए काम करते थे। और जब जीवात्मा इसी मनुष्य शरीर से, इसी ग्रहस्थ आश्रम में उस मालिक को मिल जाया करती थी। तब आत्मशक्ति आ जाती थी।
तो मोटी बात समझो, अपने गुरुमहाराज ने भी यहीं कहा था कि मरने के बाद भगवान आज तक किसी को मिला ही नहीं। जब मिला तो इसी मनुष्य शरीर में जीते जागते मिला।
प्रेमी भाई बहनों! ‘यह तन कर फल विषय न भाई’ विषय वासनाओं के लिए यह शरीर नहीं मिला। मिला किसलिए ? तो भगवान की प्राप्ति के लिए। इसलिए इसको वृथा मत गंवाओ। इससे अपना काम करो। खेती गृहस्थी का भी काम करो।
जो बाल बच्चों का लेना देना है, कर्जा एक दूसरे का, उसको भी अदा करो, लेकिन थोड़ा समय उस असली काम के लिए भी निकालो।
ये नीचे की चीजें काम आने वाली नहीं हैं। यहां से जब सबकुछ छोड़कर जाओगे और वहां के लिए कुछ नहीं करोगे तो वहां आपका क्या स्थान रहेगा! सिर्फ वही नरक और चौरासी का दरवाजा खुलेगा।
आप इस बात को समझो कि गुरु महाराज ने दया की है कि आपको रास्ता बताया। सीधा सरल बता दिया। नाम का भेद उन्होने बता दिया। ‘कलयुग केवल नाम अधारा, सुमर सुमर नर उतरहिं पारा।।’
वह नाम बता दिया जिस नाम से भवसागर से पार हुआ जा सकता है। वह नाम बता दिया जिसकी कमाई करने से काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार और इनकी शाखाएं, इनकी नागिन जिसको कहा गया। रूप, रस, स्पर्श, गन्ध और शब्द और मन ये दस तरह के प्राण, यह सब उसको सूंघते ही मूर्छित हो जाते हैं।
जब नाम का नशा चढ़ता है, तब से खतम हो जाते हैं। इस दुनिया की परवाह नहीं रहती। यहां के मीठे वचन भद्दी गाली जैसे लगने लगते हैं।
वो नाम का नशा होता है। यह गुरु महाराज ने आपको दिया और कोई भी परीक्षा नहीं ली। नाम का उन्होने दान दिया उन्होने रास्ता बताया और मंजिल तक बहुत से लोगों को पहुंचा भी दिया।
गुरु महाराज की कही हुई एक भी बात आज तक गलत हुई न होगी। अब ये जरूर है कि समझ में आने न आने की बात है।
एक पण्डित जी थे, एक थे मुल्ला और एक थे पहलवान। ये तीनों एक गांव में रहते थे। तीनों ठण्डी के महीने में सुबह उठकर आग तापते थे। एक दिन एक पक्षी बोल रहा था। मौलवीजी ने कहा कि ये बोल रहा है सुभान तेरी कुदरत। तो पण्डित जी ने कहा नही! यह नहीं बोल रहा है, ये बोल रहा है ‘राम लक्ष्मण, दशरथ। राम, लक्ष्मण, दशरथ ।
तो पहलवान ने कहा कि नहीं, नही। तुम दोनों नहीं समझे। पहलवान ने कहा कि ये बोल रहा है, ‘ दण्ड-मुग्दर-कसरत। दण्ड-मुग्दर-कसरत।
इसीलिए कहा गया है कि- ‘जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखहिं तिन तैसी।।’
कहा जाता है कि हंस की चोली चढाने के बाद ही संतो की बोली समझ में आती है। अब कहा कि कौन से हंस ? जो इधर घूमा करते हैं, नदियों के किनारे, वे हंस नहीं हैं ये।
जबतक शरीर मे जीवात्मा है वो जीव कहलाती है। इससे जो थोड़ी ऊपर निकली, शिव कहलाई। जब और आगे बढी, जहां मानसरोवर है वहां जाकर स्नान करती है तब ये हंस स्वरूप हो जाती है। जब ये हंस स्वरूप होती हैं तब सतदेश की जीवात्माएं आती हैं और सतदेश को ले जाती है और जब बारह वर्षों तक हंस का चोला पहनती हैं, तब जाकर संतों की बोली समझ में आती है।
इतना आसान नहीं है। भ्रम और भूल बहुत समय तक रहता है। अगर आप रात को जाओ और कोई कह दे कि वहां भूत रहता है तो थोड़ी-सी भी खड़- खड़ाहट होगी तो तुम डर जाओगे।
यह भ्रम है, जल्दी निकलता नहीं है। यह भ्रम दूसरों को भी पकड़ता जाता है। क्योंकि ये भूल और भ्रम का देश है।
एक आदमी जा रहा था। रास्ते में उसने कहीं नमाज की बात सुनी, वह ठहर गया। वहां मुल्लाजी तकरीर सुना रहे थे, कुरान की आयतें पढ़ रहे थें, उन्होनं कहा कि मत पढ़ो नमाज। वो रुक गया और कहा कि जब मुल्लाजी कह रहे हैं, मत पढो नमाज, तो उसने फैलाना शुरु कर दिया आज से नमाज पढ़ने की जरूरत नहीं है।
वो गया और ऐलान करने लग गया क्योंकि आगे तो उसने सुना ही नहीं। जब काजी के पास ये खबर पहुंची तो वह पकड़कर लाया गया। काजी ने मुल्ला जी को बुलवाया और कहा कि तुमने ये क्या कह दिया, जो ये आदमी फरमान जारी कर रहा है। तब मुल्लाजी ने कहा कि मैंने ऐसा नहीं कहा। मैंने तो ये कहा कि ‘मत पढ़ो नमाज, जब जो नापाक’।
जब अपवित्र हो तब नमाज मत पढ़ो। गुरु महाराज ने कहा था कि जरूरत पड़ेगी तो हम चार सौ वर्षो तक जीवित रहेंगे और सतयुग लाएंगे। अब ये भी उन्होंने नहीं कहा कि इस शरीर से हम सतयुग लाएंगे।
उनकी शक्ति तो अब भी हम लोगों के साथ है। जब वो शक्ति से अपने काम कराते हैं और आप ये समझो कि शक्ति की वजह से ही ये संगत तैयार हुई और इतने लोग वहां पहुंचे।
गुरु महाराज ने प्रेमियों को ताकत दी और कहा कि पेट को प्रेस और मुंह को अखबार बना लो और जाओ तुम प्रचार करो और जयगुरुदेव के नाम के बारे में बताओ। जब लोगों ने मौत के समय गुरु महाराज को पुकारा और वे वहां खड़े मिले, तब लोगों को विश्वास हुआ। तब इतनी बढी संगत तैयार हुई।
उन्होंने अपनी शक्ति से वो काम किया। अब वो ताकत गुरु महाराज हममें- आपमें भर दें और आपको दया करके खड़ा कर दें, ये कोई नामुमकिन चीज हे? मुमकिन चीज है, मुमकिन है ये ।
ये वो भारतभूमि है, जहां पर गिद्ध और कौवों ने , बन्दर और भालुओं ने, वो काम करके दिखा दिया जो इंसान नहीं कर पाये।
प्रेमी भाई-बहनों, गुरु महाराज की एक भी बात आज तक न गलत हुई है और न गलत होगी। समय पर सतयुग आयेगा। उसको कोई रोक नहीं सकता है।
सतयुग प्रार्थना से इस धरती पर बुलाया भी जा सकता है। लेकिन इन कलियुगियों का क्या होगा ? इनका तो सफाया हो जाएगा। इसलिए इनको थोड़ा समझा लिया जाए। आप भी समझा लो । ये सम्हल जायें।
जयगुरुदेव|
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संत उमाकांत जी महाराज उज्जैन वाले बाबा जी |
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