जयगुरुदेव आरती संग्रह (Post no.1.)
________________
चरण कमल की छाय मे जिन सुरत बिठायो ।।१।।
मो सम पतित पुनीत कर निज ह्रदय लगायो ।।२।।
सुरत चढ़ी आकाश मे धरी अनहद नादा ।।३।।
सतगुरु मिल गये राह मे ले परम् प्रकाशा ।।४।।
भाग्य सराहें सुरत करि लावें बहू सेवा ।।५।।
गुरु दयालु दया करी निज घर पहुचाई ।।६।।
___________________
सतगुरु सतनाम दिनकर की।
मोह ग्रसित कह सुर सरी पावन।
कटहिं पाप कलि मल की,
आरती करहुँ सन्त सतगुरु की।।
कलिमल ग्रसित लौह प्राणी भव ।
कंचन करहिं सुधर की,
आरती करहुं सन्त सतगुरु की।।
कर्म धर्म तेहि बांधि न पावे,
भय न रहे यम डर की,
आरती करहुं सन्त सतगुरु की।।
गगन चढें सुर्त खुले बज्रपट।
दर्शन हो हरि हर की,
आरती करहुं सन्त सतगुरु की।।
सुन्नशिखर चढ़ि बीन बजावे।
खुले द्वार सतघर की,
आरती करहुं सन्त सतगुरु की।।
पुरुष अनामी जाय समावे।
जयगुरुदेव अमर की,
आरती करहुं सन्त सतगुरु की।।
आरती करहुं सन्त सतगुरु की।।
________________
द्वार द्वार पर चौक पुराये, मंगल कलश धराये।।
भरी भरी थार पुष्प माला से, आरति दीप सजाये।।
श्रेत कमल का सुखद बिछावन जयगुरुदेव बिठाये।।
यह शोभा मोहिं मिलि भाग से देखत मन हर्षाये।।
जयगुरुदेव सबै खा डाले नहिं परसाद बचाये।।
जयगुरुदेव आज सखि अपनी राधा व्याहन आये।।
पियत पियत सतसंगियन के जन मन के पाप नसाये ।।
सतगुरु सूर खिले घर घर में सो सुख केहि मुख गाये।।
______________
मेरे मात पिता गुरुदेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
तिनके चरण कमल मन सेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
अपना भेद बताये गुरुदेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
अलख अरूपी रूप गुरुदेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
पुरुष अनामी आप गुरुदेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
उनके शरण मेरे मनसेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
_______________
Jaigurudev arti layi
सतगुरु के सत्संग गंग में प्रथमई जाय नहाई।
मैली चुनर त्याग कर्मन की लखि निज मनहिं लजाई।
ज्योति निरंजन सहस कमल दल, शोभा पड़ी दिखाई।
पार ब्रह्म और महासुन्न तजि भंवर पार गति पाई।
अलख अगम की आरती करती सतगुरु कंज समाई।
__________________
Karu vinti dou kar jori
अर्ज सुनो राधा स्वामी मोरी ।।१।।
सब जीवन के पितु और माता ।।२।।
काल जाल से न्यारा कीजै ।।३।।
काहू ना जानी शब्द की रीता ।।४।।
परगट करके शब्द पुकारी ।।५।।
भव सागर सेपार लगाये ।।६।।
करूँ वीनती दोऊ कर जोरी,
अर्ज सुनो राधा स्वामी मोरी ।।
_______________
Tum na aye guruji subah ho gai
मेरी पूजा की थाली सजी रह गई।।
आरती थी जली की जली रह गई।।
क्या बुलाने में कोई कमी रह गई।
हमसे रूठे हो क्यों, आप आते नहीं।
कोई अपराध मेरा, बताते नहीं।।
टेरते-टेरते सांस रुकने लगी,
तुम न आये गुरुजी सुबह हो गई।।
मन में मनको की माला पहनाओ गुरू।।
टूटकर मोतियों की लड़ी रह गई।
तुम न आये गुरुजी सुबह हो गई।।
फिर भी दर्शन की इच्छा बनी रह गई।।
इतना होते हुए मैं समझ न सकी।
तुम हो दाता मेरे मैं भिखारन तेरी।।
तेरे दर पे खड़ी की खड़ी रह गई।।
तुम न आये गुरुजी सुबह हो गई।।
सामने आ कर फिर से मुस्कुरा दो गुरु।।
अब लगी आँसुओं की झड़ी रह गई।।
तुम न आये गुरुजी सुबह हो गई।।
_________________
Vinay karu me dou kar jore
बिन घृत दीप आरती साजूं, दोऊ अंखियन मझधारे।।
पग ध्वनि सुनुं श्रवण हिय अपने, मन के काज बिसारे।।
घंटा, शंख, मृदंग, सारंगी, बंशी बीन सुना रे।।
विनय करुं मैं दोऊ कर जोरे, सतगुरु द्वार तुम्हारे।।
एक टिप्पणी भेजें
2 टिप्पणियाँ
जय गुरूदेव
जवाब देंहटाएंजय गुरुदेव जय जय गुरुदेव परम संत बाबा जय गुरुदेव जी को सच्चे दिल से नमन https://jaigurudev.co.in
जवाब देंहटाएंJaigurudev